जयललिता के साक्षात्कारों को जब हम पढ़ते या देखते हैं तो पता चलता है कि जिंदगी में जैसे-जैसे बाधाएं उनके सामने आती गईं वे अपनी राह बनाती चली गईं। वे उस नदी के समान हैं जो पहाड़ और चट्टानों के बीच से अपना रास्ता बनाना जानती हैं। तमाम उतार-चढ़ाव के बीच उन्होंने जिंदगी को वैसे ही लिया जैसी वो सामने से आई और उसके सींग पकड़ कर उसका मुकाबला किया। न वे फिल्म में आना चाहती थीं और न ही राजनीति में, लेकिन आना पड़ा और जब वे मैदान में उतर गईं तो उन्होंने अपना सौ प्रतिशत दिया और फिल्म तथा राजनीति में शिखर पर रहीं।
सिमी ग्रेवाल के चैट शो में जयललिता ने बताया कि उन्हें फिल्म और फिल्म करियर बिलकुल भी पसंद नहीं था। घर की आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण उन्होंने अभिनय की दुनिया में आना स्वीकारा। जयललिता की मां वेदावल्ली फिल्मों में मां और बहन के किरदार निभाती थीं और उन्हें फिल्में मिलना कम हो रहा थी। वेदावल्ली को भी अपने पति जयराम की असमय हुई मृत्यु के कारण फिल्मों में काम करना पड़ा था, तब जयललिता की उम्र दो वर्ष थी।
16 वर्ष की जयललिता का सोचना था कि वे अमीर हैं, लेकिन जब मां के संघर्ष और आर्थिक परिस्थिति को पता चला तो उन्होंने अभिनय करने का निश्चय किया। वैसे भी उन्हें निर्माता-निर्देशकों के लगातार ऑफर मिल रहे थे क्योंकि वेदावल्ली से मिलने निर्माता-निर्देशक अक्सर उनके घर आते थे।
जयललिता एक होशियार छात्र थीं। कक्षा में हमेशा प्रथम आती थीं। उन्हें बेस्ट स्टुडेंट का पुरस्कार और स्कॉलरशिप भी मिली थी, जिसे उन्होंने वापस कर दिया था। दक्षिण भारत में नृत्य और संगीत को बहुत महत्व दिया जाता है और हर घर में यह विधा सीखी जाती है। जयललिता भी शास्त्रीय संगीत, पाश्चात्य क्लासिकल पियानो, भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी और कत्थक में पारंगत हो चुकी थी। ये सब बातें उन्हें अभिनय में काम आईं।
बतौर लीडिंग रोल करने के पहले वे कैमरे और शूटिंग से परिचित हो चुकी थीं। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में कुछ फिल्मों में काम भी किया। पहली बार कैमरे का सामना करने का किस्सा बड़ा मजेदार है। वे अपनी मां के साथ स्टुडियो गई थीं। जयललिता शूटिंग देख रही थी। पास में ही दूसरी फिल्म की शूटिंग चल रही थी और वहां पर समस्या आ खड़ी हुई। एक स्कूल ड्रामा का सीन फिल्माया जा रहा था और पार्वती का किरदार निभाने वाली बच्ची का अता-पता नहीं था। जयललिता को देख निर्माता-निर्देशक ने उनकी मां से विनती की कि जयललिता को यह किरदार निभाने की अनुमति दे और इस तरह से पार्वती का किरदार जयललिता ने निभाया।
13 वर्ष की उम्र में जयललिता ने 'एपिस्टल' नाम अंग्रेजी फिल्म की। हिंदी फिल्म 'मनमौजी' में भी उन्होंने बतौर बाल कलाकार कृष्ण बन तीन मिनट का डांस सीक्वेंस किया। 16 वर्ष की उम्र से उन्होंने कन्नड़, तमिल और तेलुगु फिल्मों में लीड एक्ट्रेस के रूप में अपना करियर आरंभ कर दिया।
