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Last Modified: शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016 (10:50 IST)

'सिविल कोड': समाज में प्रचलित कई प्रथाएं हैरान कर देंगी

'सिविल कोड': समाज में प्रचलित कई प्रथाएं हैरान कर देंगी - Uniform Civil Code
- सलमान रावी (दिल्ली)
 
भारत के विधि आयोग ने 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' यानी समान नागरिक संहिता को लेकर आम लोगों की राय माँगी है। इसके लिए आयोग ने प्रश्नावली जारी की है। इसमें कुल मिलाकर 16 बिंदुओं पर राय माँगी गयी है। मगर, पूरा फोकस इस बात पर है कि क्या देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान संहिता होनी चाहिए?
प्रश्नावली में विवाह, तलाक़, गोद लेना, गार्डियनशिप, गुज़ारा भत्ता, उत्तराधिकार और विरासत शामिल से जुड़े सवाल हैं। आयोग ने इस बारे में भी राय मांगी है कि क्या ऐसी संहिता बनाई जाए जिससे समान अधिकार समान तो मिले ही साथ ही, देश की विविधता भी बनी रहे। लोगों से यह भी पूछा जा रहा है कि क्या समान नागरिक संहिता ऑपशनल यानी वैकल्पिक होनी चाहिए।
 
लोगों की राय पॉलीगेमी यानी बहुपत्नी प्रथा, पोलियानडरी (बहु पति प्रथा), गुजरात में प्रचलित मैत्री करार सहित समाज की कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में भी माँगी गयी है जो अन्य समुदायों और जातियों में प्रचलित हैं। इन प्रथाओं को क़ानूनी मान्यता तो नहीं है मगर समाज में इन्हें कहीं कहीं पर स्वीकृति मिलती रही है। देश के कई प्रांत हैं जहां आज भी इनमे से कुछ मान्यताओं का प्रचलन है।

गुजरात में 'मैत्री क़रार' एकमात्र ऐसा प्रचलन है जिसकी क़ानूनी मान्यता है क्योंकि यह क़रार मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर से ही अनुमोदित होता है।
 
अब विधि आयोग ने पूछा है कि क्या ऐसी मान्यताओं को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए या फिर इन्हें क़ानून के ज़रियर नियंत्रित करना चाहिए। इस प्रश्नावली का जवाब देने के लिए लोगों को 45 दिनों का वक़्त दिया गया है। इसके आधार पर आयोग अपना प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगा।
 
क्या हैं ये प्रथाएं जो समाज के कुछ हिस्सों में चली आ रही हैं?
 
पॉलीगेमी (बहुपत्नी प्रथा) -
वर्ष 1860 में भारतीय दंड विधान की धारा 494 और 495 के तहत ईसाइयों में पॉलीगेमी को प्रतिबंधित किया गया था और 1955 में हिन्दू मैरिज एक्ट में उन हिंदुओं के लिए दूसरी शादी को ग़ैर क़ानूनी क़रार दिया गया जिनकी पत्नी जीवित हो।
 
1956 में इस क़ानून को गोवा के हिंदुओं के अलावा सब पर लागू कर दिया गया। मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट दी गयी क्योंकि उनके लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ था। लेकिन हिंदुओं में भी पॉलीगेमी का चलन काफी है। सिविल मैरिज एक्ट के तहत की गयी शादियों में सभी समुदाय के लोगों के लिए पॉलीगेमी ग़ैर क़ानूनी है।
पोलियेंडरी (बहु-पति प्रथा) -
बहुपति प्रथा का चलन वैसे तो पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है। फिर भी कुछ सुदूर इलाक़े ऐसे हैं जहां से कभी कभी इसके प्रचलन की ख़बर आती रहती है। इस प्रथा का प्रचलन ज़्यादातर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में ही हुआ करता था जो तिब्बत के पास भारत-चीन सीमा के आस-पास का इलाक़ा है।
 
कई लोगों का मानना है कि महाभारत के मुताबिक इसी इलाक़े में पांडवों का पड़ाव रहा। इसीलिए कहा जाता है कि बहुपति प्रथा का चलन यहां रहा है। इसके अलावा इस प्रथा को दक्षिण भारत में मालाबार के इज़्हावास, त्रावनकोर के नायरों और नीलगिरी के टोडास जनजाति में भी देखा गया है। विधि आयोग की प्रश्नावली में पोलियेंडरी प्रथा के बारे में भी सुझाव मांगे गए हैं।
 
मुतआ निकाह-
इसका प्रचलन ज़्यादातर ईरान में रहा है जहां मुसलमानों के शिया पंथ के लोग रहते हैं। ये मर्द और औरत के बीच एक तरह का अल्पकालिक समझौता है जिसकी अवधि दो या तीन महीनों की होती है। अब ईरान में भी यह ख़त्म होने के कगार पर है। भारत में शिया समुदाय में इसका प्रचलन नहीं के बराबर है।
 
चिन्ना वीडु-
चिन्ना वीडु यानी छोटा घर का संबंध मूल रूप से दूसरे विवाह से जुड़ा हुआ है। इसे कभी तमिलनाडु के समाज में मान्यता मिली हुई थी। यहां तक कि एक बड़े राजनेता ने भी एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह किया। बीबीसी तमिल सेवा के संपादक थिरुमलाई मणिवन्नन के अनुसार तमिलनाडु में इस प्रथा को बड़ी सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाने लगा है। और अब ये पूरी तरह बंद है।
मैत्री क़रार-
ये प्रथा गुजरात की है। इसे स्थानीय स्तर पर क़ानूनी मान्यता भी मिली हुई है क्योंकि इस 'लिखित क़रार' का अनुमोदन मजिस्ट्रेट ही करता है। इसमें पुरुष हमेशा शादीशुदा ही होता है। यही कारण है कि ये आज भी जारी है।
 
मैत्री करार यानी दो वयस्कों के बीच एक तरह का समझौता जिसे मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में लिखित तौर पर तय किया जाता है। ये मर्द और औरत के बीच एक तरह का 'लिव-इन रिलेशनशिप' है। इसीलिए इसे 'मैत्री क़रार' कहा जाता है।
 
गुजरात में सभी जानते हैं कि कई नामी-गिरामी लोग इस तरह के रिश्ते में रह रहे हैं। ये प्रथा मूलतः विवाहित पुरुष और पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला मित्र के साथ रहने को सामजिक मान्यता देने के लिए एक ढाल का काम करती रही है।
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