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Written By BBC Hindi
Last Updated : गुरुवार, 30 मार्च 2023 (14:47 IST)

पश्चिम बंगाल में कैसे सियासत का हथियार बन गया है रामनवमी का त्योहार?

पश्चिम बंगाल में कैसे सियासत का हथियार बन गया है रामनवमी का त्योहार? - Ram Navami festival has become a weapon of politics in West Bengal
-प्रभाकर मणि तिवारी (कोलकाता से बीबीसी हिन्दी के लिए)
 
पश्चिम बंगाल में कोई 1 दशक पहले तक रामनवमी का त्योहार चुनिंदा मंदिरों और आम लोगों के घरों तक ही सीमित था, लेकिन वहां अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच यह पर्व सियासत का प्रमुख अस्त्र बन गया है। वर्ष 2018 में इसी रामनवमी के जुलूस पर कथित पथराव के बाद आसनसोल में 2 समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी हुई थी।
 
रामनवमी के मौके पर विश्व हिन्दू परिषद और उसके सहयोगी संगठनों की ओर से सैकड़ों की तादाद में आयोजित रैलियां और हथियारों के साथ जुलूस निकालने के मुद्दे पर सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ लगातार टकराव होता रहा है। वर्ष 2018 में इसी रामनवमी के जुलूस पर कथित पथराव के बाद आसनसोल में 2 समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी हुई थी।
 
पश्चिम बंगाल में अब तक दुर्गा पूजा और काली पूजा के त्योहारों का ही बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाता रहा है। लेकिन वर्ष 2014 में राज्य में भाजपा के उभार के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और उससे जुड़े संगठन रामनवमी को भी उसके मुकाबले खड़ा करने की कवायद में जुटे हैं।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल, रामनवमी और हनुमान जयंती उत्सवों के बहाने विहिप और संघ ने वर्ष 2014 से ही राज्य में पांव जमाने की कवायद शुरू कर दी थी। और हर बीतते साल के साथ आयोजनों का स्वरूप बदला और इन संगठनों के पैरों तले की जमीन भी मजबूत होती रही।
 
क्या है योजना?
 
जानकारों का मानना है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अगर तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 42 में से 18 सीटें जीत लीं तो इसमें इन आयोजनों की अहम भूमिका रही है। उसके बाद साल-दर-साल इस मौके पर आयोजन और उसकी भव्यता बढ़ती ही जा रही है। बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी के मजबूत प्रदर्शन के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग और गहरा हुआ है।
 
अब जल्दी ही होने वाले पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए विहिप और हिन्दू जागरण मंच जैसे सहयोगी संगठनों ने इस साल भी बड़े पैमाने पर रैलियां निकालने और राम महोत्सव मनाने का ऐलान किया है। विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने इस साल रामनवमी यानी 30 मार्च से हनुमान जयंती (6 अप्रैल) तक पूरे राज्य में सप्ताहभर चलने वाले राम महोत्सव के आयोजन का ऐलान किया है। संघ की ओर से करीब 2 हजार इलाकों में रामनवमी के मौके पर समारोह आयोजित किए जाएंगे।
 
विहिप के दक्षिण बंगाल के प्रवक्ता सौरीष मुखर्जी बताते हैं कि इस साल विहिप की स्थापना का 60वां साल है। इसके अलावा अयोध्या के मंदिर में रामलला भी इस साल के आखिर या अगले साल की शुरुआत में अपने आसन पर बैठेंगे। इससे देशभर के रामभक्त बेहद उत्साहित हैं। हम रामनवमी के मौके पर राम और रामराज्य की बात घर-घर पहुंचाना चाहते हैं। इसी वजह से सप्ताहभर चलने वाला राम महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। इसके तहत उत्तर बंगाल के करीब 500 और दक्षिण बंगाल के 1,500 इलाकों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
 
