मंगलवार, 22 जुलाई 2025
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Written By BBC Hindi

जलियांवाला : 'कैमरन चोट पर नमक रखकर चले गए'

-अरविंद छाबड़ा

ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन
मेरी परदादी 18 वर्ष की थी और गर्भवती थीं जब उन्हें पता चला कि मेरे परदादा वासू मल कपूर को गोलियों से छलनी कर दिया गया है। ...ये कहानी है सुनील कपूर की।

BBC
साल 1919 में जनरल डायर के आदेश पर ब्रितानी फौज ने अमृतसर के जलियाँवाला बाग में अंधाधुंध फायरिंग की थी। इस घटना में अपने परदादा को खोने वाले सुनील कपूर कहते हैं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से बहुत आशा थी कि वे उस घटना पर खेद जताते हुए माफी मांगेंगे।

वे कहते हैं, 'यह केवल हमारी आशा ही रह गई। अगर कैमरन घटना को केवल शर्मनाक कहें तो काफी नहीं है। मेरा तो यह मानना है कि माफी और शर्मनाक कहने में बहुत फर्क है।’

भारत के दौरे पर आए कैमरन बुधवार को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गए थे जहां विज़िटर्स बुक यानी आगंतुक पुस्तिका में उन्होंने लिखा कि यह घटना बहुत ही शर्मनाक थी। हालांकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वे इस घटना पर माफी मांग सकते हैं।

'जलियाँवाला घटना को लेकर घृणा' : 67 वर्षीय टेकचंद ने इस घटना में अपने दादा खुशीराम को खोया था। तब उनके पिता केवल तीन साल के थे और खुद खुशीराम 26 के।

वे कहते हैं, ‘यह ठीक है कि डेविड कैमरन ने यहाँ आकर जलियाँवाला बाग़ के साल 1919 के हत्याकांड को शर्मनाक कहा, लेकिन वो यही बात हमारे सामने कहते तो सुकून मिलता। दादी ने बहुत मेहनत की थी कि घर चल सके और बच्चों को पाला जा सके।’

बचपन से लेकर आज तक टेकचंद के मन में इस घटना को लेकर घृणा थी। टेकचंद कहते हैं, 'मुझे तो दूतावास से कुछ दिन पहले फोन भी आया कि वो हमसे मिलना चाहते हैं। उन्होंने हमसे पूछा कि अगर न मिलने दिया तो क्या करोगे तो हमने कह दिया कि कुछ भी करेंगे। शायद इसी की प्रतिक्रिया थी कि आज हममें से किसी को प्रशासन ने इस तरफ आने भी नहीं दिया। वो आए और चोट पर मरहम लगाने की बजाए नमक रख कर चले गए।’

'कैमरन का आना बड़ी बात' : उधर कई लोग ऐसे भी थे जिनका मानना है कि ये बड़ी बात है कि कैमरन यहां आने वाले ब्रिटेन के पहले प्रधानमंत्री बने हैं। बिहार के पूर्व राज्यपाल और जलियाँवाला मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष आरएल भाटिया ने कहा, 'उनका यहां आना और खेद जताना किसी माफी से कम नही है।'

ऐसी ही सोच है सुकुमार मुखर्जी की भी जिनके दादा उन गिने चुने लोगों में थे जो गोलीबारी के समय मौजूद थे और बच गए। वे कहते हैं, 'मेरी सोच तो यह है कि उनका यहां आकर श्रद्धांजलि देना दिखाता है कि वो पीड़ितों के बारे में दुखी हैं।’

बहरहाल माफी का सवाल अमृतसर के हर शख्स की ज़ुबान पर था। कैमरन के दौरे के लिए यहां कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए थे।

ऐतिहासिक घटना? : जलियाँवाला बाग यहां के बाज़ार के बीचों-बीच है और यहां तक जाने वाली सड़क काफी तंग है, लेकिन बुधवार को यहां वाहनों को अंदर बाज़ार में जाने नहीं दिया गया हालांकि जैसे ही कैमरन गए बाग़ में काफी भीड़ जुटी।

कई लोग कैमरन द्वारा यहां चढ़ाई गई पुष्पमाला से साथ फोटो खिंचाते दिखे। अभी बहुत लोगों को मालूम नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में यहां की आगंतुक पुस्तिका ऐतिहासिक बन जाएगी।

इसके पन्ने पर कैमरन ने 1919 की घटना को 'डीपली शेमफुल' यानी बहुत शर्मनाक बताते हुए और शब्द ‘नेवर’ के नीचे रेखा खींचते हुए लिखा है- 'वी मस्ट नेवर फॉरगेट व्हॉट हैपन्ड हियर'। यानी यहाँ जो हुआ वो हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।