अजय देवगन द्वारा निर्देशित फिल्म 'शिवाय' दिवाली पर प्रदर्शित हो रही है। पेश है अजय से बातचीत :
'शिवाय' का ट्रेलर देख लगता है कि कई बातें छिपी हुई हैं?
हाँ, मैं चाहता हूँ की कई बातें आप सिनेमाघर आकर ही पता करें। ये इमोशनल ड्रामा है। बाप-बेटी की कहानी है। आपको फिल्म जरूर दिलचस्प लगेगी।
आप एक्शन और कॉमेडी को बैलेंस कैसे करते हैं?
इस फिल्म में ड्रामा ज्यादा है, कॉमेडी नहीं है। यह इमोशनल ड्रामा है।
पहले भी आपने दृश्यम की थी जो पारिवारिक फिल्म थी।
दृश्यम मैंने स्क्रिप्ट के हिसाब से की थी। यह एक अलग कहानी है, आज के जमाने में बाप-बेटी के रिश्ते को देखते हुए यह फिल्म बनाई है।
फिल्म का नाम शिवाय क्यों है?
मेरे किरदार का नाम शिवाय है, यह धार्मिक फिल्म नहीं है। वैसे भी शिवजी ऐसे भगवान हैं जिन्हें हम भोला भंडारी भी कहते हैं और समय आने पर वे विनाश भी करते हैं। यह व्यक्तित्व आज कल के इंसान में भी मिलता है।
क्रिटिक्स कितने मायने रखते हैं ?
आजकल हर कोई क्रिटिक हो गया है, मुझे लगता है लोगों को पढ़ाई-लिखाई कर इस क्षेत्र में आना चाहिए।
सुना है कि शिवाय एक कॉमिक्स के रूप में भी आ रहा है।
ट्रेलर देखकर एक कॉमिक्स कंपनी ने आइडिया दिया जो मुझे पसंद आया और मैंने हाँ कह दिया। हालांकि फिल्म की कहानी कॉमिक्स से अलग है।
फिल्म का एक्शन कैसा है?
एक्शन काफी अलग है, जो इमोशन के साथ जुड़ा हुआ है, मैंने काफी रीयल ट्रीट करने की कोशिश की है। मेरा मकसद हॉलीवुड स्टाइल का एक्शन सबके सामने लाना है। मुझे अपनी टीम पर भरोसा था, आज सब खुश हैं। मुश्किल था, लेकिन बढ़िया हुआ।
क्या यह किसी फिल्म से प्रेरित है ?
नहीं, बिल्कुल नहीं।
फिल्म में विदेशी कलाकार क्यों लिए गए हैं?
स्क्रिप्ट की डिमांड थी अन्यथा हमारे देश में एक्टर्स की कमी नहीं है।
आपको लगता है की दिवाली ख़ास होने वाली है?
मुझे ज्यादा तो नहीं पता, लेकिन जितना ऊपरवाले ने साथ दिया है, आशा है अभी भी उतना ही साथ देगा।
पाकिस्तानी एक्टर्स के मुद्दे पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
मुझे पाकिस्तानी एक्टर्स पसंद हैं, मैंने उनके साथ काम किया है, लेकिन कभी-कभी ऐसे हालात हो जाते हैं जहां पर बात देश की होती है। हमारे जवान के परिवार के बारे में सोचना चाहिए। वो जवान आपके लिए जिंदगी दे देता है। मुझे लगता है की उस वक्त हमें अपने देश के लिए खड़ा रहना चाहिए। देश सबसे ऊपर है। अक्षय कुमार ने भी कहा हम लोगों को अपने लोगों का सपोर्ट करना चाहिए। कल्चरल एक्सचेंज नहीं हो सकते।
अपनी सफलता को कैसे देखते हैं ?
अभी रास्ता बहुत लंबा है, काम करने की भूख बनी रहनी चाहिए।
ऐ दिल है मुश्किल भी साथ ही रिलीज हो रही है, थिएटर बराबर मिले हैं ?
मुझे लगता है की थिएटर बराबर मिले हैं। ऑडियंस को फिल्म देखने दीजिये और उन्हें ही निर्णय लेने दीजिये।
आप किसी कैंप का हिस्सा नहीं हैं?
देखिये कैम्प जैसी कोई चीज नहीं होती। मेरा मानना है कि मैं आपके काम में दखल नहीं दे रहा हूँ, तो आप भी मेरे काम में दखलंदाजी मत दीजिए।