कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था? यह प्रश्न 'बाहुबली' के पहले भाग ने दर्शकों के सम्मुख अंत में छोड़ा था। तब से इसका जवाब खोजा जा रहा है जो 'बाहुबली: द कॉन्क्लूज़न' में मिलता है। यहां इस रहस्य से परदा नहीं उठाया जा रहा है। अहम सवाल यह है कि क्या जब फिल्म में इसका खुलासा होता है तो क्या आप ठगा महसूस तो नहीं करते क्योंकि सस्पेंस तो कैसे भी पैदा किया जा सकता है, लेकिन उसे खोलने के बाद जस्टिफाई करना मुश्किल काम है।
बाहुबली दो में इसका जवाब इंटरवल के बाद मिलता है। तब तक कहानी में ठोस कारण पैदा किए गए हैं ताकि दर्शक कटप्पा के इस कृत्य से सहमत लगे। भले ही दर्शक जवाब मिलने के बाद चौंकता नहीं हो, लेकिन ठगा हुआ भी महसूस नहीं करता क्योंकि तब तक फिल्म उसका भरपूर मनोरंजन कर चुकी होती है।
बाहुबली को के विजयेन्द्र प्रसाद ने लिखा है। इसकी कहानी रामायण और महाभारत से प्रेरित है। फिल्म के कई किरदारों में भी आप समानताएं खोज सकते हैं। महिष्मति के सिंहासन के लिए होने वाली इस लड़ाई में षड्यंत्र, हत्या, वफादारी, सौगंध, बहादुरी, कायरता जैसे गुणों और अवगुणों का समावेश है, जिनकी झलक हमें लगातार सिल्वर स्क्रीन पर देखने को मिलती है।
निर्देशक एस राजामौली ने इन बातों को भव्यता का ऐसा तड़का लगाया है कि लार्जर देन लाइफ होकर यह कहानी और किरदार दर्शकों को रोमांचित कर देते हैं। राजामौली की खास बात यह है कि बाहुबली के किरदार को उन्होंने पूरी तरह विश्वसनीय बनाया है। हाथी जैसी ताकत, चीते जैसी फुर्ती और गिद्ध जैसी नजर वाला बाहुबली जब बिजली की गति से दुश्मनों पर टूट पड़ता है और पलक झपकते ही जब उसकी तलवार दुश्मनों की गर्दन काट देती है तो ऐसा महसूस होता है कि हां, यह शख्स ऐसा कर सकता है। बाहुबली की इन खूबियों को फिल्म के दूसरे हिस्से में खूब भुनाया गया है।
'बाहुबली द कॉन्क्लूज़न' देखने के लिए 'बाहुबली: द बिगनिंग' याद होना चाहिए वरना फिल्म समझने में थोड़ी मुश्किल हो सकती है। हालांकि पहले भाग में महेंन्द्र बाहुबली के कारनामे थे तो इस बार उसके पिता अमरेन्द्र बाहुबली के हैरतअंगेज कारनामे देखने को मिलते हैं।
पिछली बार हमने देखा था कि महेंद्र बाहुबली को कटप्पा उसके पिता की कहानी सुनाता है। दूसरे भाग में विस्तृत रूप से इस कहानी को देखने को मिलता है। अमरेन्द्र और देवसेना के रोमांस को बेहद कोमलता के साथ दिखाया गया है। चूंकि पहले भाग के बाद कटप्पा की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी इसलिए दूसरे भाग में उसे ज्यादा सीन दिए गए हैं। कॉमेडी भी करवाई गई है। अमरेन्द्र और देवसेना तथा अमरेन्द्र और शिवागामी के साथ किस तरह से भल्लाल देव और उसका पिता षड्यंत्र करते हैं यह कहानी का मुख्य बिंदू है।
कहानी ठीक है, लेकिन जिस तरह से इसे पेश किया गया है वो प्रशंसा के योग्य है। फिल्म की स्क्रिप्ट बेहतरीन है और इसमें आने वाले उतार-चढ़ाव लूगातार मजा देते रहते हैं। हर दृश्य को बेहतर और भव्य बनाया गया है और फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं जो ताली और सीटी के लायक हैं।
जैसे, बाहुबली की एंट्री वाला दृश्य, बाहुबली और देवसेना के बीच रोमांस पनपने वाले सीन, बाहुबली और देवसेना के साथ में तीर चलाने वाला सीन, भरी सभा में देवसेना का अपमान करने वाले का सिर काटने वाला सीन, ऐसे कई दृश्य हैं।
