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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 5 अक्टूबर 2020 (15:46 IST)

Special Story: लालू यादव ‘चंद्रगुप्त’ के बाद अब ‘चाणक्य’ की भूमिका में

बेटे तेजस्वी को ‘चंद्रगुप्त’ बनाने के लिए 'चाणक्य' की भूमिका में लालू यादव

Special Story: लालू यादव ‘चंद्रगुप्त’ के बाद अब ‘चाणक्य’ की भूमिका में - Bihar elections :  Lalu Yadav in the role of 'Chanakya' for his son Tejashwi Yadav to become the Chief Minister
“चाणक्य जो भी हो,चंद्रगुप्त तो हम ही न है"
1990 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद पहली बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव का दिया गया यह बयान आज तीन दशक के बाद भी बिहार की सियासत में मौजूं है। फर्क सिर्फ इतना सा है कि राजनीति के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले लालू यादव आज अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का ‘चंद्रगुप्त’ बनाने के लिए सियासी व्यूह रचना बनाने में जुटे है।  
 
चारा घोटाले में सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव इन दिनों रांची रिम्स के निदेशक के खाली पड़े बंगले में रहकर पार्टी की पूरी चुनावी कमान संभाले हुए है। भले ही चुनावी मैदान में आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव पार्टी का चेहरा हो लेकिन पर्दे के पीछे पूरी कमान लालू ने ही संभाल रखी है। वह बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का ‘चंद्रगुप्त’(मुख्यमंत्री) बनने के लिए दिन-रात जुटे हुए है। पार्टी के सारे नीतिगत निर्णय और उम्मीदवारों के टिकट तय करने का फैसला लालू ही कर रहे है।  
टिकट की चाह लिए रोज बड़ी संख्या में आरजेडी नेता और कार्यकर्ता रिम्स का चक्कर लगा रहे है। रिम्स पहुंचने वाले पार्टी के हर नेता और कार्यकर्ता को यही उम्मीद है कि उन्हें लालू यादव का आशीर्वाद जरूर मिलेगा। आरजेडी के नेता और कार्यकर्ता अच्छी तरह जानते है कि लालू यादव का आज भी बिहार की जनता में एक अलग लोकप्रियता और जनाधार है। 
बिहार की मौजूदा राजनीतिकों में सबसे सतरंगी व्यक्तित्व वाले लालू यादव के यह सियासी कौशल का ही कमाल हैं कि उन्होंने न टूट की कगार पर पहुंच गए ‘महागठबंधन’ को न सिर्फ टूटने से बचाया बल्कि अपने बेटे तेजस्वी यादव को महागठबंधन की तरफ से सीएम कैंडिडेट होने का एलान भी करवा दिया। 
 
चारा घोटाले में जेल में बंद लालू यादव भले ही इस बार चुनाव प्रचार नहीं कर पा रहे हो लेकिन तेजस्वी को जीताने के लिए सोशल इंजीनियरिंग का दांव चलने के साथ बिहारी अस्मिता को जगाने का काम कर रहे है।
डेढ़ दशक तक बिहार की सत्ता पर एकछत्र राज कने वाले लालू अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार के लोगों में स्वाभिमान, आत्मसम्मान और अहं का भाव कही ज्यादा गहाराई तक बैठा हुआ है इसलिए लालू चुनाव के समय लगातार सोशल मीडिया के जरिए ऐसी पोस्ट कर रहे है जिसका चुनावी लाभ उनको मिले सके।

बिहार की राजनीति में लालू यादव एक ऐसे नेता के रूप में पहचाने जाते है जिसने अपने सियासी कौशल और सूझबूझ से पिछड़ा,दलित और मुसलमानों को एकजुट कर लंबे समय तक बिहार पर राज किया है। 
 
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने में लालू यादव किंगमेकर की भूमिका में थे। पिछले चुनाव में ‘महागठबंधन’ की तरफ से सबसे बड़े स्टार कैंपेनर रहे लालू यादव ने छोड़ी और बड़ी मिलाकर करीब 250 से चुनावी रैलियां और सभा की थी।  
2015 की तुलना में इस बार बिहार विधानभा चुनाव की तस्वीर बहुत बदली हुई है। आज लालू अपने पुराने साथी नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है और पर्दे के पीछे रहकर महागठबंधन के लिए 'चाणक्य' की भूमिका निभा रहे है।  
 
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