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Last Modified: शुक्रवार, 27 सितम्बर 2024 (12:39 IST)

रूमानी फिल्मों के जरिए यश चोपड़ा ने दर्शको के बीच बनाई खास पहचान, कभी बनना चाहते थे इंजीनियर

yash chopra once wanted to be an engineer but became the film director - yash chopra once wanted to be an engineer but became the film director
बॉलीवुड में यश चोपड़ा को एक फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने रूमानी फिल्मों के जरिए दर्शको के बीच अपनी खास पहचान बनाई। पंजाब के लाहौर में 27 सितंबर 1932 को जन्में यश चोपड़ा के बड़े भाई बी.आर. चोपड़ा फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने निर्माता-निर्देशक थे। वर्ष 1945 में उनका परिवार पंजाब के लुधियाना में आकर बस गया था। 
 
कहा जाता है कि जब यश चोपड़ा पढ़ाई कर रहे थे, तब वह इंजीनियर बनना चाहते थे। वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लंदन भी जाने वाले थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनकी किस्मत उन्हें फिल्मों की ओर लेकर आई, वह फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनने के लिए मुंबई आ गए। 
 
अपने करियर के शुरूआती दौर में यश चोपड़ा ने आइ.एस .जौहर के साथ बतौर सहायक काम किया। बतौर निर्देशक यश चोपड़ा ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1959 में अपने भाई के बैनर तले बनी फिल्म 'धूल का फूल' से की। वर्ष 1961 में यश चोपड़ा को एक बार फिर से अपने भाई के बैनर तले बनी फिल्म धर्म पुत्र को निर्देशित करने का मौका मिला। इस फिल्म से ही बतौर अभिनेता शशि कपूर ने अपने सिने करियर की शुरूआत की थी। 
 
वर्ष 1965 में रिलीज फिल्म वक्त यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी उत्कृष्ठ फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म को बॉलीवुड की पहली मल्टीस्टारर फिल्म माना जाता है। वक्त में बलराज साहनी राजकुमार सुनील दत्त शशि कपूर और रहमान ने मुख्य भूमिकायें निभायी थीं। वर्ष 1969 में यश चोपड़ा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म इत्तेफाक रिलीज हुई। दिलचस्प बात है कि राजेश खन्ना और नंदा की जोड़ी वाली संस्पेंस थ्रिलर इस फिल्म में कोई गीत नहीं था बावजूद इसके फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया और उसे सुपरहिट बना दिया। 
 
वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘दाग’ के जरिए यश चोपड़ा ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और यश राज बैनर की स्थापना की। राजेश खन्ना शर्मिला टैगोर और राखी अभिनीत यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘दीवार’ यश चोपड़ा के सिने करियर के लिये मील का पत्थर साबित हुई।
 
वर्ष 1976 में यश चोपड़ा की फिल्म 'कभी कभी' रिलीज हुई। रूमानी पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में यश चोपड़ा ने एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन से रूमानी किरदार निभाकर दर्शकों को अंचभित कर दिया। माना जाता है कि यश चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन के जरिए गीतकार साहिर लुधियानवी की जिंदगी से जुड़े पहलुओं को रूपहले पर्दे पर पेश किया था। वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म सिलसिला यश चोपड़ा निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। माना जाता है कि इस फिल्म में अमिताभ और रेखा के जीवन को रूपहले पर्दे पर दर्शाया गया है।
 
वर्ष 1989 में श्रीदेवी और ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म चांदनी की कामयाबी के साथ यश चोपड़ा एक बार फिर से शोहरत की बुंलदियो पर जा पहुंचें। वर्ष 1991 में प्रदर्शित फिल्म लम्हे यश चोपड़ा के सिने करियर की अहम फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म के जरिए यश चोपड़ा ने यह दिखाने का प्रयास किया कि प्यार की कोई उम्र नही होती है। हालांकि यह फिल्म दर्शको की कसौटी पर खरी नही उतरी लेकिन समीक्षकों का मानना है कि यह फिल्म यश चोपड़ा के करियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में एक है।
 
वर्ष 1995 में यश चोपड़ा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे' रिलीज हुई। युवा प्रेम कथा पर बनी काजोल और शाहरुख खान के बेहतरीन अभिनय से सजी यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई। वर्ष 1997 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल तो पागल है' यश चोपड़ा निर्देशित सुपरहिट फिल्म में शुमार की जाती है। माधुरी दीक्षित शाहरूख खान और करिश्मा कपूर के बीच प्रेम त्रिकोण पर आधारित इस फिल्म के जरिये यश चोपड़ा ने दर्शको को यह बताया कि जोड़ी उपर वाले की मर्जी से स्वर्ग में बनती है। इस फिल्म के बाद बतौर निर्देशक यश चोपड़ा ने कुछ वर्षो तक बतौर निर्देशक काम करना बंद कर दिया।
 
यश चोपड़ा को अपने सिने करियर में 11 बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म के क्षेत्र उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए वर्ष 2001 में यश चोपड़ा फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादासाहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। यश चोपड़ा की अंतिम फिल्म 'जब तक है जान' वर्ष 2012 में रिलीज हुई। अपनी निर्मित पिल्मों के जरिए दर्शको को रूमानियत का अहसास कराने वाले यश चोपड़ा 21 अक्टूबर 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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