देव (इरफान खान) अपनी पत्नी रीना (कीर्ति कुल्हारी) को अपने बेडरूम में उसके प्रेमी रंजीत (अरुणोदय सिंह) के साथ पाता है। वह न रीना को मारता है और न ही रंजीत को। वह तीसरा अनोखा रास्ता सोचता है। रंजीत को ब्लैकमेल करने का, लेकिन खुद अपने जाल में फंस जाता है।
स्टोरी आइडिया उम्दा है और निर्देशक अभिनय देव इस पर एक देखने लायक फिल्म बनाने में कामयाब हुए हैं। वैसे, इस कहानी पर बहुत कुछ काम किया जा सकता था, लेकिन सारी संभावनाओं का दोहन नहीं हो पाया। मूल कहानी के साथ कुछ उप कहानियां भी हैं, जो लगातार मनोरंजन का डोज देती रहती है।
देव के बॉस का 'टॉयलेट पेपर' का बिजनेस है। उसका मानना है कि पीने का पानी नहीं मिलता तो धोने में पानी क्यों बरबाद करना। पानी की निरंतर होती कमी को वह अपने व्यवसाय के लिए अवसर मानता है। हालांकि इस बात को लेकर कुछ ज्यादा ही सीन हो गए। कुछ कम किए जा सकते थे।
रंजीत के साथ उसकी पत्नी डॉली (दिव्या दत्ता) कुत्ते की तरह व्यवहार करती है क्योंकि वह एक पैसा नहीं कमाता। यह ट्रेक सिर्फ हंसाने के लिए रचा गया है। ऑफिस गॉसिप हैं। पुरुषों की फैंटेसी है। दिक्कत इस बात को लेकर है कि एक जैसे सीन की मात्रा कुछ ज्यादा ही हो गई है लिहाजा सेकंड हाफ में ये थोड़ा उबाते हैं क्योंकि इनमें नवीनता नहीं रहती।
'ब्लैकमेल' में आगे क्या होने वाला है ये अंदाजा लगाना मुश्किल है और यही बात फिल्म के पक्ष में जाती है। इस कारण फिल्म में अंत तक रूचि बनी रहती है। दूसरी खास बात है मजेदार किरदार। देव, उसका दोस्त, उसका बॉस, रंजीत, उसकी पत्नी, पत्नी के मां-बाप, एक जासूस, ये सब फनी हैं और इनको लेकर कुछ ऐसे सीन बनाए गए हैं जिन पर आप हंस सकते हैं।
फिल्म के शुरुआती 10-15 मिनट बोझिल हैं। शायद इन्हें देव की मनोदशा दिखाने के लिए रखा गया है जिसकी जिंदगी में कोई चार्म नहीं है। इसके बाद निर्देशक अभिनव देव की फिल्म पर पकड़ मजबूत हो जाती है। खासतौर पर अरुणोदय सिंह की एंट्री होने के बाद फिल्म में मनोरंजन का ग्राफ ऊंचा होने लगता है।
निर्देशक ने फिल्म को थ्रिलर बनाने के बजाय ह्यमूरस बनाने पर ज्यादा जोर दिया है। अभिनव का प्रस्तुतिकरण अच्छा है और उन्हें कलाकारों ने भी भरपूर सहयोग दिया है। स्क्रिप्ट में कुछ कमियां हैं, जिन्हें यहां पर लिखा नहीं जा सकता क्योंकि इससे फिल्म देखने का मजा बिगड़ सकता है, लेकिन ये कमियां फिल्म देखने में ज्यादा बाधक नहीं बनती हैं। देव और उसकी पत्नी का ठंडा रिश्ता, रंजीत और उसकी पत्नी का नफरत वाला रिश्ता क्यों है, इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है।
इरफान खान को संवाद कम दिए गए हैं और उन्हें चेहरे के भाव से ज्यादा काम चलाना पड़ा है, जिसमें उन जैसे काबिल अभिनेता को बिलकुल भी परेशानी नहीं हुई। अरुणोदय सिंह को अभिनय करते देखना अच्छा लगता है। उन्होंने तरह-तरह के चेहरे बना कर अपने किरदार को कॉमिक लुक दिया है। कीर्ति कुल्हारी एकमात्र ऐसी कलाकार रही जिनके साथ स्क्रिप्ट न्याय नहीं कर पाई। ओमी वैद्य, दिव्या दत्ता, गजराज राव (चावला), अभिजीत चव्हाण (पुलिस इंसपेक्टर) सहित अन्य अभिनेताओं का काम भी उम्दा है। उर्मिला मातोंडकर ने न जाने क्या सोच कर एक गाना किया है।
कुल मिलाकर ब्लैकमेल एक नई कहानी और बेहतरीन एक्टिंग के कारण देखी जा सकती है।