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हाफ गर्लफ्रेंड यानी कि दोस्त से ज्यादा: चेतन भगत

हाफ गर्लफ्रेंड यानी कि दोस्त से ज्यादा: चेतन भगत - Half Girlfriend, Chetan Bhagat, Arjun Kapoor, Shraddha Kapoor
चेतन भगत इस समय देश के बड़े चर्चित उपन्यासकारों में से एक माने जाते हैं। उनके लिखे उपन्यासों पर टू स्टेस्ट,  काई पो छे और 3 इडियट्स जैसी हिट फिल्में बनी हैं। अब हाफ गर्लफ्रेंड आ रही है। उनसे बात की 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष ने।
 
'हाफ गर्लफ्रेंड' ने फिल्म का रूप कब लिया?
मेरी 'हाफ गर्लफ्रैंड' छपी भी नहीं थी कि मोहित ने कहा कि मैं इस पर फिल्म बना रहा हूं। किताब छपकर आने के भी पहले ये फिल्म अनाउंस भी हो गई।
 
आमतौर पर कोई भी लेखक कभी भी निर्माता बनने की नहीं सोचता है। कैसा लगता है अब? 
'हाफ गर्लफ्रेंड' मुझे अच्छी लगी। कितनी सुंदर बनकर आई है यह फिल्म। मेरे हाथ में तो सिर्फ कहानी थी जिसे मैंने लिखा। अगर मैं अपनी बातों को समझाने के लिए कहूं तो ऐसा लगा, जैसे कि अपनी बेटी, जिसको आपने खिलाया हो और जब वही इतनी बड़ी हो जाए कि उसकी शादी हो रही हो और आप उसे दुल्हन के लिबास में देख कह उठते हैं कि कि अरे मेरी छोटी-सी बेटी कितनी बड़ी हो गई। ठीक वैसे ही लगा कि मेरी कहानी में कितनी चमक-दमक शामिल हो गई।
 
कितनी तब्दीलियां की हैं निर्देशक मोहित सूरी ने?
अगर मेरी किताब पर फिल्म बन रही है तो कुछ तो कटेगा ही। पूरी किताब पर फिल्म बनाएंगे तो चार घंटे लंबी हो जाएगी। अब मेल-मिलाप के सीन के लिए मैंने कुछ पन्ने भरे हैं तो वहीं मोहित ने उसे 3-4 सीन में ही खत्म कर दिया है। एक गाना मेरे 40 पृष्ठों की बात कह देता है। 
 
ये 'हाफ गर्लफ्रेंड' नाम क्या होता है?
हमारे देश में जहां आज भी डेटिंग को एक बहुत बड़ी अजीब बात माना जाता है, वहां आप एक ऐसे शख्स से मिलते हैं जिसके बारे में आप तय नहीं कर पाते हैं। आप आपस में कभी एक-दूसरे को फॉर्मल तौर पर कोई बात नहीं कहते हैं लेकिन असलियत में आप आपस में दोस्तों से कुछ ज्यादा हैं। आजकल के तकनीक के दौर में जहां आप लोगों से जुड़ जाते हैं, लेकिन किसी को गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड नहीं कहते हैं। वैसे आप दोस्त से ज्यादा है, तो मैंने ये नाम कहीं से ईजाद नहीं किया है। बस एक नाम दे दिया अपनी किताब को।
आपने नेपोटिस्म का सामना किया है, आप भी तो नए निर्माता बने हैं?
मैं खुद कभी इस पर यकीन नहीं रखता और मैं इसका उदाहरण तो बिलकुल भी नहीं हूं। लेकिन सच ये भी है कि भारतीयों को नेपोटिस्म पसंद भी तो है। अब मैं अगर आपको कहूं कि एक नया लड़का है। देश के छोटे से शहर से आया है और बहुत ही बेहतरीन अभिनेता है, वहीं दूसरी तरफ मैं कहूं कि एक फिल्म है जिसमें सुपरस्टार का बेटा है, जो अब बड़ा हो गया है और बतौर एक्टर आ रहा है। आप किसकी फिल्म देखोगे? जाहिर है कि आप में एक जिज्ञासा रहेगी उस स्टार के बेटे को देखने की। लेकिन हां, जो बदला है वो ये कि दर्शक कहने लगे हैं कि ठीक है कि आप किसी के बेटा या बेटी हैं लेकिन आपको काम तो आना ही चाहिए। अगर आप ने परफॉर्म नहीं किया तो आप गए। वैसे भी कोई भी निर्माता किसी भी हीरो को अपनी दोस्ती के चलते तो हीरो नहीं बना देगा। निर्माता भी देखेगा कि इसमें दमखम है या नहीं? अब हम और भी ज्यादा कंटेंट और परफॉर्मेंस की मांग करने लगे हैं।
 
कभी बच्चों के बारे में लिखने का नहीं सोचा?
मेरी पहुंच युवाओं में बहुत है। मेरी इच्छा भी हुई कि मैं बच्चों के लिए भी लिखूं। मेरी तो खुद की एक बेटी भी है लेकिन बच्चों के लिए लिखना बहुत मुश्किल होता है। बच्चों का ध्यान खींचना ही बहुत मुश्किल का काम है। उनके पास तो विदेशी साहित्य भी बहुत सारा है। मेरी इच्छा हमेशा ऐसी रही है कि मेरे लिखे से लोगों के विचार बने और विचारधारा को रूप मिले। युवाओं की उमर भी वही होती है।
 
चेतन भगत के नॉवेल लिखने का क्या तरीका है?
ये भगवान का दिया उपहार है। अगर मुझे महिलाओं के बारे में लिखना है तो मैं कई महिलाओं से बातें करूंगा। अलग-अलग विषयों पर बात करूंगा। कभी पूछ लूंगा कि वर्किंग महिलाओं की क्या परेशानियां हैं। फिर किसी एक दिन मैं उसे मिलाऊंगा और लिख दूंगा। लेकिन लिखते समय मैं बहुत सारी रिसर्च करूंगा। लिखते समय मैं सुबह-शाम नहीं देखता। बस, मैं मुंबई से दूर चला जाता हूं।
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