विहिप का कहना है कि संगठन रामनवमी के मौके पर शस्त्र जुलूस नहीं निकालता है। लेकिन कुछ इलाकों में लोग खुद शस्त्र लेकर जुलूस में शामिल हो जाते हैं। बीते लोकसभा चुनाव में रामनवमी के आयोजन का फायदा भले भाजपा को मिला था। पर सौरीष का दावा है कि इन आयोजनों का चुनावी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। पिछले लोकसभा और वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा था। इसलिए विहिप उस इलाके पर खास ध्यान दे रही है।
 
चुनावी प्रदर्शन और रामनवमी की रैली
 
विहिप के उत्तर बंगाल के संगठन सचिव अनूप कुमार मंडल बताते हैं कि इलाके में रामनवमी के मौके पर सैकड़ों रैलियां आयोजित की जाएंगी। हालांकि वे मानते हैं कि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन के पीछे रामनवमी की रैलियां भी एक वजह थी। वह कहते हैं कि आगे भी इसका फायदा मिलेगा। लेकिन हम शस्त्र जुलूस नहीं निकालेंगे।
 
विहिप भले ही शस्त्र जुलूस नहीं निकालने का दावा करे, उसके सहयोगी संगठन हिन्दू जागरण मंच ने राज्य में कम से कम 20 इलाकों में शस्त्र जुलूस निकालने का ऐलान किया है। मंच के प्रवक्ता पारिजात चक्रवर्ती कहते हैं कि वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि जिन इलाकों में रामनवमी के जुलूसों की परंपरा रही है, वहीं जुलूस निकालना होगा। हम उन इलाकों में ही जुलूस निकालने की तैयारी कर रहे हैं।
 
ध्यान रहे कि ममता ने वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव से पहले कहा था कि 'रामनवमी के मौके पर जुलूस या रैलियां निकाली जा सकती हैं। लेकिन शस्त्र लेकर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी। किसी तरह की हिंसा भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।' पारिजात कहते हैं कि कहीं हिंसा नहीं होगी। लेकिन शस्त्र जुलूस तो निकलेगा ही। मंच की ओर से 500 रैलियों की योजना है। इनमें से 20 शस्त्र रैलियां होंगी।
 
ममता की चिंता
 
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि रामनवमी मनाने पर उनको कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन इससे राज्य के सांप्रदायिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। ममता केंद्र की कथित उपेक्षा के विरोध में 29 और 30 मार्च को 2 दिवसीय धरने पर बैठी हैं।
 
तृणमूल के प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं कि जिनको नरेन्द्र मोदी या प्रदेश के नेताओं की छवि से कोई फायदा नहीं मिल रहा है, वे तो भगवान की छवि लेकर सड़क पर उतरेंगे ही। हम भगवान की पूजा करते हैं, उनको वोट के लिए सड़कों पर नहीं उतारते।
 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भड़काऊ टिप्पणियों और रामनवमी के आयोजनों के विरोध की वजह से संघ और उसके सहयोगी संगठनों को अपना पांव जमाने में सहायता मिली है। इसके अलावा चुनाव के समय कई जगह 'जय श्रीराम' का नारा लगाने वालों के खिलाफ ममता जिस तरह भड़कीं और ऐसा करने वालों की गिरफ्तारियां हुईं, उससे भी उनकी छवि खराब हुई। बीजेपी को लोकसभा चुनावों में इसका फायदा मिला।
 
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं कि मुर्शिदाबाद जिले में सागरदिघी उपचुनाव के नतीजों ने तमाम दलों को अपनी रणनीति में बदलाव पर मजबूर कर दिया है। भाजपा को लग रहा है कि वहां अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस और सीपीएम के पाले में लौट रहे हैं। ऐसे में उसके लिए हिन्दू वोटरों का धुव्रीकरण जरूरी हो गया है। राम महोत्सव मनाने की जड़ें इसी में छिपी हैं।(फोटो सौजन्य : बीबीसी)
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