निर्देशक विशाल पंड्या ने एक फॉर्मूला बना लिया है जिस पर चलते हुए उन्हें 'हेट स्टोरी 2' और 'हेट स्टोरी 3' में सफलता भी मिली। वे फ्रंट बेंचर्स के मनोरंजन के लिए सिनेमा बनाते हैं। उनके किरदार करोड़ों की बातें करते हैं, फाइव स्टार लाइफस्टाइल जीते हैं। कहानी में अपराध के बीज होते हैं। थोड़ा सस्पेंस होता है। पुराने हिट गीतों और हॉट सीन का तड़का लगाकर फिल्म तैयार की जाती है। यही बातें उन्होंने अपनी ताजा फिल्म 'वजह तुम हो' में भी दोहराई है। इसका नाम हेट स्टोरी 4 भी रख देते, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस फिल्म की कहानी भी 'बदले' पर आधारित है।
राहुल ओबेरॉय (रजनीश दुग्गल) के ग्लोबल टाइम चैनल को किसी ने हैक कर एसीपी सरनाइक की हत्या का सीधा प्रसारण कर दिया। एसीपी कबीर देशमुख (शरमन जोशी) राहुल को ही अपराधी मानता है क्योंकि वह गिरती टीआरपी के लिए ऐसा कदम उठा सकता है। मामला अदालत पहुंचता है जहां राहुल की ओर से वकील सिया (सना खान) है तो पुलिस की ओर से रणवीर (गुरमीत चौधरी)। संयोग से सिया का रणवीर बॉयफ्रेंड भी है। इसी बीच इस केस से जुड़े करण की भी हत्या कर दी जाती है और उसका भी सीधा प्रसारण किया जाता है। कबीर के सामने नई चुनौती खड़ी हो जाती है। सरनाइक, करण और राहुल की कड़ियों को जोड़ते हुए वह उस शख्स को बेनकाब करता है जो यह सब कर रहा है और इसके पीछे उसकी 'वजह' क्या है।
फिल्म की कहानी ठीक है, लेकिन खराब स्क्रीनप्ले, दिशाहीन निर्देशन और घटिया अभिनय ने पूरी फिल्म का कबाड़ा कर दिया। स्क्रीनप्ले इस तरह लिखा गया है कि जरा सा दिमाग पर जोर डाला जाए तो फिल्म बताए उसके पहले ही आप 'राज' जान सकते हैं। कई गलतियां स्क्रीनप्ले में छोड़ी गई है और सहूलियत के हिसाब से यह लिखा गया है। दर्शकों को चौंकाने की खूब कोशिश की गई है, लेकिन फिल्म में नकलीपन इतना हावी है कि दर्शक इससे जुड़ नहीं पाते।
विशाल पंड्या का निर्देशन कमजोर है। वे स्टाइलिंग और फिल्म के लुक पर ही ध्यान देते नजर आए। उन्होंने हर सीन को भव्य बनाने और किरदारों को महंगी ड्रेसेस में पेश करने में ही सारा जोर लगा दिया है। कहानी के प्रस्तुतिकरण पर ध्यान न देने की वजह से कही भी फिल्म पर उनकी पकड़ नजर नहीं आती। बीच-बीच में पुराने हिट गीत और हॉट सीन डालकर उन्होंने दर्शकों का ध्यान बंटाने की कोशिश की है।
कुछ दृश्य ऐसे हैं जहां पर उनसे बड़ी चूक हुई है। मसलन राहुल को बीच सड़क से उठा लेने का सीन है, लेकिन आसपास परिंदा भी नजर नहीं आता। दिन-दहाड़े बीच शहर में ये कैसे संभव है? क्लाइमैक्स की फाइटिंग तो दयनीय है। एक तरफ फिल्म में चैनल हैकिंग जैसी आधुनिक तकनीक की बातें की गई हैं तो दूसरी ओर राहुल के घर सिया इस्तीफा देने जाती है मानो ईमेल करना ही नहीं जानती हो।
फिल्म के संवाद इतने भारी भरकम है कि उन्हें बोलने के लिए अमिताभ बच्चन, राजकुमार या सलमान खान जैसे दमदार स्टार चाहिए, जिसका रुतबा या स्टार पॉवर हो। रजनीश दुग्गल, गुरमीत चौधरी या शरमन जोशी जैसे पिद्दी स्टार जब इस तरह के संवाद बोलते हैं तो हंसी छूटती है।
अभिनय डिपार्टमेंट में भी फिल्म कंगाल है। दिखने में सब मॉडल हैं, लेकिन एक्टिंग के नाम पर ज़ीरो। रजनीश दुग्गल और गुरमीत चौधरी ने ऐसी एक्टिंग की है मानो किसी ने सिर पर भारी पत्थर रख दिया हो। सना खान को तो पता ही नहीं अभिनय किस चिड़िया का नाम है। इन खरबूजों को देख शरमन जोशी ने भी अपना रंग बदल दिया और वे भी एक्टिंग करना भूल गए। ज़रीन खान एक गाने में नजर आईं। उनके डांस पर कम और बढ़े हुए वजन पर ज्यादा ध्यान जा रहा था।
कुल मिलाकर 'वजह तुम हो' को देखने की कोई वजह नजर नहीं आती है। नोटबंदी का माहौल है, इसलिए नोट ही बचाइए।
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार
निर्देशक : विशाल पंड्या
संगीत : मिथुन, अभिजीत वाघानी, मीत ब्रदर्स
कलाकार : शरमन जोशी, सना खान, रजनीश दुग्गल, गुरमीत चौधरी, ज़रीन खान (आइटम सांग)
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 16 मिनट 21 सेकंड्स
रेटिंग : 1/5