इंटरवल तक फिल्म भरपूर मनोरंजन करती है। इंटरवल के बाद ड्रामा ड्राइविंग सीट पर आता है और फिर क्लाइमैक्स में एक्शन हावी होता है।
फिल्म की कमियों की बात की जाए तो कुछ को कहानी थोड़ी कमजोर लग सकती है। पहले भाग में जिस भव्यता से दर्शक चकित थे और दूसरे भाग से उनकी अपेक्षाएं आसमान छू रही थी, उन्हें दूसरे भाग की भव्यता वैसा चकित नहीं करती है। क्लाइमैक्स में सिनेमा के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ले ली गई है और दक्षिण भारतीय फिल्मों वाला फ्लेवर थोड़ा ज्यादा हो गया है। लेकिन इन बातों का फिल्म देखते समय मजा खराब नहीं होता है और इनको इग्नोर किया जा सकता है।
निर्देशक के रूप में एसएस राजामौली की पकड़ पूरी फिल्म पर नजर आती है। उन्होंने दूसरे भाग को और भव्य बनाया है। एक गाने में जहाज आसमान में उड़ता है वो डिज्नी द्वारा निर्मित फिल्मों की याद दिलाता है। कॉमेडी, एक्शन, रोमांस और ड्रामे का उन्होंने पूरी तरह संतुलन बनाए रखा है। जो आशाएं उन्होंने पहले भाग से जगाईं उस पर खरी उतरने की उन्होंने यथासंभव कोशिश की है। एक ब्लॉकबस्टर फिल्म कैसे बनाई जाती है ये बात वे अच्छी तरह जानते हैं और दर्शकों के हर वर्ग के लिए उनकी फिल्म में कुछ न कुछ है।
प्रभाष और बाहुबली को अलग करना मुश्किल है। वे बाहुबली ही लगते हैं। बाहुबली का गर्व, ताकत, बहादुरी, प्रेम, समर्पण, सरलता उनके अभिनय में झलकता है। उनकी भुजाओं में सैकड़ों हाथियों की ताकत महसूस होती है। ड्रामेटिक, एक्शन और रोमांटिक दृश्यों में वे अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। देवसेना के रूप में अनुष्का शेट्टी को इस भाग में भरपूर मौका मिला है। देवसेना के अहंकार और आक्रामकता को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया। वे अपने अभिनय से भावनाओं की त्रीवता का अहसास कराती हैं। भल्लाल देव के रूप में राणा दग्गुबाती अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज कराते हैं। शिवगामी बनीं रम्या कृष्णन का अभिनय शानदार हैं। उनकी बड़ी आंखें किरदार को तेज धार देती है। कटप्पा बने सत्यराज ने इस बार दर्शकों को हंसाया भी है और उनके किरदार को दर्शकों का भरपूर प्यार मिलेगा। नासेर भी प्रभावित करते हैं। तमन्ना भाटिया के लिए इस बार करने को कुछ नहीं था।
फिल्म की वीएफएक्स टीम बधाई की पात्र है। हालांकि कुछ जगह उनका काम कमजोर लगता है, लेकिन उपलब्ध साधनों और बजट में उनका काम हॉलीवुड स्टैंडर्ड का है। खास तौर पर युद्ध वाले दृश्य उल्लेखनीय हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक अच्छा है। गानों में जरूर फिल्म मार खाती है क्योंकि ये अनुवादनुमा लगते हैं, लेकिन इनका फिल्मांकन शानदार है। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है। सिनेमाटोग्राफी, सेट लाजवाब हैं। कलाकारों का मेकअप उनकी सोच के अनुरूप है।
बाहुबली 2 भव्य और बेहतरीन है। पहले भाग को मैंने तीन स्टार दिए थे क्योंकि आधी फिल्म को देख ज्यादा कहा नहीं जा सकता। पूरी फिल्म देखने के बाद चार स्टार इसलिए क्योंकि ब्लॉकबस्टर मूवी ऐसी होती है।
बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, एए फिल्म्स, आरको मीडिया वर्क्स प्रा.लि.
निर्देशक : एसएस राजामौली
संगीत : एमएम करीम
कलाकार : प्रभाष, राणा दग्गुबाती, अनुष्का शेट्टी, तमन्ना भाटिया, रामया कृष्णन, सत्यराज, नासेर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 47 मिनट 30 सेकंड्स
रेटिंग : 4/5