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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 28 जून 2024 (08:32 IST)

लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर बीजेपी की चुप्पी की रणनीति क्या है?

लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर बीजेपी की चुप्पी की रणनीति क्या है? - Why bjp is silent on loksabha deputy speaker
18वीं लोकसभा के लिए ओम बिरला को स्पीकर पद के लिए दोबारा चुन लिया गया है लेकिन डिप्टी स्पीकर पर अब भी संशय कायम है।
 
17वीं लोकसभा में मोदी सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद ख़ाली रखा था जबकि 16वीं लोकसभा में यह पद एआईएडीएमके के एम थंबीदुरई को मिला था। इस बार बीजेपी ने अब तक डिप्टी स्पीकर के पद लेकर चुप्पी साध रखी है। नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं लेकिन तीसरा टर्म अपने दम पर नहीं है।
 
इस बार मोदी सरकार के बदले एनडीए सरकार है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि एनडीए की मुख्य सहयोगी पार्टियां टीडीपी और जेडीयू डिप्टी स्पीकर पद की मांग कर सकती हैं। लेकिन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने कहा है कि उसे डिप्टी स्पीकर का पद हासिल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
 
इस बार बीजेपी ने ओम बिरला का नाम फिर से लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए आगे किया तो विपक्ष से सहमति बनाने की कोशिश की।
 
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने बीजेपी से कहा कि वह लोकसभा अध्यक्ष के लिए ओम बिरला का समर्थन करेगी लेकिन इसके बदले में उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया जाए।
 
बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं हुई तो कांग्रेस ने ओम बिरला के ख़िलाफ़ लोकसभा अध्यक्ष के लिए केरल से अपने सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को आगे कर दिया। हालांकि ओम बिरला को ध्वनिमत से अध्यक्ष चुन लिया गया लेकिन उपाध्यक्ष को लेकर अब भी रहस्य बना हुआ है।
 
क्या टीडीपी को मिलेगा मौक़ा?
अतीत में लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलता रहा है। जैसे मनमोहन सिंह की सरकार में बीजेपी के करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर थे।
 
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से टीडीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता काम कोम्मारेड्डी ने कहा, ''हमने स्पष्ट कर दिया है कि डिप्टी स्पीकर का पद नहीं चाहिए। बीजेपी ने हमसे इस पद के लिए संपर्क भी नहीं किया है। बीजेपी के साथ हमारी कोई बैठक नहीं हुई है और न ही बीजेपी ने यह पद हमें ऑफर किया है।''
 
टीडीपी का यह बयान तब आया है, जब अटकलें लगाई जा रही थीं कि 2014 में मोदी के पहले कार्यकाल में जिस तरह से एआईएडीएमके को डिप्टी स्पीकर का पद दिया गया था, उसी तरह इस बार टीडीपी को दिया जा सकता है।
 
एनडीए के भीतर टीडीपी के रुख़ को लेकर कहा जा रहा है कि वह सरकार में पदों को लेकर दिलचस्पी कम रख रही है।
 
कहा जा रहा है कि टीडीपी का पूरा ध्यान राज्य के लिए फंड पर है। टीडीपी को मोदी मंत्रिमंडल में एक कैबिनेट मंत्री और एक राज्य मंत्री का पद मिला है।
 
टीडीपी के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उसे केंद्र सरकार से विशेष आर्थिक पैकेज चाहिए और उसकी पूरी दिलचस्पी इसी में है।
 
क्या है जेडीयू का रुख़?
इंडियन एक्सप्रेस से एक और टीडीपी नेता ने कहा, ''हमने शुरू से ही न तो स्पीकर और न ही डिप्टी स्पीकर पद में कोई दिलचस्पी दिखाई थी। हमने इसे एनडीए के बाक़ी सहयोगियों के लिए छोड़ दिया था। अगर बाक़ियों की दिलचस्पी है तो वे मांग सकते हैं।''
 
