राघवेंद्र राव, बीबीसी संवाददाता
				  
	sharad pawar resigns: 13 अप्रैल को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता के शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी से दिल्ली में मिले थे। इस मुलाक़ात के बाद पवार ने कहा कि विपक्षी दलों को एकजुट होना चाहिए और सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने की कोशिश की जानी चाहिए। पवार का कहना था कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं तक पहुंचने का प्रयास किया जाना चाहिए।
				  																	
									  
	 
	बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि 'उन्हें ख़ुशी है कि 'शरद पवार साहब' मुंबई से आए और उन्हें मार्गदर्शन दिया'। राहुल गाँधी का कहना था कि विपक्ष को एकजुट करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है और सभी पक्ष इस प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
				  
	 
	इस मुलाक़ात और इसके बाद सामने आए बयानों से 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी एकता बनाने की कोशिशों को गति मिलती दिख रही थी।
				  						
						
																							
									  
	 
	लेकिन मंगलवार, दो मई को शरद पवार के पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने और भविष्य में कभी चुनाव न लड़ने के एलान ने जहां लोगों को चौंकाया, वहीं साथ ही ये सवाल भी खड़ा कर दिया कि पवार के इस फ़ैसले का विपक्षी एकता पर क्या असर होगा।
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि शरद पवार विपक्षी एकता के बड़े महत्वपूर्ण सूत्रधार के रूप में उभर सकते हैं।
				  																	
									  
	 
	उन्होंने कहा, "अगर शरद पवार 2019 में महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना सकते थे जो कि एक बहुत ही मुश्किल गठबंधन था जिसमें वो कांग्रेस और शिव सेना को साथ लाए, तो वे एक नए गठबंधन को साथ जोड़ने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। राहुल गाँधी ने ये साफ़ कर ही दिया है कि वो इस बात पर अड़े नहीं रहेंगे कि विपक्षी एकता का नेतृत्व कांग्रेस ही करे। तो शरद पवार से बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद की जा सकती है। और इस क़दम से उन्हें विपक्षी दलों में अधिक सम्मान मिलेगा।"
				  																	
									  
	 
	विपक्षी एकता पर क्या होगा असर?
	नीरजा चौधरी के मुताबिक़, शरद पवार ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देकर ये भी दिखाने की कोशिश की है कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे हैं चाहे अजित पवार या उनकी पार्टी के विधायक बीजेपी में चले भी जाएँ।
				  																	
									  
	 
	वे कहती हैं, "इस क़दम की वजह से पार्टी कैडर उनके साथ रहेगा और अन्य पार्टियों में भी उनका सम्मान बढ़ेगा। वो एक पुराने खिलाडी हैं। उनकी अन्य पार्टियों तक पहुंच इतनी होगी जितनी किसी के पास नहीं होगी।"
				  																	
									  
	 
	चौधरी के मुताबिक़, शरद पवार केसीआर और नवीन पटनायक जैसे नेताओं को भी साथ लाकर गठबंधन का हिस्सा बना सकते हैं।
				  																	
									  
	 
	वहीं वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार विजय त्रिवेदी के मुताबिक़, चूंकि शरद पवार की राजनीति भाजपा विरोधी रही है, इसलिए वे विपक्षी एकता की कोशिशों में बड़ी मदद कर सकते हैं।
				  																	
									  
	 
	त्रिवेदी कहते हैं कि विपक्षी एकता के लिए शरद पवार को हमेशा से ही एक बड़े नेता के तौर पर देखा गया है। वे कहते हैं, "अपने लम्बे राजनीतिक करियर में उन्होंने 90 प्रतिशत समय बीजेपी और सांप्रदायिक राजनीति के ख़िलाफ़ जाने वाले रास्ते को पकड़ा है। ऐसा भी रहा है कि दसियों बार इस बात का संशय पैदा हुआ हो कि वो शायद बीजेपी में जा रहे हैं।"
				  																	
									  
	 
	"वो संशय तब भी हुआ जब हाल ही में उन्होंने कहा कि रोटी पलटने का समय आ गया है। वो संशय तब भी हुआ जब महा विकास अघाड़ी की बैठक के एक दिन बाद वो प्रधानमंत्री से मिले। लेकिन मोटे तौर पर शरद पवार बीजेपी के ख़िलाफ़ राजनीति करते रहे हैं। तो मैं नहीं समझता कि फ़िलहाल विपक्षी एकता को कोई बहुत बड़ा झटका लग जाएगा।"
				  																	
									  
	 
	त्रिवेदी कहते हैं कि अब ये क़रीब-क़रीब साफ़ हो चुका है कि 83 साल की उम्र में पवार न तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, न बन सकते हैं, न बनना चाहते होंगे। "लेकिन वो क्या चाणक्य की भूमिका या हरकिशन सिंह सुरजीत की भूमिका निभाना चाहते हैं? ये अभी उन्हें तय करना बाक़ी है"।
				  																	
									  
	 
	'ये क़दम पार्टी के सक्सेशन प्लान के बारे में ज़्यादा लगता है'
	विजय त्रिवेदी का मानना है कि शरद पवार का एनसीपी अध्यक्ष पद छोड़ना विपक्षी एकता के लिए बहुत बड़ा झटका नहीं है और ये क़दम एनसीपी के सक्सेशन प्लान (उत्तराधिकार की योजना) के बारे में ज़्यादा लगता है।
				  																	
									  
	 
	लम्बे समय से इस बात को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं कि शरद पवार के बाद एनसीपी की कमान कौन संभालेगा। क्या ये कमान उनकी बेटी और लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले के हाथ में जायेगी या उनके भतीजे अजित पवार के हाथ में?
				  																	
									  
	 
	विजय त्रिवेदी कहते हैं, "शरद पवार की राजनीति को समझने के लिए सबसे बेहतर बात उनकी आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का शीर्षक है। शरद पवार को उनकी शर्तों पर समझना होगा। पहला मुद्दा ये है कि एनसीपी का भविष्य क्या होगा। एनसीपी का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद भी नेता तो वही रहेंगे।"
				  																	
									  
	 
	विजय त्रिवेदी कहते हैं कि शरद पवार अगला क़दम क्या उठाते हैं वो महत्वपूर्ण होगा। वे कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि 83 साल की उम्र में क़रीब 6 दशक राजनीति में पूरे करने के बाद वो बिलकुल यू-टर्न लेंगे। उनके सम्बन्ध सभी राजनेताओं से हमेशा अच्छे रहे हैं। अगर शरद पवार के राजनीतिक दुश्मनों के बारे में सोचा जाए तो शायद ही कोई नाम याद आएगा।"
				  																	
									  
	 
	"वो सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ पार्टी तोड़कर नई पार्टी बना लेते हैं। लेकिन अगले चुनाव के बाद ही कांग्रेस के साथ सरकार बनाते हैं। और कांग्रेस की ही सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री भी बनते हैं। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी को अजातशत्रु कहा जाता था वैसे ही शरद पवार भी एक ऐसे नेता हैं जिनका राजनीति में कोई दुश्मन नहीं है।"
				  																	
									  
	 
	पार्टी को संभालने की क़वायद या कुछ और
	त्रिवेदी कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि शरद पवार भारतीय जनता पार्टी के साथ जाएंगे। वे कहते हैं कि ऐसा सिर्फ़ उसी सूरत में हो सकता है जब उन्हें सुप्रिया सुले को और अपनी पार्टी को बचाने की ज़रूरत पड़ जाए।
				  																	
									  
	 
	राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2019 के महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के बाद भी एनसीपी की तरफ़ से बड़ा दबाव था कि बीजेपी और एनसीपी मिल कर राज्य में सरकार बना लें। लेकिन शरद पवार ने उस वक़्त भी वो फ़ैसला नहीं लिया था। अजित पवार देवेंद्र फडणवीस की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनकर चले गए थे। लेकिन शरद पवार नहीं गए और उन्होंने शिव सेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली।
				  																	
									  
	 
	विजय त्रिवेदी कहते हैं, "एनसीपी का अगला नेता कौन हो, ये शरद पवार अपने रहते तय करना चाहते हैं। वे अपनी लोक सभा सीट बारामती पहले ही सुप्रिया सुले को दे चुके हैं। अगली उत्तराधिकार योजना ये हो सकती है कि सुप्रिया सुले पार्टी अध्यक्ष बन जाएं तो वो निश्चिन्त हो सकते हैं कि पार्टी उनकी कमान में रहेगी। उनका यह क़दम एनसीपी के सक्सेशन प्लान के बारे में ज़्यादा है। विपक्षी एकता के लिए तो वो जितना मौजूद रहते हैं, उतने उपलब्ध वो होंगे ही।
				  																	
									  
	 
	त्रिवेदी यह भी मानते हैं कि शरद पवार का क़दम अजित पवार की राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगाने का भी कारगर तरीक़ा हो सकता है। वे कहते हैं, "पिछले दो-तीन महीनों से अजीत पवार जिस बग़ावती सुर में थे उसमें पार्टी को टूटने से बचाने के लिए शायद शरद पवार को लगा होगा कि अभी सबसे बेहतर समय है कि पार्टी टूटने से पहले कोई क़दम उठा लिया जाए।"
				  																	
