तकनीक ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है कि लोग कहने लगे हैं कि दुनिया बहुत छोटी हो गई है। इंसान को ये लगता है कि उसने ये दुनिया तो देख ली, इसलिए अब धरती से परे ज़िंदगी की तलाश में जुटा हुआ है। सौर मंडल और इसके बाहर अंतरिक्ष यान भेजे जा रहे हैं। ब्रह्मांड में करोड़ों किलोमीटर दूर देखने की कोशिश हो रही है।
पर, क्या वाक़ई हमने इस दुनिया का हर कोना देख डाला है? क्या अब इंसान की नज़र से इस धरती पर कुछ भी छुपा हुआ नहीं है?
ये सवाल उठा है पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर जूलियन बेलिस की खोज से। डॉक्टर जूलियन प्रकृति के संरक्षण का काम करते हैं। वो पर्यावरण वैज्ञानिक हैं। इन दिनों वो बीबीसी अर्थ की एक नई सिरीज़ के लिए काम कर रहे हैं।
इस सीरीज़ की शूटिंग 2012 में अफ्रीका में शुरू हुई थी। उन्होंने इस दौरान का एक तजुर्बा साझा किया तो दुनिया हैरान रह गई। वो अफ्रीका में शूटिंग के दौरान ऐसी जगह जा पहुंचे, जहां आधुनिक दौर का इंसान पहुंचा भी नहीं था। ये अफ्रीकी देश मोज़ांबिक के उत्तरी इलाक़े में स्थित एक पहाडी माउंट लिको की खोज का क़िस्सा है।
पहुंचने की प्रक्रिया
डॉक्टर जूलियन बेलिस, दुनिया भर में ऐसे ठिकानों की तलाश करते हैं, जिन्हें तरक़्क़ी की ठोकर मार कर छेड़ा नहीं गया है। जैसे कि दक्षिण अफ्रीका का माउंट माबू। उपग्रहों, ड्रोन, कैमरा ट्रैकिंग और रिमोट सेंसिंग की मदद से डॉक्टर जूलियन और उनकी टीम ऐसे अनछुए इलाक़ों की खोज करती है। इसके बाद इन जगहों के नक़्शे बनाए जाते हैं।
अफ्रीका की सैर के दौरान ही डॉक्टर जूलियन ने माउंट लिको को देखा था। ये पहाडी ढलानदार नहीं है, बल्कि एकदम सीधी है। इसीलिए इस पर चढ़ना बहुत बड़ी चुनौती है। क़रीब 700 मीटर ऊंची इस पहाड़ी पर हरियाली के दाग़-धब्बे हैं। और पहाड़ी के भीतर की तरफ़ गहरे हरे जंगल। असल में ये पहाड़ी कभी एक ज्वालामुखी थी, जिसके शांत होने के बाद यहां हरी-भरी ज़िंदगी पनप गई।
2012 में इसे देखने के पांच साल बाद 2017 में डॉक्टर जूलियन और उनकी टीम माउंट लिको को नए सिरे से तलाशने पहुंची। स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें ये पता चला कि अब तक कोई भी इस पहाड़ी के सिरे तक नहीं पहुंचा है। सैटेलाइट तस्वीरों की मदद से उन्होंने पहाड़ी तक पहुंचने का रास्ता खोजा। इसके बाद वो गाड़ी के ज़रिए पहाड़ी के बेस पर पहुंचे। यहां से आगे का रास्ता उन्हें और उनकी टीम को पैदल ही तय करना था।
इस ज्वालामुखी की 700 मीटर ऊंची दीवारों के पार क्या है, ये पता लगाने के लिए एक ड्रोन को भेजा गया। दिक़्क़त तब हुई, जब ये ड्रोन वापसी में रास्ता भटक गया। हालांकि बाद में बड़ी मशक़्क़त से इसे सही रास्ते पर दोबारा लाया गया।
इसके बाद ड्रोन को दोबारा माउंट लिको ज्वालामुखी के मुहाने पर भेजा गया। इस बार ड्रोन जो तस्वीरें लेकर आया, वो हैरान करने वाली थीं। अंदर, जंगली बेलों का साम्राज्य था। परिंदे आबद थे। ऐसा लगा कि मानो माउंट लिको के अंदर अलग ही दुनिया आबाद थी।
वो प्रजातियां जिनके बारे में पहले कभी न देखा गया न सुना
