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Written By समय ताम्रकर
Last Updated : सोमवार, 10 नवंबर 2014 (14:44 IST)

मैरी कॉम : फिल्म समीक्षा

मैरी कॉम : फिल्म समीक्षा -
यदि कुछ करने की जिद हो तो दुनिया की तमाम बाधाएं आपका रास्ता नहीं रोक सकती। मैरी कॉम की कहानी को स्क्रीन पर देख यह बात सच प्रतीत होती है। वे भारत के उस हिस्से की रहने वाली हैं जहां आजादी के वर्षों बाद भी वहां के लोगों को बताना पड़ता है कि वे भारतीय हैं। मैरी कॉम ने एक ऐसा खेल चुना जिसमें पुरुषों का दबदबा है। भारत में बॉक्सिंग में महिला खिलाड़ी ढूंढे नहीं मिलती। मैरी कॉम के परिवार की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि उन्हें तमाम सुविधाएं मिलती। मैरी के पिता इस खेल के खिलाफ थे। भारतीय खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार से तो सभी परिचित हैं। मैरी कॉम को भी अपने स्तर पर इससे लड़ना पड़ा। फेडरेशन मुक्केबाजों को डाइट में एक केला और चाय देता है। मैरी अपनी पहली फाइट भूखे पेट लड़ती है। उनका कोच पूछता है कि क्या वह लड़ लेगी तो वह कहती है कि सर, खुशी से ही पेट भर गया। तमाम बाधाओं को पार करते हुए मैरी ने विश्व चैम्पियन का खिताब एक-दो बार नहीं बल्कि पूरे पांच बार अपने नाम किया। मैरी की कहानी प्रेरित करती है।  
 
हैरानी की बात तो यह है कि इतनी उपलब्धि हासिल करने के बाद भी मैरी के नाम से अधिकतर भारतीय परिचित नहीं हैं। जब 'मैरी कॉम' के निर्देशक उमंग कुमार से किसी ने कहा कि मैरी कॉम पर फिल्म बनाई जानी चाहिए तो उनका जवाब था 'ये मैरी कॉम कौन है? जब उन्होंने मैरी कॉम के बारे में पढ़ा तो उन्हें महसूस हुआ कि मैरी कॉम की जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव हैं कि उन पर फिल्म बनाई जानी चाहिए।


 
 
मैरी का संघर्ष दोहरा है। पहला तो वे तमाम बाधाओं को पार कर विश्व चैम्पियन बनती है। इसके बाद शादी करती है और दो बच्चों की मां बनती है। भारत में एक क्रिकेट खिलाड़ी आईपीएल के कुछ मैच खेल कर ही करोड़पति बन जाता है, लेकिन मैरी कॉम तीन बार विश्व विजेता बनने के बावजूद परिवार के बढ़ते खर्च को लेकर चिंतित हो जाती है। वह नौकरी करने का फैसला करती है तो सरकार उन्हें हवलदार की नौकरी देती है जिसे वे ठुकरा देती है। 
 
मैरी को कोई पहचानता नहीं है जिसका उन्हें बुरा लगता है। विश्व विजेता खिलाड़ी को फेडरेशन का अदना ऑफिसर ऑफिस के बाहर घंटों इंतजार करवाता है। मैरीकॉम की वापसी को लेकर रूकावटें खड़ी की जाती हैं। उनसे माफीनामा मांगा जाता है। एक चैम्पियन खिलाड़ी के लिए यह सब अपमानजक है, लेकिन खेल के प्रति प्रेम के चलते मैरी कॉम यह सब सहन करती है और फिर बॉक्सिंग रिंग में उतरती है। खिलाड़ी के साथ हमारे यहां इस तरह का व्यवहार आम बात है, सभी जानते हैं, लेकिन जब स्क्रीन पर यह नजारा देखते हैं तो बहुत दु:ख पहुंचता है। मैरी रिंग में उतरकर फिर विश्व चैम्पियन का खिताब अपने नाम करती हैं। 
 
फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है कि जब मैरी कॉम विश्व कप फाइनल का मैच खेल रही होती है तब उनके बच्चे के दिल का ऑपरेशन चल रहा होता है। पता नहीं यह हकीकत है या फसाना, लेकिन अगर सच है तो ये कमाल की बात है कि वे इतने बड़े दर्द को लेकर मैच खेलती हैं और जीतती हैं। 
 
