तड़प फिल्म समीक्षा : कमजोर लेखन और निर्देशन ले डूबा अहान शेट्टी की तड़प को
Tadap Movie Review in Hindi: हीरो के बेटे को हीरोगिरी आसान लगती है इसलिए सुनील शेट्टी के बेटे अहान शेट्टी ने भी अपने डैड की तरह हीरो बनने का फैसला लिया और साजिद नादियाडवाला ने अहान को लेकर 'तड़प' नामक फिल्म बनाई है जो दक्षिण भारतीय फिल्म 'आरडीएक्स 100' का हिंदी रीमेक है। यह फिल्म शिवा नामक आदमी के जीवन से प्रेरित है जिसने 33 वर्ष की उम्र में प्यार में अपनी जान दे दी थी। सुनील शेट्टी की छवि एक्शन हीरो के रूप में रही है और इसीलिए अहान से भी तड़प में खूब एक्शन करवाया गया है।
निर्देशक मिलन लुथ्रिया ने यह फिल्म पूरी तरह से अहान को ध्यान में रख कर डिजाइन की गई है। कैमरे का फोकस उन पर ही रहा है। हर फ्रेम में उन्हें जगह देने की कोशिश की गई है। फिल्म के प्रभाव को बढ़ाने के लिए अच्छे गाने हैं। सपोर्टिंग कास्ट बढ़िया है ताकि नए-नवेले अहान की कमजोरियों पर ज्यादा ध्यान न जाए, लेकिन फिल्म में जो तीव्रता की डिमांड थी वो प्रभाव मिलन पैदा नहीं कर पाए।
फिल्म के हीरो अहान की कहानी उसी तरह की है जब पापा सुनील शेट्टी ने फिल्मों में कदम रखा था। ईशाना (अहान शेट्टी) अनाथ है जिसे डैडी (सौरभ शुक्ला) ने पाला है। ईशाना इतनी मारपीट क्यों करता है, बताया नहीं गया है। हीरोइन रमीसा (तारा सुतारिया) एक अमीर घर की बेटी है जिसके पापा (कुमुद मिश्रा) नेता हैं। रमीसा का दिल ईशाना पर आ जाता है। दोनों हदें पार कर जाते हैं। जब बात शादी की आती है तो रमीसा के पापा दीवार बन जाते हैं। यहां तक कहानी बेहद रूटीन है। इसको अलग रंग देने के लिए एक ट्विस्ट दिया गया है ताकि दर्शक चौंक जाए, ईशाना-रमीसा की जुदाई को देख तड़प जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता।
स्क्रीनप्ले लिखने वाले रजत अरोरा ड्रामे में धार नहीं दे सके हैं। स्क्रीन पर दिखता है कि हीरो को हीरोइन नहीं मिल पाई है तो वह सुलग रहा है। अंगारा बन कर घूम रहा है। प्यार में तड़प रहा है, लेकिन दर्शकों से वह जुड़ नहीं पाता। ईशाना-रमीसा की मोहब्बत से न दर्शक प्रेम के रस में डूबते हैं और न ही उनकी जुदाई से वे तड़पते हैं।
स्क्रीनप्ले सहूलियत के हिसाब से लिखा गया है। जब चाहा किसी किरदार ने चुपचाप बातें सुन ली। जब चाहा हीरोइन के घर में हीरो घुस गया और मारपीट करने लगा। हीरोइन के पापा को बहुत बड़ा नेता दिखाया गया है, लेकिन नौकर-चाकर और सिक्यूरिटी गार्ड्स कभी दिखते हैं कभी नहीं। इस कहानी की यूएसपी इंटेंस होना थी, लेकिन वो इंटेंसिटी निर्देशक और लेखक स्क्रीन पर नहीं दिखा पाए।
बात की जाए अहान शेट्टी की। पहली फिल्म के हिसाब से उनकी एक्टिंग ठीक-ठाक है। रोल उनका कठिन था। भावनाओं को तीव्रता से पेश करना था। डिमांड ज्यादा थी और सप्लाय कम। कोई अनुभवी एक्टर होता तो अपनी एक्टिंग से ही फिल्म के स्तर को उठा देता। हां, अहान में संभावनाएं जरूर हैं।
तारा सुतारिया का किरदार ठीक से पेश नहीं किया गया है। उन्होंने रंग क्यों बदले इसकी कोई ठोस वजह दर्शाई नहीं गई है। तारा का अभिनय औसत रहा है। सौरभ शुक्ला और कुमुद मिश्रा अनुभवी कलाकार हैं और उन्होंने युवा कलाकारों को अपनी एक्टिंग से ठोस सहायता की है।
प्रीतम का संगीत और इरशाद कामिल के बोल हैं। इन दोनों का काम बढ़िया है। फिल्म में गाने चलते रहते हैं जिससे किरदारों की भावनाओं को बल मिलता है। बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है।
तड़प में नए कलाकारों ने ठीक-ठाक काम किया है। अनुभवी कलाकारों का काम शानदार है। अच्छे गाने हैं, लेकिन आउटडेटेड स्टोरी लाइन ने खेल बिगाड़ दिया है।
निर्माता : साजिद नादियाडवाला, फॉक्स स्टार स्टूडियो
निर्देशक : मिलन लुथ्रिया
संगीत : प्रीतम
कलाकार : अहान शेट्टी, तारा सुतारिया, सौरभ शुक्ला, कुमुद मिश्रा