-वंदना (सीनियर न्यूज़ एडियर, थाईलैंड से)
21 जनवरी 2024
साल 1350 में स्थापित हुआ अयुथ्या शहर जो किसी जम़ाने में एक विशाल साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक से 70 किलोमीटर दूरी पर बने अयुथ्या शहर में कदम रखते ही, उसके विशाल खंडहरों ने मेरा ध्यान खींचा। और साथ ही ध्यान खींचा शहर के नाम अयुथ्या ने जो लगभग भारत के अयोध्या जैसा सुनाई पड़ रहा था। जैसे अयोध्या सरयू नदी के किनारे बसा है, वैसे ही करीब 3,500 किलोमीटर दूर थाईलैंड का अयुथ्या शहर तीन नदियों से घिरा है। भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर सूरत होराचायकुल बैंकॉक की चुलालॉंगकॉर्न यूनिवर्सिटी में इंडियन स्टडीज़ के फाउंडर डायरेक्टर हैं।
वो बताते हैं, 'अयोध्या और अयुथ्या के नाम समान होना कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। संस्कृत के शब्दों को थाई में ढालकर यहां नए नए नाम बनते आए हैं। प्राचीन भारतीय सभ्यता का दक्षिण पूर्व एशिया पर काफ़ी असर रहा है। जब अयुथ्या की स्थापना हुई, उस वक़्त तक रामायण थाईलैंड तक पहुंच चुकी थी जिसे यहां रामाकिएन कहा जाता है। किसी भी दौर में आप अपने साम्राज्य या शहर का नाम ऐसा रखना चाहते हैं जिसे शुभ माना जाता हो, जो नाम हमेशा के लिए रह जाए। बहुत सारे इतिहासकार अयुथ्या का नाम अयोध्या से मिलता जुलता होने को कुछ इस तरह समझाते हैं।'
प्रोफ़ेसर सूरत का परिवार नॉर्थ वेस्टर्न फ़्रंटियर प्रोविंस में रहता था लेकिन विभाजन से पहले ही उनका परिवार थाईलैंड आ गया था। वो तीसरी पीढ़ी के भारतीय मूल के थाई नागरिक हैं।
वो बताते हैं, 'थाईलैंड में हमारे यहां राजा को विष्णु का अवतार माना जाता था। इसलिए विभिन्न राजाओं को थाईलैंड का रामा-1 ,रामा-2 , रामा-10 आदि के नाम से जाना जाता है। संस्कृत, पाली सब भाषाओं का असर थाईलैंड मे दिखता है। (जैसे आपका नाम वंदना है, थाई में कुरवंधना नाम है।)'
अयुथ्या दरबार और मुग़ल दूत
यूनेस्को के मुताबिक़, अयुथ्या के शाही दरबार में कई देशों के दूत आया-जाया करते थे जिसमें मुग़ल दरबार, जापान और चीनी साम्राज्यों के दूतों से लेकर फ्रांस के दूत शामिल थे।
डॉक्टर उदय भानु सिंह दक्षिण-पूर्व एशिया मामलों के जानकार हैं और एमपी-आईडीएसए से जुड़े रहे हैं।
वो कहते हैं, 'इस साल थाईलैंड और भारत के कूटनीतिक रिश्तों को 77 साल हो जाएंगे। लेकिन दोनों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध सदियों से हैं। थाईलैंड में अयुथ्या नाम का शहर है जिसकी स्थापना 1350 में हुई थी। इसे अयोध्या से जोड़कर देखा जाता है। इसकी स्थापाना राजा रमातीबोधी-1 ने की थी। आज अयुथ्या यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।'
'थाईलैंड यूं तो बौद्ध प्रभुत्व वाला देश है लेकिन यहां के शाही परिवार ने हिंदू धर्म से जुड़ी कई रीतियों को अपनाया हुआ है।'
वरिष्ठ इतिहासकर डीपी सिंघल लिखते हैं कि 'चीन जैसे देशों की संस्कृति से ज़्यादा भारतीय संस्कृति ने थाईलैंड में छाप छोड़ी है। रामायण के संस्करण को थाईलैंड में रामाकिएन कहा जाता है।'
रामायण और रामाकिएन
दरअसल सदियों पहले दक्षिण भारत से समुद्र के ज़रिए लोगों का थाईलैंड आना-जाना हुआ और रामायण भी यहां पहुंची। इसके कई संस्करण बनते गए और थाई किंग रामा-1 ने इसे फिर से लिखा।
