कुछ लव जैसा : फिल्म समीक्षा
निर्माता : सनशाइन पिक्चर्स प्रा.लि. निर्देशक : बर्नाली रे शुक्ला संगीत : प्रीतम कलाकार : राहुल बोस, शैफाली शाह, सुमीत राघवन, विशेष भूमिका में - नीतू चन्द्रा, ओम पुरीसेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 1 घंटा 48 मिनट * 12 रील रेटिंग : 2/5एक जैसे रूटीन से सभी ऊब जाते हैं भले ही रोजाना आराम करने को मिले। चेंज सभी चाहते हैं। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए ‘कुछ लव जैसा’ का निर्माण किया गया है। मधु सक्सेना (शैफाली शाह) गृहिणी है और अपने परिवार में इतनी व्यस्त है कि उसकी पहचान खो गई। मधु का जन्मदिन है और उसका पति यह बात तक भूल गया है। अपना जन्मदिन अपने ही स्टाइल में मनाने के लिए वह घर से निकल पड़ती है ताकि बोरियत भरी लाइफ से छुटकरा मिले। कुछ रोमांच हो। दूसरी ओर राघव एक अपराधी है। पुलिस से भागते हुए थक गया है। जिंदगी में अब ठहराव चाहता है। अपनी गर्लफ्रेंड से शादी करने का ख्वाब उसने संजोया है, लेकिन गर्लफ्रेंड पुलिस के साथ मिल जाती है और उसे पकड़वाना चाहती है। राघव और मधु की मुलाकात होती है और वे पूरा दिन साथ बिताते हैं।
यह कहानी पढ़ते समय अच्छी लगती है, लेकिन स्क्रीन पर इसे ठीक से पेश नहीं किया गया है। स्क्रीनप्ले में वो पकड़ नहीं है जो दर्शकों को बाँध सके। न फिल्म मनोरंजन की कसौटी पर खरी उतरती है और न ही अपनी बात को ठीक से सामने रख पाती है। फिल्म में कुछ अच्छे क्षण हैं, लेकिन इनके बीच बहुत दूरी है। इस वजह से ज्यादातर समय फिल्म में बोरियत हावी रहती है। दरअसल राघव और मधु की मुलाकात के बाद लेखक और निर्देशक यह तय नहीं कर पाए कि अब फिल्म को आगे कैसे बढ़ाया जाए। कैसे कहानी को खत्म किया जाए। राघव को मधु जासूस समझ बैठती है और रोमांच की खातिर उसके साथ हो लेती है, इसके बाद कहानी ठहरी हुई महसूस होती है। फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि राघव और मधु कुछ घंटे साथ गुजारने के बाद बदल जाते हैं। वे एक-दूसरे से कुछ बातें सीखते हैं। राघव अपराध की दुनिया छोड़कर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर देता है वही मधु थोड़ी बिंदास हो जाती है। लेकिन यह सब क्यों और कैसे होता है ये पूरी तरह से स्पष्ट नहीं होता है। लिहाजा दोनों का बदल जाना विश्वसनीय नहीं है। कैसे एक महिला जो अपने पति और बच्चों से प्यार करती है, चंद मिनटों की मुलाकात के बाद अपरिचित पुरुष के साथ एक कमरे में रहना मंजूर कर लेती है, वो भी ये जानते हुए कि उसके पास रिवॉल्वर है और उसकी गतिविधियाँ संदिग्ध हैं।
बर्नाली रे शुक्ला का निर्देशन स्क्रिप्ट जैसा ही है, हालाँकि उन्होंने अपने कलाकारों से अच्छा काम लिया है, लेकिन स्क्रीनप्ले की कमियों को वे छिपा नहीं सके। राहुल बोस, सुमीत राघवन और शैफाली शाह ने कुछ हद तक अपने उम्दा अभिनय के जरिये फिल्म को पूरी तरह से डूबने से बचाया है। ओम पुरी ने शायद संबंधों की खातिर इस फिल्म को किया है। छोटे से रोल में नीतू चन्द्रा प्रभावहीन हैं। प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध कुछ गाने भी हैं जो सुनने में भले मधुर हो, लेकिन फिल्म में इन्हें लंबाई बढ़ाने के लिए रखा गया है। कुल मिलाकर ‘कुछ लव जैसा’ में कुछ अलग करने का प्रयास किया गया है जो पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया।