सोमवार, 9 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. Laal Singh Chaddha Movie Review starring Aamir Khan
Last Updated : गुरुवार, 11 अगस्त 2022 (20:41 IST)

Laal Singh Chaddha Movie Review : आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा की फिल्म समीक्षा

Laal Singh Chaddha Movie Review starring Aamir Khan: आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा की फिल्म समीक्षा - Laal Singh Chaddha Movie Review starring Aamir Khan
लाल सिंह चड्ढा 6 एकेडेमी अवॉर्ड्स जीतने वाली फिल्म 'फॉरेस्ट गम्प' का ऑफिशियल भारतीय रीमेक है। अतुल कुलकर्णी ने भारत को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलाव के साथ इस फिल्म को लिखा है। लाल सिंह चड्ढा ऐसा शख्स है जिसे बात देर से समझ में आती है या कह सकते हैं कि वह स्ट्रीट स्मार्ट नहीं है। दिल का साफ है और मां का कहना आंख मूंद कर मानता है। बचपन में उसके पैरों में तकलीफ के कारण वह ठीक से चल नहीं पाता था, लेकिन फिर ऐसी दौड़ लगाता है कि रूकता नहीं है। 


 
लाल का जीवन उसकी मां (मोना सिंह), रूपा (करीना कपूर खान) जिसके लिए वह मर-मिटने को तैयार है, खास दोस्त बाला (नागा चैतन्य) और दुश्मन देश का रहने वाला मोहम्मद पाजी (मानव विज) के इर्दगिर्द घूमता है। जीवन के अलग-अलग मोड़ पर ये उसके जीवन में शामिल होते हैं और वक्त आने पर जुदा हो जाते हैं। लाल के कारण इनका और इनके कारण लाल के जीवन में बदलाव आते हैं। 
 
लाल के जीवन के साथ-साथ भारत में घटी प्रमुख घटनाएं, आपातकाल, भारत का 1983 में विश्व कप जीतना, इंदिरा गांधी की हत्या, अडवाणी की रथ यात्रा, बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया जाना, सुष्मिता सेन का मिस यूनिवर्स बनना से लेकर तो 2014 के चुनाव तक की घटनाएं फिल्म की पृष्ठभूमि में चलती रहती है। 
 
फिल्म की शुरुआत शानदार है। लाल सिंह चड्ढा का किरदार पहली फ्रेम से ही दर्शकों से कनेक्ट हो जाता है। लाल सिंह की मासूमियत, उसका ऐब, उसका बोलने का ढंग, उसकी बॉडी लैंग्वेज, उसकी सोच बहुत अच्छी लगती है। बालक लाल सिंह बहुत ही क्यूट लगता है और युवा लाल सिंह भी प्रभावित करता है जो रेल से चंडीगढ़ जा रहा है। गोलगप्पे खाते हुए वह सहयात्रियों को अपने जीवन की कहानी सुनाता है। 
 
लाल सिंह के जीवन में कैसे चमत्कार हुए, उसके नाना, पर नाना और पर पर नाना क्या थे, रूपा उसकी दोस्त कैसे बनी, कैसे वह सेना में शामिल हुआ, ये किस्से बहुत ही उम्दा तरीके से फिल्माए हैं। सेना में लाल सिंह और बाला की दोस्ती वाला प्रसंग भी मनोरंजक है। बाला का रिटायर होने के बाद चड्ढी-बनियान का बिज़नेस करने का प्लान और चड्ढी-बनियान के प्रति उसका जुनून खूब हंसता है। 
 
लेकिन जैसे ही एक घंटा बीतता है, लाल सिंह से आप अच्छी तरह परिचित हो जाते हैं, आप कुछ और नया जानने के लिए उत्सुक होते हैं,  फिल्म का ग्राफ तेजी से नीचे आ जाता है। अचानक कहानी ठहर जाती है। कहानी बताने वाले के पास नया कुछ नहीं रहता। जो ट्रैक डाले गए हैं वो प्रभावित नहीं कर पाते। 
 
लाल सिंह की मां और उसके दोस्त बाला वाले ट्रैक तो उम्दा हैं, लेकिन मोहम्मद वाला ट्रैक फिल्म के सिंक में नहीं बैठता। कारगिल युद्ध के दौरान अपने सैनिकों की जान बचाता हुआ लाल सिंह चड्ढा दुश्मन देश के मोहम्मद को भी उठा लाता है। आश्चर्य तो ये कि सेना के अस्पताल में मोहम्मद का इलाज चलता है, लेकिन उसे कोई पहचान नहीं पाता। उसके बारे में कोई जानने की कोशिश नहीं करता। मोहम्मद को इलाज कर छोड़ दिया जाता है। यह लेखक द्वारा की गई बड़ी चूक है और दर्शक इस कैरेक्टर को ठीक से स्वीकार नहीं पाते।
 