थाईलैंड में आज भी रामाकिएन का मंचन होता है जिसे थाई रामायण का दर्जा हासिल है। इसमें रामायण से बहुत सारी समानताएं हैं। हालांकि स्थानीय संस्कृति, बौद्ध धर्म के अनुसार कई तरह के अंतर भी हैं।
कहा जाता है कि रामाकिएन में थॉसकन नाम का किरदार वही है जो रामायण में रावण का है। यहां थॉस मतलब दस होता है। रामाकिएन में फ्रा राम वहीं है जो भगवान राम हैं।
भारत-थाई रिश्तों की बात करें तो रॉयल थाई काउंसलेट जनरल की वेबसाइट के मुताबिक थाईलैंड के किंग रामा-5 1872 में समुद्र के रास्ते सिंगापुर और यैंगोन से होते हुए भारत आए थे।
13 जनवरी 1872 को कलकत्ता पहुंचने के बाद वो ट्रेन के ज़रिए बैरकपुर, दिल्ली, आगरा, कानपुर, लखनऊ भी गए थे।
अयुथ्या का इतिहास
14वीं से 18वीं सदी के बीच आज का अयुथ्या तब के स्याम नाम के ख़ुशहाल साम्राज्य की राजधानी था जो दुनिया का बड़ा कूटनीतिक और व्यापारिक केंद्र भी था। 1767 में बर्मा ने इस शहर पर ऐसा हमला बोला कि ये पूरा शहर तहस-नहस हो गया ।
इस शहर को फिर दोबारा नहीं बसाया गया बल्कि बैंकॉक नाम से एक नई राजधानी बना दी गई। बैंकॉक का औपचारिक नाम दरअसल बैंकॉक नहीं है और बहुत लंबे समय से उसके औपचारिक नाम में अयुथ्या आज भी शामिल है। और शहर के बीचों-बीच अयुथ्या रोड नाम की सड़क भी मिल जाएगी।
यहां बिताए एक दिन में मुझे ऐतिहासिक मंदिरों में जाने का मौका मिला। यहां के पगोड़ा और मोनस्ट्री के अवशेष बता रहे थे कि इमारतें कितनी बुलंद रही होंगी। बिना धड़ वाली बुद्ध की मूर्तियां, बिना छत वाली इमारतें, हर तरफ़ खंडहर।। यहां खड़े होकर ऐसा आभास होता है। मानो आक्रमण करने वाला अभी अभी एक बसे बसाए शहर को उजाड़ कर गया हो।
दुनिया के सबसे बड़े रिक्लाइनिंग (आराम की मुद्रा) बुद्ध में से एक आपको यहीं देखने को मिलेगा। यहां बुद्ध की कई विशाल प्रतिमाएं हैं लेकिन इनमें से कइयों के सिर नहीं हैं। कहा जाता है कि जब शहर को नष्ट किया गया तो कई मूर्तियां भी नष्ट हो गईं और लोगों ने कई मूर्तियों के सिर को तोड़कर यूरोप में बेच दिया।
लेकिन एक मूर्ति ऐसी है जिसका सिर तो धड़ से अलग हो गया। लेकिन सदियों बाद भी वो धड़ पेड़ की जड़ों के बीच पूरी तरह जकड़ा हुआ है और विदेशी पर्यटकों के लिए एक मशहूर पर्यटन स्थल बन गया है। यहां आप खड़े होकर फ़ोटो नहीं खिंचवा सकते। बाकायदा बैठकर या झुककर खिंचवानी पढ़ती है। ये पेड़ अयुथ्या के माट महाथाट मंदिर में है।
यहां की इमारतों में आपको 17वीं और 18वीं सदी के भारत, चीन, जापान, यूरोप की कलात्मक शैली का मिश्रण मिल जाएगा। और संस्कृति में भारत की छाप।
लेखक एसएन देसाई ने हिंदुइज़्म इन थाई लाइफ़ नाम की किताब में इस बारे में विस्तार से लिखा है।
वो लिखते हैं, 'थाईलैंड में अयुथ्या शहर भगवान राम के असर का साक्षी है हालांकि थाईलैंड में राम को लेकर पुरातत्व से जुड़ा प्रमाण नहीं है। लेकिन लोक कला के ज़रिए राम और रामायण सदियों से लोगों तक पहुंचती रहे हैं। थाईलैंड में एक और शहर है लोपबुरी। मान्यता है कि भगवान राम के बेटे लव के नाम पर शहर का नाम रखा गया। इस शहर में एक गली का नाम भी फ़्रा राम है।'
अयुथ्या की बात करें तो उस दौर की तरह ही आज भी आपको यहां जगह जगह हाथी दिख जाएंगे। फ़र्क ये कि सैनिकों की जगह इस पर अब कैमरे से लैस पर्यटक दिखाई देंगे।