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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022 (07:55 IST)

योगी के यूपी से चला 'सियासी बुलडोजर' किस-किस को तबाह करेगा?

योगी के यूपी से चला 'सियासी बुलडोजर' किस-किस को तबाह करेगा? - politics of bulldozer
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
'वहाँ देखो।। वो बुलडोजर भी खड़े हैं हमारी सभा में' योगी आदित्यनाथ के इस बयान की चर्चा इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब हो रही है। इस बयान में वो एक प्लेन में बैठे हैं और खिड़की से अपनी चुनावी सभा को दिखाते हुए बुलडोजर के चुनावी सभा में खड़े होने पर गर्व कर रहे हैं।
 
इसी साल 25 फरवरी को बीजेपी नेता अरुण यादव ने अपनी टाइमलाइन पर ये 7 सेकेंड का वीडियो पोस्ट किया था। भारत की राजनीति में बुलडोजर को नई पहचान दिलाने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को ही दिया जा रहा है।
 
उत्तर प्रदेश का 'बुलडोजर राज'
यूं तो सिविक एजेंसियां अवैध निर्माण गिराने के लिए सालों से बुलडोजर का इस्तेमाल कर रही थीं। लेकिन अब भारत में बहस बुलडोजर के राजनीतिक इस्तेमाल पर हो रही है।
 
उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद बीजेपी की पूर्ण बहुमत के साथ लौटी तो जानकारों ने श्रेय केंद्र सरकार की फ्री राशन स्कीम को दिया और राज्य सरकार की मज़बूत क़ानून व्यवस्था को।
 
यूपी में क़ानून का राज लौटा इसका क्रेडिट ख़ुद योगी आदित्यनाथ 'बुलडोजर' को देते थे। कई रैलियों में वो कहते सुने गए 'राज्य में अपराधियों को बुलडोजर का ख़ौफ है।"
 
योगी आदित्यनाथ की दूसरी बार यूपी में जीत के बाद राज्य में बुलडोजर रैलियां निकाली गई। कानपुर में गैंगस्टर विकास दुबे के घर जब बुलडोजर से ढहाया गया, उसकी तस्वीरें भी योगी राज में खूब वायरल हुई।
 
उत्तर प्रदेश से होते हुए मध्य प्रदेश पहुँचा 'बुलडोजर'
यूपी में योगी सरकार की सफ़लता के इस फॉर्मूले को बाक़ी राज्य में 'विनिंग फॉर्मूले' के तौर पर शायद देखा जाने लगा है।
 
मध्य प्रदेश में खरगोन ज़िले में रामनवमी के दौरान हुई हिंसा, उसके बाद हिंसा में कथित तौर पर शामिल लोगों के घरों और दुकानों पर राज्य सरकार ने बुलडोज़र चलवाने का फ़ैसला किया।
 
राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा "जिन घरों से पत्थर आए हैं, उन घरों को पत्थर का ढेर बनाएंगे" और अपने फ़ैसले को सही ठहराया।
 
मध्य प्रदेश के बाद गुजरात में भी 'बुलडोजर'
लेकिन योगी आदित्यनाथ का 'बुलडोजर फॉर्मूला' मध्यप्रदेश में ही नहीं रुका। गुजरात के खंभात में रामनवमी के दौरान हिंसा हुई। राज्य सरकार पर आरोप है कि हिंसा के बाद जो अभियुक्त पुलिस ने पकड़े उनके सगे-संबंधियों की छोटी दुकानें 15 अप्रैल को बुलडोजर से तोड़ी गई।
 
गुजरात के बाद दिल्ली पहुँचा 'ऑपरेशन बुलडोजर'
दिल्ली में रामनवमी शांतिपूर्ण तरीके से बीती। लेकिन हनुमान जयंती पर जहांगीरपुरी में हिंसा हुई। हिंसा के लिए ज़िम्मेदार बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों की अवैध शरणार्थियों को ठहरा रहे हैं।
 
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने हिंसा के लिए जिम्मेदार दंगाइयों के अवैध कब्ज़े को तोड़ने के लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम से माँग की। तो निगम अधिकारी अगले ही दिन बुलडोजर लेकर जहांगीरपुरी पहुँच गए। कुछ घंटों तक उनकी कार्रवाई चली, लेकिन फिर कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उसे रोक दिया गया।
 
दिल्ली के बाद, हरियाणा की बारी
बीजेपी नेता अरुण यादव ने एक ट्वीट कर बताया कि हरियाणा के अंबाला में बुलडोजर चला, नशा तस्करी के आरोपों में फंसे पूर्व कांग्रेसी पार्षद के घर। इस अभियान का वीडियो भी उन्होंने शेयर किया।
 