उम्र के इस मोड़ पर जयललिता पढ़ाई और अभिनय साथ-साथ कर रही थीं। वे वकील बनना चाहती थीं, लेकिन जब उनकी कन्नड़ फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हो गई तो उन्होंने अभिनय को ही अपना करियर क्षेत्र चुन लिया। जयललिता को सफलता तुरंत मिली और देखते ही देखते वे नंबर वन हीरोइन बन गई।
दक्षिण भारत के तमाम बड़े फिल्मकारों के साथ काम करने का उन्हें अवसर मिला। एमजी रामाचंद्रन के साथ उनकी जोड़ी खूब पसंद की गई। 1965 से 1973 के बीच उनकी एमजीआर और जयललिता की 28 फिल्में प्रदर्शित हुईं और ज्यादातर सुपरहिट रही। 1965 में जयललिता की 11 तमिल फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की।
जयललिता का नाम इतना चल पड़ा कि उन्हें ध्यान में रख कर फिल्मों की कहानियां लिखी जाने लगी। हीरो से ज्यादा मजबूत रोल जयललिता का होता था। फिल्मों के नाम भी उनके किरदार के नाम पर रखे जाते थे। एमजीआर और शिवाजी गणेशन जैसे हीरो की फिल्मों के साथ भी ऐसा हुआ और यह जयललिता की लोकप्रियता का सबूत था।
जयललिता बहुत बड़ी स्टार थीं और दर्शक उनके दीवाने थे। जयललिता को पोस्टर पर देखते ही उनकी फिल्मों के टिकट बिक जाते थे। उस दौर में 25 सप्ताह तक चलने वाली फिल्म को 'सिल्वर जुबिली फिल्म' कहा जाता था। तमिल हीरोइन के रूप में जयललिता के नाम पर सर्वाधिक सिल्वर जुबिली फिल्म देने का कीर्तिमान है।
जयललिता ने 92 तमिल फिल्मों में हीरोइन का किरदार निभाया जिसमें से 85 सुपरहिट रही। उन्होंने 28 तेलुगु फिल्में की और सारी सिल्वर जुबिली हिट्स रही। 1965 से 1980 के बीच हीरोइन के रूप में उन्हें सर्वाधिक फीस दी जाती थी। उनकी 6 फिल्मों को डब पर हिंदी में भी प्रदर्शित किया गया। 1961 से 1980 के बीच जयललिता ने 125 फिल्में की जिनमें से 119 सफल रही। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि बतौर स्टार वे कितनी सफल और लोकप्रिय थीं। संभव है कि इसी लोकप्रियता का फायदा उन्हें राजनीति में मिला।
जयलिलता ने हर तरह की फिल्में की। कई तरह के किरदार निभाए और उन्हें पसंद किया गया। जयललिता का कहना था कि वे एक नैसर्गिक अभिनेत्री हैं। वे तैयारी में विश्वास नहीं रखती थीं और सेट पर तुरंत कर दिखाती थीं। उन्होंने सीवी राजेंद्रन, ए भीमसिंह, के शंकर, बीआर पांथुलु, पी नीलाकंटन, केएस गोपालाकृष्णन, एसी तिरूलोचंदर, टीआर रमन्ना जैसे फिल्ममेकर्स के साथ लगातार काम किया। जयललिता ने कुछ फिल्मों में गाने भी गाए।
जयललिता ने हिंदी फिल्म 'इज्जत' में भी बतौर नायिका के काम किया। 1968 में प्रदर्शित इस फिल्म का निर्देशन टी. प्रकाश राव ने किया था और धर्मेन्द्र तथा तनूजा अन्य कलाकार थे। इस फिल्म में उन्होंने झुमकी नामक किरदार निभाया था और फिल्म सफल भी रही थी। दक्षिण भारतीय फिल्मों में जयललिता इतनी व्यस्त थीं कि उन्हें हिंदी फिल्मों के लिए समय नहीं मिल पाया।