									  
	 
	विजय त्रिवेदी के मुताबिक़, अगर सुप्रिया सुले एक बार पार्टी अध्यक्ष बन जाएंगी तो एनसीपी सुप्रिया सुले की और शरद पवार की ही होगी। "अब पार्टी तो शिव सेना भी टूट गई। लेकिन फिर भी उद्धव ठाकरे शिव सेना के नेता हैं। अगर पार्टी टूटी भी तो सुप्रिया सुले के गुट को लोग असली एनसीपी मानेंगे।"
				  																	
									  
	 
	कई बड़े सवाल
	महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कुछ समय से तरह-तरह के सवाल उठते दिख रहे हैं। बड़ी चर्चा का विषय ये रहा है कि क्या अजित पवार एनसीपी विधायकों को तोड़ कर बीजेपी में शामिल होंगे?
				  																	
									  
	 
	दूसरा सवाल ये है कि अगर अजित पवार बीजेपी में गए तो एकनाथ शिंदे के गुट का क्या होगा? एकनाथ शिंदे पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि अगर अजित पवार बीजेपी में शामिल होते हैं तो उनका गुट सरकार से हट जायेगा।
				  																	
									  
	 
	पिछले साल महाराष्ट्र में हुए राजनीतिक उठापटक से जुड़ा वो मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट शिवसेना से अलग हो गया और जिस वजह से शिवसेना का विभाजन हुआ और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व की सरकार गिरी।
				  																	
									  
	 
	15 मई को सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर फ़ैसला सुनाया जाना है कि क्या शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराया जाए या नहीं।
				  																	
									  
	 
	नीरजा चौधरी कहती हैं, "अजित पवार के ख़िलाफ़ ईडी की कार्रवाई हो सकती थी। ईडी ने जो मामला दर्ज किया है उसमें अजीत पवार का नाम नहीं है पर ये कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका नाम डाला जा सकता है।"
				  																	
									  
	 
	"मई के महीने में उस केस की भी सुनवाई होगी जिसमें एकनाथ शिंदे गुट के 15 विधायक अयोग्य ठहराए जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो महाराष्ट्र सरकार के लिए दिक्क़त हो जाएगी। तो बीजेपी अजित पवार को अपनी तरफ़ लाने की कोशिशें कर रही है और ऐसा लग रहा था कि अजित पवार बीजेपी में जाने वाले हैं।"
				  																	
									  
	 
	चौधरी के मुताबिक़, शरद पवार के सामने सवाल था कि अगर ईडी अजीत पवार के ख़िलाफ़ कार्रवाई करता है तो उन्हें जेल जाने से कैसे बचाएँ।
				  																	
									  
	 
	वो कहती हैं, "उन्होंने विरोधाभासों से निपटने के लिए बीजेपी से दोस्ती ज़रूर की है, लेकिन वो कभी बीजेपी के साथ गए नहीं हैं। उनकी राजनीति अधिक धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील रही है। तो उनके जीवन के इस पड़ाव पर वो इस सम्भावना को देख रहे थे कि उनकी पार्टी का एक बड़ा धड़ा बीजेपी में जा सकता है। अफ़वाहें चल रही थीं कि क़रीब 40 विधायक अजित पवार के साथ एनसीपी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले थे"।
				  																	
									  
	 
	नीरजा चौधरी कहती हैं, "अब पवार ने पहल करते हुए अचानक से हमला किया है। और इस हमले से उनका राजनीतिक क़द और बढ़ गया है। आपने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की भावनात्मक प्रतिक्रियाएं देखीं। राज्य भर में भी वैसी ही प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी। अगर अजित पवार पार्टी छोड़ के जाते हैं और बीजेपी के साथ सरकार बनाते हैं तो जिस तरह उद्धव ठाकरे के पास ज़मीनी स्तर पर समर्थन है, उसी तरह शरद पवार को ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का समर्थन फिर से मिल जाएगा।"
				  																	
									  
	 
	वो कहती हैं कि शरद पवार की निगाहें 2024 पर टिकी हैं। "उन्होंने ये नहीं कहा है कि वो राजनीति छोड़ रहे हैं या रिटायर हो रहे हैं। लेकिन उन्होंने जो एलान किया है उससे उन्हें लोगों की सहानुभूति मिलेगी और उनका महाराष्ट्र और देश भर में राजनीतिक क़द बढ़ेगा। वो पार्टी के समर्थन को वापस हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।"