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भारत को आजादी दिलाने वाले कई हीरो ऐसे भी हैं, जो गुमनाम रह गए। जिनके बारे में नहीं के बराबर चर्चा हुई है। उनका योगदान किसी से भी कम नहीं है। ‘खेलें हम जी जान से’ ऐसे ही 64 लोगों की कहानी है जिन्होंने 18 अप्रेल 1930 को चिटगाँव में अँग्रेजों पर लगातार हमले कर एक क्रांति की शुरुआत की थी। उनके इस कदम ने न केवल बंगाल बल्कि पूरे भारत को अँग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया था।
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64 लोगों के इस समूह में 56 निडर किशोर थे। 5 क्रांतिकारियों के अलावा 2 महिलाएँ भी थीं। इनमें से एक थी कल्पना दत्ता जो एक अमीर परिवार से थी। उस दौर के मुताबिक वह बेहद पढ़ी-लिखी थी और बम कैसे बनता है यह जानने में उसकी रूचि थी।
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इस समूह का नेता था सुरज्य सेन, जो एक स्कूल में अध्यापक था। उसने ही ब्रिटिशों पर हमले करने की पूरी योजना बनाई थी। मानिनि चटर्जी की पुस्तक ‘डू एंड डाई - द चिटगाँव अपराइजिंग 1930-34’ पर आधारित फिल्म में इस घटना को एक थ्रिलर की तरह पेश किया गया है।
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निर्देशक के बारे में :
‘लगान’ और ‘जोधा अकबर’ जैसी चर्चित और सफल फिल्म बना चुके आशुतोष गोवारीकर एक बार फिर पीरियड फिल्म लेकर हाजिर हैं, जिसमें उन्हें महारत हासिल है। उनकी असफल फिल्म ‘स्वदेस’ को भी सराहना मिली थी। आशुतोष का कहना है कि ‘खेलें हम जी जान से’ के जरिये उन्होंने ऐसी घटना को सबके सामने लाने की कोशिश की है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।