ये सारे प्रसंग दर्शक को बांध कर रखते हैं और मैरी कॉम के हर इमोशन को महसूस किया जा सकता है। फिल्म में कई दृश्य लाजवाब हैं। मैरी जब बॉक्सिंग सीखने के लिए प्रशिक्षक के पास जाती है तो वह पूछता है कि पांच कारण बताओ कि तुम बॉक्सिंग क्यों सीखना चाहती हो? वह चार बार 'आई लव बॉक्सिंग' कहते हुए पूछती है पांचवां कारण भी बताना जरूरी है क्या? 
एक लड़के से बॉक्सिंग का मुकाबला करने के बाद मैरी कॉम को पूछा जाता है कि क्या उसे डर नहीं लगा? जवाब मिलता है कि 'डर क्या होता है।' रात को सुनसान सड़क पर अपने बॉयफ्रेंड को मैरी कहती है डरो मत, मेरे साथ तुम सेफ हो। 
 
बायोपिक को स्क्रीन पर पेश करना आसान नहीं है। डॉक्यूमेंट्री और फीचर फिल्म के बीच के अंतर को ध्यान रखना पड़ता है। साथ ही भारतीय दर्शकों की मानसिकता के अनुरूप काम करना होता है। आधी हकीकत और आधा फसाना का संतुलन बनाए रखना कठिन होता है। 
 
निर्देशक उमंग कुमार के सामने 'चक दे इंडिया' और 'भाग मिल्‍खा भाग' जैसे उदाहरण सामने हैं और उनके प्रस्तुतिकरण में इन फिल्मों की छाप नजर आती है। उमंग कुमार के पास इतनी बढ़िया कहानी थी कि वे इसे बेहतरीन तरीके से पेश कर सकते थे, लेकिन उनका प्रस्तुतिकरण कहानी के अनुरूप नहीं है। मैरी कॉम को उन्होंने कही-कही बॉलीवुड 'हीरो' की तरह पेश किया है। फिल्म ज्यादा लोगों को पसंद आए इसलिए लुभावना प्रस्तुतिकरण वाला रास्ता उन्होंने अपनाया है। इसके बावजूद फिल्म दर्शकों को इसलिए पसंद आती है क्योंकि मैरी का संघर्ष सीधे दिल को छूता है। मैरी के दु:ख में आप उसके साथ रोते हैं और उसकी खुशी में भी शामिल होते हैं।
 
वर्तमान हीरोइनों में प्रियंका चोपड़ा ही मैरी कॉम का रोल निभा सकती थी। फिल्म शुरू होने के चंद सेकंड बाद ही आप भूल जाते हैं कि यह प्रियंका है और उसे मैरी के रूप में देखने लग जाते हैं। कम मेकअप कर प्रियंका ने अपने और मैरी कॉम के बीच के अंतर को पाटने की कोशिश की है। उन्होंने कड़ी फिजिकल ट्रेनिंग ली है और यह बात स्क्रीन पर नजर आती है। उन्होंने भी मैरी की तरह बाएं हाथ का इस्तेमाल किया है। एक चैम्पियन खिलाड़ी की आक्रामकता, हालातों से लड़ने की जिद और कुछ कर गुजरने की तमन्ना उनके अभिनय में नजर आती है। प्रशिक्षक के रूप में सुनील थापा और मैरी कॉम के पति के रूप में दर्शन कुमार का अभिनय भी उम्दा है।
 
बॉक्सिंग मैचों के दृश्यों को अच्छे से फिल्माया गया है। संपादन थोड़ा ढीला है। गाने फिल्म के मूड के अनुरूप हैं और एकाध कम भी होता तो चलता। 
 
एक साधारण लड़की मैरी को मॅग्निफिसिएंट मैरी में परिवर्तित होने की कहानी को बड़े परदे पर देखना ही इस खिलाड़ी के प्रति सही सम्मान होगा। 
 
बैनर :  वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, एसएलबी फिल्म्स 
निर्माता :  संजय लीला भंसाली
निर्देशक :  उमंग कुमार
संगीत :  शशि-शिवम
कलाकार :  प्रियंका चोपड़ा, दर्शन कुमार, सुनील थापा, रजनी बासुमैत्री
 
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 3 मिन 52 सेकंड
रेटिंग : 
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