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Last Modified: सोमवार, 2 नवंबर 2020 (06:12 IST)

मिर्जापुर 2 का रिव्यू

मिर्जापुर 2 का रिव्यू - Mirzapur 2, Review in Hindi, Pankaj Tripathi, Samay Tamrakar
मिर्जापुर अमेजन प्राइम वीडियो की ओरिजनल भारतीय वेबसीरिज है जिसका सीजन 2018 में देखने को मिला औरभारतीय दर्शक चमत्कृत रह गए। इस एक्शन क्राइम थ्रिलर ने दर्शाया कि भारतीय समाज को अपराधियों और राजनेताओं की सांठगांठ किस तरह खोखला कर रही है। ये दीमक की तरह नैतिक मूल्यों और आर्थिक दशा को चट कर रही है। मिर्जापुर सही मायनो में भारतीय वेबसीरिज के लिए एक ट्रेंड सेटर रही। इसको आधार बनाकर कई वेबसीरिज हमें देखने को मिली जिनकी कहानी, ट्रीटमेंट और किरदार 'मिर्जापुर' की याद दिलाते हैं। हालांकि इस पर भी अनुराग कश्यप की मूवी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' का प्रभाव देखने को मिला।  
 
मिर्जापुर 2 का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था और सीजन 2 में 10 एपिसोड देखने को मिलते हैं जो मिर्जापुर की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। सीजन 2 में दिखाया गया है कि कालीन भैया और उनका बेटा मुन्ना किस तरह से अपने अवैध तमंचों के व्यापार को आगे बढ़ाते हैं। उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिलता है जिसकी वजह से यह अवैध व्यापार फलता-फूलता है। नेताओं और अपराधियों का गठजोड़ किस तरह से समाज के लिए घातक होता है। नेताओं को चुनाव जीतना है और इस काम में उनकी मदद ये अपराधी करते हैं। अवैध तमंचों के अलावा अफीम भी जनता को चटाई जाती है ताकि वे नशे में गाफिल रह कर अपना विवेक खो बैठे। 
 
सीरिज के सारे किरदार तिकड़मी हैं। वे लाभ के लिए रिश्ते बनाते और तोड़ते हैं। एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। सभी पॉवर हासिल करना चाहते हैं जिसके बूते पर मनमानी कर सकें। इस मकड़जाल में कमजोर मौत के घाट उतार दिए जाते हैं। इन तमाम समीकरणों को बहुत ही उम्दा तरीके से मिर्जापुर 2 में पेश किया गया है। प्यार, धोखा, सेक्स, राजनीति, अपराध से सना यह खूनी खेल देखते समय रोमांच पैदा करता है और सोचने पर विवश भी करता है कि भारतीय समाज और राजनीति किस पतन के दौर से गुजर रही है। 
 
अपराध की काली दुनिया दिखाने के साथ-साथ यह सीरिज इन अपराधियों के निजी जीवन में भी तांक-झांक करते हुए दर्शाती है कि इनके नैतिक मूल्य भी कितने खोखले हैं। कालीन भैया के घर के मर्द अपनी बहू और नौकरानियों को भी नहीं छोड़ते। अपराध की दुनिया के 'बाहुबली' बिस्तर पर एकांत क्षणों में कमजोर 'मर्द' साबित होते हैं और उनकी पत्नी नौकर से संबंध बनाने में गुरेज नहीं करती क्योंकि उसके मन में भी उम्र की खाई को लेकर असंतोष है। 
 
मिर्जापुर सीजन 2 से ये आशा थी कि नए किरदार जोड़े जाएंगे जो सीरिज को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। कुछ नए किरदार जोड़े गए हैं, लेकिन उन्हें पनपने का ज्यादा मौका नहीं दिया गया है। सारा फोकस इसी बात पर रहा कि पुराने किरदारों के सहारे ही कहानी को आगे बढ़ाया जाए। इसमें कोई नई बात सामने नहीं आती। सीजन एक में नएपन के कारण जो पैनापन था वो सीरिज में दो में इसलिए नदारद रहा क्योंकि वहीं की वहीं बातें दोहराई हैं।
 
कई प्रसंग बहुत लंबे हो गए हैं। बदले की आग में जलता गुड्डू की छटपटाहट इतनी ज्यादा खींची गई है कि सीरिज पर बोरियत भी हावी होने लगती है। शबनम का गुड्डू के प्रति आकर्षित होना और इसको लेकर गोलू में ईर्ष्या पैदा करने वाली बात महज सीरिज की लंबाई ही बढ़ाती है। मिर्जापुर की गद्दी को लेकर मुन्ना की बेताबी भी फुटेज बढ़ाने के ही काम आई। 
 
सीरिज कुछ जगह फिल्मी भी हो गई और कुछ बातें लेखकों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक भी पेश कर दी है। त्यागी ब्रदर्स और दद्दा के किरदार अच्छे लगते हैं, लेकिन उनका विस्तार शायद तीसरे सीज़न में देखने को मिले। कही-कही सीरिज हद भी लांघती है जो अखरती है। एक सीन में त्यागी, मुन्ना और शुक्ला बैठे हैं और वे अपनी मां-पिता को लेकर फूहड़ बातें करते हैं जिसे स्वीकारना हर किसी के बस की बात नहीं है। 
 
कमियों के बावजूद सीरिज पूरे समय बांध कर रखती है तो इसका श्रेय कलाकारों और निर्देशकों को जाता है। द्वियेंदु शर्मा ने मुन्ना भैया के रूप में कमाल का अभिनय जारी रखा है। कब क्या कर बैठे वाला उनका मिजाज पसंद आता है। सीजन 2 में उनका दबदबा है। पंकज त्रिपाठी कालीन भैया के रूप में अपना जलवा कायम रखते हैं। बीना के रूप में रसिका दुग्गल अपने किरदार को तीखे तेवर देती हैं, लेकिन उन्हें और फुटेज दिए जाने थे। गोलू के रूप में श्वेता खूंखार नजर आईं। दद्दा के रूप में लिलिपुट छाप छोड़ते हैं और भरत तथा शत्रुघ्न त्यागी के रूप में विजय वर्मा अपने अभिनय से ताजगी प्रदान करते हैं। अली फज़ल के पास गुड्डू के रूप में ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं था। एक जैसे ही सीन उन्हें ढेर सारे मिले और वे एक सीमित दायरे में ही कैद रहे। 
 
निर्देशन और संपादन बढि़या है। दर्शकों की उत्सुकता को बरकरार रखते हुए सीन शूट किए गए हैं और संपादन में दृश्यों का क्रम बेहतरीन तरीके से जमाया गया है। संवाद भी उम्दा है। सिनेमाटोग्राफी जबरदस्त है। फाइट सीन, कलाकारों के भाव और छोटे शहर की बारीकियों को कैमरे से खूब पकड़ा गया है। 
 
मिर्जापुर सीजन 2 में सीजन 1 जैसी बात तो नहीं है, कम अपेक्षा से देखी जाए तो पसंद आ सकती है।