अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन शिखर सितारा थे तब कई निर्माताओं की पहुंच से वे दूर थे। इसलिए छोटे निर्माता अमिताभनुमा फिल्में मिथुन चक्रवर्ती के साथ बनाया करते थे और मिथुन को गरीबों का अमिताभ कहा जाता था। फॉक्स स्टार स्टुडियो ने रितिक रोशन के साथ-साथ बैंग बैंग नामक महंगी फिल्म बनाई थी जो किसी तरह बस लागत ही वसूल कर पाई थी। वैसी हॉलीवुड स्टाइल की देसी मूवी 'ए जेंटलमैन- सुंदर सुशील रिस्की' इसी बैनर ने सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ बनाई है जिनकी स्टारवैल्यू रितिक रोशन जैसी नहीं है। रितिक की तरह ही सिद्धार्थ को इस फिल्म में पेश किया गया है और इस फिल्म को बैंग बैंग का 'सस्ता' सीक्वल कह सकते हैं।
फिल्म निर्देशन कृष्णा डीके, राज निदिमोरू ने किया है, जिन्होंने 99 और शोर इन द सिटी जैसी कुछ अच्छी फिल्में बनाई हैं। राज और डीके का तकनीकी पक्ष मजबूत है और उनका कहानी कहने का तरीका चौंकाने वाला है, लेकिन स्क्रिप्ट के चुनने में उनकी पकड़ ढीली है। 'ए जेंटलमैन' में भी वे इस कमजोरी पर काबू नहीं कर पाए।
इंटरवल तक उन्होंने दर्शकों को गौरव और ऋषि की कहानी के जरिये खूब चौंकाया है। गौरव (सिद्धार्थ मल्होत्रा) मियामी में रहता है और सुंदर तथा अति सुशील है। एक सॉफ्टवेयर कंपनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट में काम करता है। उसकी दोस्त काव्या (जैकलीन मल्होत्रा) को गौरव में यही खराबी नजर आती है कि उसमें कोई खराबी नहीं है। हर तरह के नियम-कायदे वह मानता है और जिंदगी के प्रति उसका रवैया अति सुरक्षित है।
दूसरी ओर ऋषि (सिद्धार्थ मल्होत्रा) है जो हूबहू गौरव जैसा नजर आता है। उसकी लाइफ में रिस्क ही रिस्क है। वह कर्नल (सुनील शेट्टी) की यूनिट एक्स के लिए काम करता है। उसका काम एजेंट्स की तरह है और उसे विश्वास दिलाया जाता है कि वह जो भी खून-खराबा कर रहा है देश के लिए कर रहा है। ऋषि इस जिंदगी से ऊब गया है और उसे कर्नल की बातों पर भरोसा नहीं है।
फिल्म के पहले हिस्से में निर्देशक और लेखक ने दर्शकों के सामने ज्यादा पत्ते नहीं खोले हैं और दर्शक अपने स्तर पर ही पहेलियां बूझते रहते हैं। इंटरवल एक जोरदार ट्विस्ट पर होता है और इसे प्रस्तुतिकरण का कमाल कह सकते हैं। सेकंड हाफ से बहुत ज्यादा उम्मीद जाग जाती हैं और ये उम्मीद ही फिल्म पर भारी पड़ती है। फिल्म का सेकंड हाफ पहले हाफ की तुलना में कमजोर है और यहां पर कहानी की कमजोरी की कलई खुलने लगती है।
चूंकि फिल्म लार्जर देन लाइफ है, लिहाजा लेखक और निर्देशक ने कुछ ज्यादा ही लिबर्टी ले ली है। जिस तरह से विदेशी धरती पर ऋषि और उसके पीछे पड़े दुश्मन गोली-बारी करते हैं उसे देख आश्चर्य पैदा होता है कि वहां पुलिस या कानून जैसी चीजें हैं भी यहां नहीं। ऋषि और गौरव का कनेक्शन भी सहूलियत के हिसाब से लिखा गया है और जितनी आसानी से यह दिखाया गया है हकीकत में उतना ही मुश्किल है।
कहानी या स्क्रिप्ट के इन कमजोरियों को छोड़ दिया जाए तो फिल्म मनोरंजक लगती है। फिल्म के एक्शन सीक्वेंस (मुंबई की गलियों से लेकर मियामी की सड़कों तक), बाइक और कार के चेजि़ंग दृश्य, गोलीबार वाले सीन रोमांच से भरपूर है। दो बिल्डिंगो के बीच ऊंचाई पर कार का फंस जाने वाला सीन बेहतरीन बन पड़ा है।
एक्शन, रोमांस और कॉमेडी के बीच अच्छा संतुलन बनाया गया है। गौरव का काव्या को प्रपोज़ करने के लिए होटल में ले जाना, गे बनकर एक व्यक्ति को रिझाना, काव्या का जब यह जानना कि गौरव सुंदर और सुशील होने के साथ-साथ रिस्की भी है, काव्या के माता-पिता का गौरव के घर आने वाले सीन अच्छे बन पड़े हैं। यदि स्क्रिप्ट पर थोड़ी मेहनत और की जाती तो निश्चित रूप से फिल्म में और निखार आ जाता है। खास तौर पर सुनील शेट्टी का किरदार अधूरा सा लगता है। उसके बारे में फिल्म ज्यादा जानकारी नहीं देती।
डीके और राज का कहानी कहने का तरीका उम्दा है। उन्होंने फिल्म को स्लिक, स्टाइलिश और कूल लुक दिया है। उनका शॉट टेकिंग बढ़िया है। दूसरे हाफ में फिल्म कहीं-कहीं उबाऊ लगती है और इस तरह के दृश्यों से निर्देशक को बचना था।
एक्शन फिल्मों में सिद्धार्थ मल्होत्रा अच्छे लगते हैं और इस फिल्म में उनका काम अच्छा है। वे बेहद हैंडसम, फिट और स्टाइलिश लगे हैं। जैकलीन फर्नांडिस के लिए ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन जितना भी रोल उन्हें मिला उन्होंने अच्छे से निभाया है। गेस्ट अपियरेंस में सुनील शेट्टी इम्प्रेस नहीं कर पाए और कुछ हद तक लेखकों का भी दोष है कि उनका रोल ठीक से नहीं लिखा गया है। दर्शन कुमार और हुसैन दलाल का काम अच्छा है।
फिल्म का संगीत औसत है और सचिन-जिगर एक भी मधुर धुन नहीं दे पाए। रोमन जैकोबी की सिनेमाटोग्राफी जबरदस्त है और फिल्म को भव्य लुक देती है।
कई बार ऐसी फिल्में अच्छी लगती हैं जिसमें गुडलुकिंग हीरो-हीरोइन हो, खूबसूरत लोकेशन हो, स्टाइलिश एक्शन हो, भले ही स्क्रिप्ट में थोड़ी-बहुत खामियां हों, 'ए जेंटलमैन' इसी तरह की फिल्म है।