लाल सिंह और मोहम्मद पर खासे फुटेज खर्च किए गए हैंऔर यहां पर आकर फिल्म में मनोरंजन का स्रोत सूख जाता है। रूपा के लाल सिंह के जीवन में फिर आने के बाद फिर फिल्म में जान आती है, लेकिन इसके पहले एक उबाऊ दौर से गुजरना पड़ता है। 

 
फिल्म का एक माइनस पाइंट ये भी है कि पृष्ठभूमि में हो रही भारत की बड़ी घटनाओं से मूल कहानी का कोई तालमेल नहीं है। इन घटनाओं को बिना किसी का पक्ष लिए जस का तस रखा गया है, लेकिन लाल सिंह के जीवन में इन घटनाओं का क्या असर हो रहा है, वो नदारद है। 
 
ऐसा लगता है कि सिर्फ समय को दर्शाने के लिए ये घटनाएं दिखाई जा रही हैं, जैसा कि आमतौर पर कई फिल्मों में दिखाया जाता है। होना तो ये चाहिए था कि इनका थोड़ा संबंध लाल सिंह के साथ भी दिखाना था।  
 
अतुल कुलकर्णी ने बतौर लेखक थोड़े बदलाव किए हैं, कुछ बदलाव और कर सकते थे। फॉरेस्ट गम्प लगभग तीन दशक पुरानी फिल्म है और इसके बाद से दर्शक उन बातों से भलीभांति परिचित हो चुके हैं जिसे फॉरेस्ट गम्प देखते समय चौंक गए थे। क्या 'फॉरेस्ट गम्प' का रीमेक अब बनाना उचित है? इस सवाल पर भी  गौर किया जाना था।  
 
निर्देशक अद्वैत चंदन ने फिल्म को तल्लीनता से बनाया है। फिल्म का लंबा 'डिस्क्लेमर' ही दर्शकों को इशारा कर देता है कि इस फिल्म को आराम से देखना है। दर्शक इसके लिए तैयार भी हो जाते हैं, लेकिन फिल्म बीच में गोता लगाती है तो इसकी लंबाई अखरने लगती है। 
 
अद्वैत चंदन ने लाल सिंह के किरदार पर मेहनत की है। उसकी मासूमियत तो दिल को छूती है, लेकिन इसी के बल पर पूरी फिल्म नहीं देखी जा सकती। शुरुआती घंटे के बाद अद्वैत के पास दिखाने के लिए ज्यादा बचा नहीं। 
 
एक्टिंग डिपार्टमेंट में फिल्म मजबूत है, हालांकि आमिर खान के अभिनय पर लोग दो भागों में बंटे नजर आएंगे। कुछ को आमिर का आंखें फाड़ना, एक खास मैनेरिज्म में बोलना, गर्दन को अजीब तरीके से घुमाना अच्छा लगेगा, वहीं दूसरी ओर कई लोगों को ये कैरीकेचरनुमा एक्टिंग लगेगी या उन्हें 'पीके' वाला निभाया गया पात्र का एक्सटेंशन 'लाल सिंह चड्ढा' में नजर आएगा। 
 
करीना कपूर खान सुंदर लगी हैं और एक ऐसी लड़की का किरदार जो लाल सिंह चड्ढा के प्यार के बजाय अपनी महत्वाकांक्षा को ज्यादा अहमियत देती है उन्होंने मैच्योरिटी के साथ निभाया है। लाल सिंह की मां के रूप में मोना सिंह की एक्टिंग नेचरल है। चैतन्य अक्किनेनी ने खूब हंसाया है। बीते जमाने की अभिनेत्री कामिनी कौशल को देखना अच्छा लगा है। मानव विज औसत रहे हैं। शाहरुख खान चंद सेकंड के लिए नजर आते हैं, लेकिन फिल्म देखने के बाद भी लंबे समय तक याद किए जाते रहेंगे। 
 
अभिजीत भट्टाचार्य के बोल सार्थक हैं। प्रीतम का संगीत भले ही हिट नहीं हुआ हो, लेकिन गाने धीरे-धीरे अपनी जगह बना लेंगे। तनुज टीकू का बैकग्राउंड म्यूजिक क्लास अपील लिए हुए है। सेतु की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। आउटडोर शूट देखने लायक है और फिल्म को भव्य बनाता है। 
 
फिल्म तकनीकी रूप से मजबूत है। सभी ने मेहनत भी की है, लेकिन एक क्लासिक फिल्म का रीमेक बनाने में देरी हुई है जिसका असर 'लाल सिंह चड्ढा' पर नजर आता है। 
 
निर्माता : आमिर खान, किरण राव, ज्योति देशपांडे, अजीत अंधारे
निर्देशक : अद्वैत चंदन
संगीत : प्रीतम
कलाकार : आमिर खान, करीना कपूर खान, मोना सिंह, चैतन्य अक्किनेनी, शाहरुख खान (गेस्ट अपियरेंस) 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 44 मिनट 50 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5 
ये भी पढ़ें
Raksha Bandhan Movie Review: अच्छे विषय पर खराब फिल्म अक्षय कुमार की रक्षा बंधन