7 अगस्त 2019 को 93 वर्ष की उम्र में जे. ओमप्रकाश ने आखिरी सांस ली और उनके निधन के बाद उनकी पहचान यह कह कर बताई जा रही है कि वे रितिक रोशन के नाना थे। इस पहचान के जे. ओमप्रकाश मोहताज नहीं थे बल्कि एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई और हिंदी फिल्म उद्योग को कई सफल फिल्में उन्होंने दी।
बॉलीवुड में ऐसे कई सफल निर्माता-निर्देशक और हीरो रहे हैं जो विभाजन के बाद भारत चले आए और इनमें जे. ओम प्रकाश भी शामिल थे। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के उत्तर-पूर्व में स्थित सियालकोट में उनका जन्म 24 जनवरी 1927 को हुआ था लेकिन उनकी कर्मभूमि मुंबई बनी।
फिल्मयुग नाम का उन्होंने बैनर बनाया और इस बैनर तले उन्होंने सबसे पहले 'आस का पंछी' नामक फिल्म का निर्माण 1961 में किया। इस फिल्म में राजेन्द्र कुमार और वैजयंतीमाला जैसे सितारे थे जो उस समय अपने करियर के शिखर पर थे। यह एक ऐसे युवक की कहानी थी जो सेना में जाकर देश के लिए काम करना चाहता था, लेकिन पिता की इच्छा की खातिर उनके साथ ऑफिस में काम करता है।
इस फिल्म में शंकर-जयकिशन ने संगीत दिया था और 'तुम रूठी रहो' और 'दिल मेरा एक आस का पंछी' जैसे गाने हिट रहे थे। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और निर्माता के रूप में जे. ओमप्रकाश ने अपनी जगह बना ली।
इस फिल्म के बाद उन्होंने 'आई मिलन की बेला' राजेन्द्र कुमार और सायरा बानू के साथ बनाई। धर्मेन्द्र इस फिल्म में विलेन के रूप में दिखाई दिए। 1964 में रिलीज हुई यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। शंकर-जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध किए गए गाने 'तुम कमसिन हो नादां हो', 'ओ सनम तेरे हो गए हम' और 'तुमको हमारी उमर लग जाए' आज भी गुनगुनाए जाते हैं।
इसके बाद जे. ओमप्रकाश का निर्माता के रूप में नाम और कद बढ़ गया। 1966 में उन्होंने एक और सुपरहिट फिल्म 'आए दिन बहार के' धर्मेन्द्र और आशा पारेख के साथ बनाई। इसी जोड़ी के साथ 1969 में 'आया सावन झूम के' नामक सुपरहिट फिल्म उन्होंने बतौर निर्माता दी। इस फिल्म के गाने भी बेहद लोकप्रिय रहे।
बड़े सितारे, मधुर संगीत और सरल कहानी उनकी फिल्मों की खासियत रही जो दर्शकों ने बेहद पसंद की। निर्माता के रूप में वे अपनी फिल्म पर बारीकी से नजर रखते थे। 1972 में 'आंखों आंखों में' का निर्माण करने के बाद जे. ओमप्रकाश ने निर्देशक के रूप में अपनी पारी शुरू करने का फैसला लिया। निर्माता के रूप में सफल फिल्म देने के बाद उनमें फिल्म निर्देशक बनने का आत्मविश्वास आ गया था।
राजेश खन्ना उस समय सफलता के रथ पर सवार थे। काका और मुमताज को लेकर जे.ओमप्रकाश ने 'आप की कसम' (1974) फिल्म निर्देशित की। संगीतकार के रूप में उन्होंने राहुलदेव बर्मन को लिया। आरडी बर्मन ने बहुत ज्यादा रकम की मांग की जो जे. ओमप्रकाश ने अधूरे मन से मान ली।
आपकी कसम को दर्शकों ने सुपरहिट बना दिया। फिल्म को क्रिटिक्स की भी तारीफ मिली। यह एक ऐसे शख्स की कहानी थी जो अपनी पत्नी पर शक करता है। फिल्म का संगीत कमाल का था। 'जय जय शिव शंकर', करवटें बदलते रहे', 'पास नहीं आना', सुनो कहो कहा सुना' और 'जिंदगी के सफर में' आज भी सुने जाते हैं।
1975 में जे. ओमप्रकाश ने 'आंधी' जैसी फिल्म को भी प्रोड्यूस करने की हिम्मत की, जिसे गुलज़ार ने निर्देशित किया था। कहा गया कि यह फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन से प्रेरित है। इसलिए इस फिल्म पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध भी लगा था। फिल्म को क्रिटिक्स ने खासा पसंद किया। फिल्मफेअर अवॉर्ड्स में इसे सात श्रेणियों में नामित किया गया और यह फिल्म दो पुरस्कार जीतने में सफल रही। फिल्म का संगीत कमाल का था।
रमेश सिप्पी की शोले के बाद सिनेमा का परदा खून से लाल हो गया। हिंसा और मारधाड़ से भरी फिल्मों का बोलबाला हो गया। उस दौर में जे. ओमप्रकश ने 'आक्रमण' नामक वॉर फिल्म बनाई। साथ ही उन्होंने 'क्या चल रहा है' से प्रभावित होने के बजाय पारिवारिक फिल्में बनाना जारी रखा।
जीतेन्द्र को लेकर उन्होंने 'अपनापन' (1977), आशा (1980), 'अपना बना लो' (1982), अर्पण (1983) जैसी सफल फिल्में बनाईं जो पारिवारिक फिल्में थीं और जिनके गाने मधुर थे। 1985 में उन्होंने 'आखिर क्यों' नामक चर्चित फिल्म भी बनाई, जिसे उनके बैनर की अंतिम उल्लेखनीय फिल्म कहा जा सकता है।
अस्सी और नब्बे के दशक में खराब फिल्में बनने लगीं और ऐसे दौर में जे. ओमप्रकाश असहज महसूस करने लगे। उम्र भी बढ़ गई थी। अग्नि (1988), अजीब दास्तां है ये (1992), आदमी खिलौना है (1993) और अफसाना दिलवालों का (2001) उनके बैनर तले बनीं। लेकिन यह फिल्में न तो कामयाबी हासिल कर पाईं और न ही उनके बैनर की पिछली फिल्मों जैसी स्तरीय थीं। इसके बाद जे. ओमप्रकाश रिटायर्ड लाइफ जीने लगे।
मधुर संगीत, सरल और पारिवारिक कहानियां उनकी फिल्मों की सफलता का राज रहा। राजेन्द्र कुमार, धर्मेन्द्र और जीतेन्द्र उनके प्रिय सितारे रहे जिनके साथ उन्होंने सफल फिल्में बनाईं।
'अ' शब्द से उनका विशेष मोह था। उनकी सारी फिल्मों के नाम इसी शब्द से शुरू हुए। इसके बारे में उनका कहना था कि एक बार उन्होंने दूसरे शब्द से फिल्म शुरू की थी, लेकिन वह अटक गई जिसके बाद उन्हें महसूस हुआ कि 'अ' शब्द ही उनके लिए भाग्यशाली है।
उनकी बेटी पिंकी की शादी फिल्म अभिनेता, निर्माता और निर्देशक राकेश रोशन से हुई और इस तरह रिश्ते में वे रितिक रोशन के नाना हुए, लेकिन एक निर्माता-निर्देशक के रूप में उनकी पहचान कई गुना बड़ी है।