Dream Girl 2 Review: यदि स्क्रिप्ट ढंग की ना हो तो किसी भी हिट फिल्म का सीक्वल नहीं बनाया जाना चाहिए। निर्देशक राज शांडिल्या 'ड्रीम गर्ल 2' में यही गलती कर गए। पंजाबी हिट फिल्म 'कैरी ऑन जट्टा' के लेखक नरेश कथूरिया को उन्होंने अपने साथ जोड़ा, लेकिन स्क्रिप्ट में दम नहीं आ पाया। पूरी फिल्म वन लाइनर्स पर टिकी हुई है। जो कभी हंसाती हैं तो कभी नहीं। यदि नींव यानी की कहानी ही कमजोर होगी तो केवल चुटीले संवाद ही फिल्म का बोझ का कैसे उठा पाएंगे?
करम (आयुष्मान खुराना) के सामने इस बार पूजा बनने मजबूरी इसलिए आ जाती है क्योंकि उसकी प्रेमिका परी (अनन्या पांडे) के पिता कह देते हैं कि यदि मेरी बेटी से शादी करनी हो तो बैंक बैलेंस कम से कम 25 लाख रुपये होना चाहिए। वो भी 6 महीने में। जेब से कड़का करम पैसा कमाने के लिए पूजा बन कर बार में डांस करता है और इसके बाद गलतफहमियों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
राज शांडिल्या ने सिर्फ इस बात का फोकस रखा है कि दर्शक खूब हंसे। उनका खूब मनोरंजन हो। जो सही भी है, लेकिन उनके पास पर्याप्त मसाला नहीं था। स्क्रिप्ट इतनी कमजोर है कि थोड़ी देर में एंटरटेनमेंट के सारे सोर्स सूख जाते हैं। वन लाइनर्स जो शुरुआत में फनी लगती हैं, बाद में रिपीटेटिव होकर बोर करने लगती है।
फिल्म में कहानी के नाम पर सिर्फ संयोग है। ऐसा लगता है कि किरदार शहर में नहीं वरन छोटे-से मोहल्ले में रहते हैं जहां हमेशा कोई न कोई वो शख्स टकरा जाता है जिससे आप बचने की कोशिश करते है। इतनी गलतफहमी पैदा कर दी गईं कि बदहजमी हो जाती है। कई सीन ड्रीमगर्ल के ही दोहरा दिए गए हैं। बिना सिचुएशन क्रिएट किए कॉमेडी दिखाने की कोशिश में राज शांडिल्या बुरी तरह से फ्लॉप रहे हैं।
करम को बार-बार दूसरी लड़कियों के साथ परी देख लेती है, लेकिन अंत में परी को माफी मांगनी पड़ती है, ये निर्णय हैरान कर देने वाला रहता है। परी के पापा को विलेन की तरह दिखाया गया है, लेकिन वो भला ऐसे घर में क्यों लड़की देना पसंद करेंगे जहां की हर चीज गिरवी है।
फिल्म के अंत में सब कुछ अचानक सही हो जाता है जो गले नहीं उतरता। करम एक भाषण देता है और सबका हृदय परिवर्तन हो जाता है। उसे मासूम मध्यमवर्गीय बता कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की गई है जो दिल को नहीं छूती।
शांडिल्या के निर्देशन पर उनका लेखन हमेशा भारी पड़ता है। सभी किरदार इतना बोलते हैं कि महसूस होता है कि फिल्म देख रहे हैं रेडियो नाटक? बतौर निर्देशक वे सिचुएशन नहीं क्रिएट कर पाए कि दर्शक खूब हंसे। सिर्फ संवादों पर ही निर्भर रहे। कई दृश्यों में फूहड़ता से भी उन्होंने परहेज नहीं किया। लड़के का लड़की बनने के लिए संतरे का उपयोग करने वाला चुटकुला कितनी बार दोहराएंगे?
आयुष्मान खुराना नि:संदेह बेहतरीन एक्टर हैं। कुछ सीन उनके दम पर ही देखने लायक बने हैं, लेकिन पूजा के रूप में ओवरएक्टिंग भी की है। अनन्या पांडे के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था और उनके किरदार पर ध्यान नहीं दिया गया।
परेश रावल जैसे एक्टर का निर्देशक ढंग से उपयोग नहीं कर पाए। अन्नू कपूर को भी वैसे सीन नहीं मिले जो ड्रीम गर्ल में मिले थे। विजय राज, राजपाल यादव, असरानी, मनोज जोशी, अभिषेक बनर्जी, सीमा पाहवा और मनजोत सिंह ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया।
संगीतकार मीत ब्रदर्स और तनिष्क बागची ढंग का एक गीत भी नहीं दे पाए। टेक्नीकली भी फिल्म औसत से बेहतर है।
कुल मिलाकर ड्रीम गर्ल 2 देखने के बजाय उसका पहला पार्ट देख लेना ही बेहतर फैसला है।
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बैनर : बालाजी टेलीफिल्म्स
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निर्माता: शोभा कपूर, एकता कपूर
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निर्देशक : राज शांडिल्या
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गीतकार : कुमार, रश्मि विराग
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संगीतकार : मीत ब्रदर्स, तनिष्क बागची
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कलाकार : आयुष्मान खुराना, अनन्या पांडे, अन्नू कपूर, परेश रावल, विजय राज, राजपाल यादव, असरानी, मनोज जोशी, अभिषेक बनर्जी, सीमा पाहवा, मनजोत सिंह
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सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 13 मिनट 1 सेकंड
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रेटिंग : 1.5/5