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अपनी मधुर आवाज में गाए गीतों के जरिये किशोर कुमार आज भी हमारे आसपास मौजूद हैं। पुरानी के साथ-साथ नई पीढ़ी भी उनकी आवाज की दीवानी है। उनके जन्मदिवस पर पेश है किशोर की कुछ खास बातें।
रशोकि रमाकु
अटपटी बातों को अपने चटपटे अंदाज में कहना किशोर कुमार का फितूर था। खासकर गीतों की पंक्ति को दाएँ से बाएँ गाने में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी। नाम पूछने पर कहते थे- रशोकि रमाकु।
ब्राण्ड नेम किशोर कुमार
पिछले पचपन सालों से एक ब्रांड-नेम के रूप में हमारे आसपास मौजूद हैं। पिछले दिनों के-फॉर किशोर ने लहर फैला दी थी। किशोर हास्य सम्राट भी थे और जीनियस पार्श्वगायक भी।
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तीन नायकों को बनाया महानायक
किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी आवाज के जादू से देव आनंद सदाबहार हीरो कहलाए। राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा जाने लगा और अमिताभ बच्चन महानायक हो गए।
मनोरंजन-कर
बारह साल की उम्र तक किशोर ने गीत-संगीत में महारत हासिल कर ली। वह रेडियो पर गाने सुनकर उनकी धुन पर थिरकते थे। फिल्मी गानों की किताब जमा कर उन्हें कंठस्थ कर गाते थे। घर आने वाले मेहमानों को अभिनय सहित गाने सुनाते, तो ‘मनोरंजन-कर’ के रूप में कुछ इनाम भी माँग लेते थे।
बाथरूम-सिंगर
एक दिन अशोक कुमार के घर अचानक संगीतकार सचिन देव बर्मन पहुँच गए। बैठक में उन्होंने गाने की आवाज सुनी, तो दादा मुनि से पूछा- ‘कौन गा रहा है?’ अशोक कुमार ने जवाब दिया- ‘मेरा छोटा भाई है। जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता।‘ सचिन-दा ने बाद में किशोर कुमार को जीनियस गायक बना दिया।
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दो बार आवाज उधार ली
मोहम्मद रफी ने पहली बार किशोर कुमार को अपनी आवाज फिल्म ‘रागिनी’ में उधार दी। गीत है- ‘मन मोरा बावरा।‘दूसरी बार शंकर-जयकिशन के फिल्म ‘शरारत’ में रफी से गवाया था किशोर के लिए- ‘अजब है दास्तां तेरी ये जिंदगी।‘
मेहमूद से लिया बदला
फिल्म ‘प्यार किए जा’ में कॉमेडियन मेहमूद ने किशोर कुमार, शशि कपूर और ओमप्रकाश से ज्यादा पैसे वसूले थे। किशोर को यह बात अखर गई। इसका बदला उन्होंने मेहमूद से फिल्म ‘पड़ोसन’ में लिया- डबल पैसा लेकर।
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खण्डवे वाले की राम-राम
किशोर कुमार ने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे- ‘मेरे दादा-दादियो। मेरे नाना-नानियो। मेरे भाई-बहनो, तुम सबको खण्डवे वाले किशोर कुमार का राम-राम। नमस्कार।
एक दर्जन बच्चे
किशोर कुमार ने अपनी दूसरी बीवी मधुबाला से शादी कर मजाक में कहा था- ‘मैं दर्जन भर बच्चे पैदा कर खण्डवा की सड़कों पर उनके साथ घूमना चाहता हूँ।‘
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हरफनमौला : गीतों का झोला
किशोर कुमार का बचपन तो खण्डवा में बीता, लेकिन जब वे किशोर हुए, तो इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने आए। हर सोमवार सुबह खण्डवा से मीटरगेज की छुक-छुक रेलगाड़ी में इन्दौर आते और शनिवार शाम लौट जाते। सफर में वे हर स्टेशन पर डिब्बा बदल लेते और मुसाफिरों को नए-नए गाने सुनाकर मनोरंजन करते थे।
खण्डवा की दूध-जलेबी
किशोर कुमार जिन्दगी भर कस्बाई चरित्र के भोले मानस बने रहे। बम्बई की भीड़-भाड़, पार्टियाँ और ग्लैमर के चेहरों में वे कभी शामिल नहीं हो पाए। इसलिए उनकी आखिरी इच्छा थी कि खण्डवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए। इस इच्छा को पूरा किया गया। वे कहा करते थे- ‘फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वे खण्डवा में ही बस जाएँगे और रोजाना दूध-जलेबी खाएँगे।‘
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पान-महिमा
किशोर कुमार को पान-सुपारी खाना बेहद पसंद था। उन्होंने पान-महिमा पर यह कविता भी लिखी थी।
पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है।
सुपारिन के साथ-साथ, मसाला मिलें भांत-भांत
जामे कत्थे की रत्ती भर थोड़ी-सी ललाई है।
बैठे है सभा मांहि बात करें भांत-भांत
थूकन जात बार-बार जाने का बढ़ाई है।
कहें कवि ‘किशोरदास’ चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है।।
पण्डित किशोरदास ‘खंडवावासी’
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