हास्य फिल्मों के लिहाज से हिंदी फिल्मों में अकाल ही रहा है। यहां बात हो रही है शुद्ध हास्य फिल्मों की जो द्विअर्थी संवादों और अश्लील इशारों से मुक्त हो। ज्यादातर हास्य फिल्मों में इसे ही कॉमेडी मान लिया जाता है। इससे बात नहीं बनती तो अजीब सी शक्ल बनाना, उटपटांग मेकअप कर लेना, शारीरिक अक्षमताओं का मजाक बनाना को कॉमेडी के रूप में पेश किया जाता है।
सिचुएशनल कॉमेडी के नाम पर बहुत कम देखने लायक फिल्में बनी हैं। हां, ऋषिकेश मुखर्जी ने कुछ यादगार फिल्में बनाई हैं जो बार-बार देखी जा सकती हैं। इसमें से एक है 'चुपके चुपके'।
इसे ऋषिदा ने 1975 में धर्मेन्द्र, शर्मिला टैगोर, अमिताभ बच्चन और जया बच्चन को लेकर बनाया था। यह ऐसी फिल्म है जो हर बार देखने में नई लगती है। बार-बार देखे गए हास्य सीन कभी बोरिंग नहीं लगते।
फिल्म के सारे किरदार भले और सभ्य हैं। हास्य का निर्मल बहाव लगातार बहता रहता है और फिल्म देखने के बाद आप काफी हल्का महसूस करते हैं।
जिंदगी के प्रति कुछ ज्यादा ही गंभीरता नहीं रखना चाहिए यह बात भी फिल्म देखते समय महसूस होती है।
उपेन्द्रनाथ गांगुली के उपन्यास पर 'छद्मभेष' नामक बंगाली फिल्म बनी थी। उसी का हिंदी रीमेक ऋषिकेश मुखर्जी ने चुपके चुपके नाम से बनाया।
फिल्म की कहानी इस प्रकार थी- प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी (धर्मेन्द्र) की शादी सुलेखा चतुर्वेदी (शर्मिला टैगोर) से होती है। सुलेखा के मुंह से उसके जीजा राघवेंद्र (ओमप्रकाश) की तारीफ सुन-सुन कर परिमल पक जाता है। वह सुलेखा को बोलता है कि उसके जीजा उतने चतुर नहीं हैं जितनी वह सोचती है।
इस बात को साबित करने के लिए परिमल एक योजना बनाता है। वह प्यारे नामक ड्राइवर बन कर जीजा के यहां नौकरी कर लेता है। जीजा को भनक ही नहीं है कि परिमल, सुलेखा का का पति है। बाद में सुलेखा भी जीजा के घर आ जाती है।
प्यारे और सुलेखा का रोमांस शुरू होता है और जीजा परेशान हो जाते हैं। इसके बाद परिमल अपने दोस्त सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) को परिमल बनाकर जीजा के यहां पहुंचाता है। इससे जीजा के लिए परिस्थितियां और विषम हो जाती हैं।
वसुधा (जया बच्चन) को सुकुमार चाहता है, लेकिन वह उसे परिमल समझ भाव नहीं देती। इससे सुकुमार की प्रेम कहानी हिचकोले खाती हैं। कई हास्यास्पद परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं और आखिर में सारा भेद खुलता है।
इस मजेदार कहानी को ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने अनुभवी निर्देशन के सहारे रोचक तरीके से पेश किया है। पूरी फिल्म आपको गुदगुदाती रहती है क्योंकि कई 'अगर-मगर' वाली परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं।
प्यारे और सुलेखा का रोमांस, जीजा का परेशान होना, प्यारे और सुलेखा का घर से भाग जाना और उसी दरमियान परिमल (सुकुमार) का आ धमकना, सुकुमार और वसुधा की लव स्टोरी जैसे कई प्रसंग साथ चलते हैं जो ठहाके लगाने पर मजबूर करते हैं।
फिल्म में वैसे वन लाइनर नहीं हैं जैसे कि आज की कॉमेडी फिल्मों में होते हैं क्योंकि 'चुपके चुपके' में सिचुएशनल कॉमेडी के सहारे खूब हंसाया गया है और यही बात इस फिल्म को महान कॉमेडी फिल्म बनाती है। अगर संवादों के जरिये हंसाना है तो रेडियो नाटक ही बहुत है, उसके लिए फिल्म क्यों जरूरी है?
जीजा बने ओमप्रकाश शुद्ध हिंदी बोलते हैं। उनकी इसी आदत का फायदा उठा कर प्यारे हिंदी के ऐसे-ऐसे शब्द बोलता है कि जीजा बगले झांकते हैं। इसको लेकर फिल्म में हास्य रचा गया है। एक संवाद के जरिये यह स्पष्ट भी किया गया है कि हिंदी का मखौल नहीं उड़ाया जा रहा है।
फिल्म में बड़े सितारे हैं, लेकिन ऋषिकेश मुखर्जी का निर्देशन इन सितारों से बिलकुल भी प्रभावित नहीं हुआ। उन्होंने इन सितारों के फैंस को खुश करने के लिए कोई सीन नहीं गढ़े। सितारों को उन्होंने कलाकार ही रखा।
यह फिल्म उसी वर्ष रिलीज हुई जब अमिताभ और धर्मेन्द्र की शोले रिलीज हुई थी। शोले में जहां ये दोनों कलाकार लार्जर देन लाइफ रोल में थे वहीं चुपके चुपके में सौम्य और आम लोगों जैसे नजर आए।
धर्मेन्द्न को 'खून पी जाऊंगा' जैसे किरदारों के लिए ही याद किया जाता है और यह उनके साथ नाइंसाफी है। वे कितनी अच्छी कॉमेडी कर लेते हैं यह 'चुपके चुपके' देख पता चलता है। वे फिल्म में बेहद हैंडसम नजर आए। हर सीन उनकी कॉमिक टाइमिंग के कारण लाजवाब बना है। चुपके चुपके उनके करियर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है।
शर्मिला ने धर्मेन्द्र का साथ बखूबी निभाया। अमिताभ की भूमिका धर्मेन्द्र के मुकाबले कमतर है। उनका रोल कुछ इस तरह का है कि उन्हें 'ओवरएक्ट' करना था। यानी कि वे 'एक्टिंग' कर रहे हैं ऐसा नजर आए और यह काम अमिताभ ने बहुत ही इत्मीनान के साथ किया। जया बच्चन अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं।
ओमप्रकाश अपनी भूमिका से ज्यादा उम्र के नजर आते हैं और यह बात फिल्म देखते समय थोड़ी अखरती है, लेकिन इसलिए इग्नोर की जा सकती है कि उनका अभिनय शानदार है। धर्मेन्द्र के टक्कर का रोल उन्हें मिला है और उन्होंने इतना बढ़िया तरीके से इसे अदा किया है कि फिल्म देखने के बाद वे भी याद रहते हैं।
असरानी, केश्टो मुखर्जी, उषा किरण, लिली चक्रवर्ती, डेविड छोटी-छोटी भूमिकाओं में अपना कमाल दिखाते हैं।
एसडी बर्मन द्वारा संगीतबद्ध किए गीत- अब के सजन सावन में (लता मंगेशकर), बागों में कैसे ये फूल खिलते हैं (मुकेश-लता), चुपके चुपके चल रे पुरवैया (लता) बेहतरीन गीत हैं जो आज भी सुनने में अच्छे लगते हैं।
चुपके चुपके एक ऐसी फिल्म है जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जाए तो मजा बढ़ जाता है। हर उम्र और वर्ग के दर्शकों का यह मनोरंजन बार-बार करती है।