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Last Modified: रविवार, 6 अक्टूबर 2024 (10:44 IST)

पिता नहीं चाहते थे एक्टर बने विनोद खन्ना, तान दी थी बंदूक

Vinod Khannas father did not want him to become an actor some unknown facts - Vinod Khannas father did not want him to become an actor some unknown facts
बतौर खलनायक अपने करियर का आगाज कर नायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने वाले सदाबहार अभिनेता विनोद खन्ना ने अपने अभिनय से दर्शको के बीच अपनी अमिट छाप छोड़ी। विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। 
 
विनोद के जन्म के बाद भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया था, जिसके बाद उनका परिवार ने मुंबई शिफ्ट हो गया था। विनोद खन्ना अपने जमाने के सुपरस्टार थे। उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया था। स्नातक की शिक्षा के दौरान विनोद खन्ना को एक पार्टी के दौरान निर्माता-निर्देशक सुनील दत्त से मिलने का अवसर मिला। सुनील दत्त उन दिनों अपनी फिल्म 'मन का मीत' के लिए नए चेहरों की तलाश कर रहे थे। उन्होंने फिल्म में विनोद से बतौर सहनायक काम करने की पेशकश की जिसे विनोद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
 
घर पहुंचने पर विनोद को अपने पिता से काफी डांट भी सुननी पड़ी। विनोद ने जब अपने पिता से फिल्म में काम करने के बारे में कहा तो उनके पिता ने उन पर बंदूक तान दी और कहा, 'यदि तुम फिल्मों में गए तो तुम्हें गोली मार दूंगा।' बाद में विनोद की मां के समझाने पर उनके पिता ने विनोद को फिल्मों में दो वर्ष तक काम करने की इजाजत देते हुए कहा यदि फिल्म इंडस्ट्री में सफल नहीं होते हो तो घर के व्यवसाय में हाथ बंटाना होगा।
 
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म मन का मीत असफल रही, लेकिन विनोद को फिल्मों में पैर जमाने की जगह मिल गई। आन मिलो सजना, मेरा गांव मेरा देश, सच्चा झूठा जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाने का अवसर मिला, लेकिन इन फिल्म की सफलता के बावजूद विनोद खन्ना को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। विनोद को प्रारंभिक सफलता गुलजार की फिल्म मेरे अपने से मिली। 
 
इसे महज एक संयोग ही कहा जाएगा कि गुलजार ने बतौर निर्देशक करियर की शुरूआत की थी। छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म में मीना कुमारी ने भी अहम भूमिका निभाई थी। फिल्म में विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच टकराव देखने लायक था। वर्ष 1973 में विनोद खन्ना को एक बार फिर से निर्देशक गुलजार की फिल्म 'अचानक' में काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1974 में प्रदर्शित फिल्म इम्तिहान विनोद के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई।
 
वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म 'अमर अकबर एंथनी' विनोद के सिने करियर की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई। मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी यह फिल्म 'खोया पाया' फार्मूले पर आधारित थी। तीन भाइयों की जिंदगी पर आधारित इस मल्टीस्टारर फिल्म में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ने भी अहम भूमिका निभाई थी।
 
वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म 'कुर्बानी' विनोद खन्ना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। फिरोज खान के निर्माण और निर्देशन में बनी इस फिल्म में विनोद खन्ना ने अपनी दमदार अभिनय सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित किए गए।
 
अस्सी के दशक में विनोद शोहरत की बुलंदियो पर जा पहुंचे और ऐसा लगने लगा कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को उनके सिंहासन से विनोद उतार सकते हैं लेकिन विनोद ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया और आचार्य रजनीश के आश्रम की शरण ले ली। 
 
वर्ष 1987 में विनोद खन्ना ने एक बार फिर से फिल्म "इंसाफ" के जरिये फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया। वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म "दयावान" विनोद के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है। हालांकि यह फिल्म टिकट खिड़की पर कामयाब नहीं रही लेकिन समीक्षको का मानना है कि यह फिल्म विनोद खन्ना के करियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में एक है।
 
फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद विनोद खन्ना ने समाज सेवा के लिए वर्ष 1997 राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से वर्ष 1998 में गुरदासपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बने। बाद में उन्हें केन्द्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया।
 
वर्ष 1997 में अपने पुत्र अक्षय खन्ना को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए विनोद खन्ना ने फिल्म हिमालय पुत्र का निर्माण किया। दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखते हुये विनोद खन्ना ने छोटे पर्दे की ओर भी रूख किया और महाराणा प्रताप और मेरे अपने जैसे धारावाहिकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया है। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले विनोद खन्ना 27 अप्रैल 2017 को अलविदा कह गए।
 
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