इन तस्वीरों को देख कर डॉक्टर जूलियन और उनके साथी बहुत उत्साहित हुए। उन्होंने ज्वालामुखी की 700 मीटर ऊंची दीवारों के पार जाकर देखने का फ़ैसला किया। ये सीधी और तीखी चढ़ाई बेहद मुश्किल थी। जब, दीवार जैसी पहाड़ी को चढ़कर डॉक्टर जूलियन की टीम ज्वालामुखी के अंदर पहुंची, तो वहां उन्हें एक से एक दिलचस्प चीज़ें मिलीं। पौधों की नई प्रजातियां मिलीं। तितली की एक नई नस्ल भी मिली और तमाम तरह के परिंदे देखने को मिले।
वैसे, वैज्ञानिकों का मानना है कि इस धरती पर जीवों की जितनी प्रजातियां मौजूद हैं, उनमें से केवल एक चौथाई का ही नामकरण हुआ है। डॉक्टर जूलियन बेलिस और उनकी टीम ने माउंट लिको के भीतर मौजूद कई नई प्रजातियों को खोजा। मीठे पानी का एक केकड़ा मिला। कई ऐसे छोटे स्तनधारी जीव मिले, जो इससे पहले कभी नहीं देखे-सुने गए थे। सांपों के ख़ानदान के कई नए सदस्य भी डॉक्टर जूलियन की टीम को मिले।
पर, वहां कुछ चीज़ें ऐसी भी मिलीं, जिन्होंने वैज्ञानिकों की टीम को हैरत में डाल दिया। वहां, पर कुछ मिट्टी के बर्तन उल्टे पड़े हुए मिले। यानी, डॉक्टर जूलियन की टीम से पहले भी इंसान के क़दम इस ज्वालामुखी के भीतर पड़ चुके थे।
पहाड़ी को देखकर लगता है कि बिना सही संसाधनों के इस पर चढ़ाई करना नामुमकिन है। डॉक्टर जूलियन की टीम ने भी पहले सैटेलाइट तस्वीरों और ड्रोन की मदद से रास्ता तलाशा था। फिर वो पहाड़ों पर चढ़ाई के आधुनिक उपकरणों की मदद से वहां पहुंचे थे।
लेकिन, ये उल्टे पड़े मिट्टी के बर्तन ये इशारा दे रहे थे, कि इंसान तो यहां पहले भी आ चुका है। उन लोगों का अंदाज़ा है कि कोई वैद्य यहां पहले आया था, जिसने कोई तंत्र-मंत्र की पूजा की थी, ताकि यहां से निकल रहे पानी की रफ़्तार कभी कम न हो।
इंसानों को अपने मुग़ालते से बाहर आना चाहिए
डॉक्टर जूलियन का कहना है कि माउंट लिको की खोज से एक बात तो साफ़ है। इंसान को अभी ये मुग़ालता नहीं होना चाहिए कि उसने इस दुनिया का हर कोना खोज लिया है। अभी भी दुनिया में तमाम ऐसे ठिकाने हैं, जो इंसान की नज़रों से छुपे हुए हैं।
बल्कि कई बार तो हम ऐसी चीज़ों की मौजूदगी मान बैठते हैं, जो हैं ही नहीं। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों को हाल ही में ऐसा ही एक झटका लगा। सैटेलाइट तस्वीरों की मदद से बनाए गए नक़्शे में ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित मूंगे के समुद्र में एक द्वीप को दिखाया गया था।
मगर, जब वैज्ञानिक वहां पहुंचे, तो पता चला कि वहां तो कोई द्वीप है ही नहीं। सैटेलाइट ने जो तस्वीर ली थी, वो ग़लत थी। फिर गूगल अर्थ में भी वहां एक द्वीप के होने को दिखाया गया था। लेकिन, सच्चाई ये थी कि ये द्वीप कभी मूंगे के समुद्र में था ही नहीं।
ड्रोन या सैटेलाइट से ली गई तस्वीर हमारे सामने पूरा मंज़र नहीं बयां करतीं। इसके लिए तो इंसान को किसी भी ठिकाने के क़रीब जाना होगा। शहरों में आप गूगल मैप के ज़रिए गली-कूचों को भले ही तलाश लें। इस दुनिया में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है, जिसकी खोज होनी बाक़ी है। इस धरती के पास इंसान को चौंकाने के लिए अभी बहुत कुछ है।