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  4. 300th birth anniversary of Ahilya Bai Holkar
Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 27 मई 2025 (13:58 IST)

धर्म, न्याय और सेवा की प्रतिमूर्ति: देवी अहिल्या बाई होलकर

Malwa Queen Ahilyabai Holkar Ki Jyanati
Who was Ahilyabai Holkar: भारत के इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और युगों-युगों तक प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं देवी अहिल्या बाई होलकर, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के मालवा क्षेत्र पर शासन किया। उनका शासनकाल न केवल सैन्य विजय और राजनीतिक दूरदर्शिता के लिए जाना जाता है, बल्कि धर्मपरायणता, न्यायप्रियता और लोक कल्याण के प्रति उनके अद्वितीय समर्पण के लिए भी याद किया जाता है। उन्हें अक्सर 'दार्शनिक रानी' और 'संत शासिका' जैसे विशेषणों से संबोधित किया जाता है।ALSO READ: रानी अहिल्याबाई के राज्य के सिक्कों पर क्यों मुद्रित थे शिव और बेलपत्र?

आइए यहां जानते हैं न्याय और सेवा की मूर्ति रहीं लोकमाता अहिल्या बाई होलकर की 300वीं जयंती के अवसर पर उनके बारे में रोचक जानकारी...
 
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: अहिल्या बाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता, मनकोजी शिंदे, एक धर्मपरायण व्यक्ति थे और उन्होंने अहिल्या बाई को शिक्षित करने का निर्णय लिया, जो उस समय के ग्रामीण समाज में एक दुर्लभ बात थी।

उनकी बुद्धिमत्ता, विनम्रता और धार्मिक प्रवृत्ति ने मल्हारराव होलकर, जो कि मराठा सेना के एक प्रतिष्ठित सेनापति का ध्यान आकर्षित किया, जब वे यात्रा के दौरान चौंडी गांव से गुजर रहे थे। मल्हारराव ने अहिल्या बाई के गुणों को पहचाना और उन्हें अपने पुत्र खंडेराव होलकर के लिए बहू के रूप में चुना। 1733 में अहिल्या बाई का विवाह खंडेराव से हुआ।
 
व्यक्तिगत त्रासदियां और राजनैतिक उत्थान: अहिल्या बाई का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा था। उनके पति खंडेराव 24 मार्च 1754 में कुम्हेर के युद्ध में मारे गए। इसके बाद, उनके ससुर मल्हारराव ने उन्हें सती होने से रोका और उन्हें राज्य के मामलों में प्रशिक्षित करना शुरू किया। मल्हारराव स्वयं अहिल्या बाई की प्रशासनिक क्षमताओं से प्रभावित थे।

20 मई 1766 में मल्हारराव के निधन के बाद, अहिल्या बाई के पुत्र मालेराव होलकर ने गद्दी संभाली, लेकिन वे भी कुछ ही महीनों बाद 05 अप्रैल 1767 में मालेराव का निधन हो गया। इन लगातार झटकों के बावजूद, अहिल्या बाई ने धैर्य नहीं खोया। उन्होंने धैर्य और दृढ़ता के साथ राज्य की बागडोर संभाली, क्योंकि उनके पास कोई अन्य योग्य उत्तराधिकारी नहीं था।ALSO READ: मालवा उत्सव में विशेष प्रस्तुति : मां अहिल्याबाई के शौर्य और भक्ति की गाथा
 
एक आदर्श शासिका के रूप में: अहिल्या बाई ने 1767 में इंदौर की गद्दी संभाली और लगभग 30 वर्षों तक शासन किया। उनका शासनकाल न्याय, शांति और समृद्धि के लिए एक मिसाल बन गया... 
 
• न्यायप्रियता: अहिल्या बाई अपनी निष्पक्ष न्याय प्रणाली के लिए प्रसिद्ध थीं। वे स्वयं अदालती कार्यवाही की देखरेख करती थीं और बिना किसी भेदभाव के न्याय प्रदान करती थीं। उनके न्याय की कहानियां आज भी प्रचलित हैं, जहां उन्होंने अपने ही रिश्तेदारों के विरुद्ध भी न्याय किया। वे प्रजा को अपनी संतान मानती थीं और उनकी समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से सुनती थीं।
 
• धार्मिक प्रवृत्ति और निर्माण कार्य: अहिल्या बाई एक महान शिव भक्त थीं। उन्होंने अपने शासनकाल में पूरे भारत में अनगिनत मंदिरों, घाटों, धर्मशालाओं और कुओं का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी), सोमनाथ मंदिर (गुजरात), गया, अयोध्या, द्वारका, बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम और पुरी जैसे प्रमुख तीर्थ स्थल शामिल हैं। यह उनकी धर्मनिष्ठा और भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।
 
• प्रशासनिक कौशल: उन्होंने अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। उन्होंने व्यापार को बढ़ावा दिया, सड़कों का निर्माण करवाया और कृषि को प्रोत्साहित किया। वे अपने राज्य के वित्त को कुशलता से प्रबंधित करती थीं। उन्होंने अपने राज्य को बाहरी आक्रमणों से भी सुरक्षित रखा, अपनी सेना का नेतृत्व किया और मराठा परिसंघ के भीतर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
 
• लोक कल्याणकारी कार्य: अहिल्या बाई केवल शासिका ही नहीं, बल्कि एक लोक कल्याणकारी माता भी थीं। उन्होंने विधवाओं, अनाथों और गरीबों के लिए विशेष प्रावधान किए। उन्होंने कई सार्वजनिक उपयोगिताओं का निर्माण करवाया, जिससे आम जनता का जीवन आसान हो सके।
 
• नारी सशक्तिकरण का प्रतीक: 18वीं शताब्दी में एक महिला शासिका के रूप में अहिल्या बाई का उदय और उनका सफल शासन स्वयं नारी सशक्तिकरण का एक जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं भी राजनीति और प्रशासन में पुरुषों के बराबर ही सक्षम हो सकती हैं।
 
विरासत और निधन : देवी अहिल्या बाई होलकर का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ। उनका जीवन और शासनकाल भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग के रूप में दर्ज है। उन्होंने न केवल एक समृद्ध और स्थिर राज्य का निर्माण किया, बल्कि नैतिक मूल्यों, न्याय और धर्म के सिद्धांतों पर आधारित शासन की एक मिसाल कायम की। उन्हें आज भी 'लोकमाता' और 'पुण्यश्लोक' जैसे विशेषणों से याद किया जाता है। 
 
इंदौर में आज भी उनके नाम पर अहिल्या बाई होलकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और विश्वविद्यालय है, जो उनकी विरासत को जीवंत बनाए हुए है। उनकी जयंती हर वर्ष 31 मई को मनाई जाती है, जब पूरा देश उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है। 

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