टीडीपी नेता ने इशारा किया कि जनता दल यूनाइटेड इस पद के लिए दिलचस्पी दिखा सकती है।
 
हालांकि जेडीयू ने भी डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर कुछ नहीं कहा है। जेडीयू के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ''बीजेपी ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह डिप्टी स्पीकर का पद हमें देगी।''
 
हालांकि राज्यसभा में भी उपसभापति का पद जेडीयू के पास ही है। जेडीयू के हरिवंश राज्यसभा में उपसभापति हैं। ऐसे में जेडीयू के पास संसद के दोनों सदनों में उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी मिले, इसकी संभावना कम ही दिखती है।
 
सरकार की चुप्पी
कांग्रेस बुधवार सुबह तक कहती रही कि अगर बीजेपी डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने के लिए तैयार है तो वह लोकसभा अध्यक्ष के लिए अपने उम्मीदवार का नामांकन वापस ले लेगी, लेकिन बीजेपी की तरफ़ से ऐसा कोई ऑफर नहीं आया। शिवसेना (यूबीटी) के नेता अरविंद सावंत ने कहा है कि सरकार डिप्टी स्पीकर पर चुप है।
 
बीजेपी के एक नेता ने अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स से डिप्टी स्पीकर को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व को इस पर फ़ैसला करना है। छठी लोकसभा से लेकर 16वीं लोकसभा तक डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास रहा है।
 
कांग्रेस क्यों चाह रही है डिप्टी स्पीकर का पद
आज़ाद भारत के इतिहास में 17वीं लोकसभा पहली लोकसभा थी, जब डिप्टी स्पीकर का पद ख़ाली रहा। संविधान का अनुच्छेद 93 कहता है कि डिप्टी स्पीकर का चयन होना ही चाहिए। सदन के दो सदस्यों का चयन स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में होना संविधान के अनुसार अनिवार्य है।
 
1969 तक कांग्रेस की सत्ता में भी कांग्रेस ये दोनों पद अपने पास ही रखती थी लेकिन साल 1969 में ये चलन बदल गया। कांग्रेस ने ऑल पार्टी हिल लीडर्स के नेता गिलबर्ट जी स्वेल, जो उस समय शिलॉन्ग से सांसद थे, उन्हें ये पद दिया।
 
संविधान के अनुच्छेद 95 के अनुसार, डिप्टी स्पीकर लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनकी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करता है। अगर डिप्टी स्पीकर का पद ख़ाली रहा तो उस स्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा के एक सांसद को ये काम करने के लिए चुनते हैं।
 
अनुच्छेद 94 के मुताबिक़ अगर स्पीकर अपने पद से इस्तीफ़ा देते हैं तो इसे इस्तीफ़े में उन्हें डिप्टी स्पीकर को संबोधित करना होता है।
 
1949 में संविधान सभा में इसे लेकर बहस हुई थी। डॉ। भीमराव आंबेडकर का कहना था कि स्पीकर का पद डिप्टी स्पीकर के पद से बड़ा होता है, ऐसे में उन्हें डिप्टी स्पीकर को संबोधित नहीं करना चाहिए बल्कि राष्ट्रपति को संबोधित करना चाहिए।
 
लेकिन ये तर्क दिया गया कि चूंकि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चयन सदन के सदस्य करते हैं, इसलिए इस पद की जवाबदेही सदस्यों के प्रति है।
 
चूंकि सदन के हर सदस्य को इस्तीफ़े में संबोधित नहीं किया जा सकता ऐसे में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को ही संबोधित करना चाहिए क्योंकि वो सदन का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
इसके साथ तय हुआ कि अगर स्पीकर इस्तीफ़ा देते हैं तो डिप्टी स्पीकर को संबोधित करेंगे और अगर डिप्टी स्पीकर के इस्तीफ़े की स्थिति आती है तो वो स्पीकर को संबोधित किया जाएगा।
 
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