इन तमाम राज्यों में बुलडोजर का इस्तेमाल करने के पीछे की वजहें ज़रूर अलग अलग थीं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और जानकार इसमें एक पैटर्न देख रहे हैं।
 
बीजेपी के भीतर 'देखा-देखी की राजनीति'
अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल हमेशा से होता आया है। लेकिन अपराधियों के अंदर, बुलडोजर के नाम का ख़ौफ़ पैदा करने की घटनाएं बीते कुछ दिनों में बढ़ी हैं। इनमें दिल्ली को छोड़ कर सभी बीजेपी शासित राज्य हैं। दिल्ली में ये कार्रवाई नगर निगम ने की है, जो बीजेपी शासित है।
 
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "बुलडोजर के इस्तेमाल की हाल फिलहाल में जो परंपरा सी चल पड़ी है, उसकी एक वजह 'देखा-देखी की राजनीति' है। उत्तर प्रदेश में अगर योगी कर सकते हैं और उनको इसका फ़ायदा मिल रहा है, आरएसएस का सपोर्ट भी मिल रहा है, तो फिर शिवराज क्यों नहीं। शिवराज के बाद तो हर बीजेपी शासित हर राज्य सरकारें ऐसा चाह रही है। ये देख कर लग रहा है बीजेपी की सोची समझी 'नीति और रणनीति' है।"
 
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार मनीष दीक्षित इसी बात को दूसरे उदाहरण के साथ समझाते हैं। बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, जैसे लव जिहाद के ख़िलाफ़ कानून यूपी में पहले आया और फिर मध्य प्रदेश में और फिर बाक़ी बीजेपी शासित राज्यों ने भी इसे अपनाने की पहल की।
 
मध्यप्रदेश की राजनीति के बारे में वो कहते हैं, "अगले साल यहाँ चुनाव हैं। शिवराज सिंह चौहान बीजेपी का 'हार्डलाइन' वाला चेहरा नहीं रहे हैं। उनकी छवि अटल बिहारी वाजपेयी की थी जिनकी हिंदू और मुसलमानों में समान तरह की स्वीकार्यता थी। लेकिन राज्य बीजेपी के नेताओं में एक दूसरे से आगे निकलने की एक होड़ सी लगी है। उसमें लगता है कि शिवराज भी पीछे नहीं रहना चाहते।"
 
मनीष आगे कहते हैं कि कहीं न कहीं बुलडोजर चलाने से नेताओं को लगने लगा है कि जनता में उन्हें पापुलेरिटी भी मिलती है।
 
कौन कौन हो रहे हैं तबाह?
नीरजा आगे कहती हैं, "आज बुलडोजर एक प्रतीक बन गया है एक मज़बूत हाथ का जो किसी को कुचल सकता है, फिर चाहे वो किसी तरह का अपराधी हो। उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चला, मुख्तार अंसारी के यहाँ, आज़म खान के यहाँ। इस वजह से अपराधियों को एक तरह से अल्पसंख्यकों के साथ जोड़ कर देखे जाने का एक संदेश दिया गया। कमोबेश यही संदेश बाक़ी राज्यों में भी दिया जा रहा है।"
 
इस वजह से वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं, "यूपी में बुलडोजर मज़बूत कानून व्यवस्था का पर्याय बन गया है। जिस तरह से बाक़ी राज्य इसे कॉपी कर रहे हैं, अब बीजेपी के 'गुड गवर्नेंस' का नया प्रतीक माना जा रहा है।"
 
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसी तरह का आरोप लगाते हुए ट्वीट किया। बुलडोजर चलेगा तो अहमद और अंसार पर, अजय और अर्जुन पर कभी नहीं चलेगा। मस्जिद के सामने की दुकानों को तोड़ा गया, लेकिन मंदिर के पास वाली दुकानों को छोड़ दिया गया, क्यों?
 
दिल्ली में जहाँ बुलडोजर चला, वो इलाका बीजेपी नेता के शब्दों में कथित तौर पर दंगाइयों का इलाका है। बीजेपी नेताओं की नज़र में दंगाई बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं।
 
बीबीसी से बातचीत में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा, "बीजेपी अगर 15 साल से नगर निगम की सत्ता पर काबिज़ है तो 15 हज़ार बार अतिक्रमण हटाने का काम किया है। इस साल 20 अप्रैल तक सिर्फ़ जहांगीरपुरी इलाके की बात करें तो अतिक्रमण हटाने की 7 बार कार्रवाई हुई है। अतिक्रमण हटाने की पिछली कार्रवाई यहां 11 अप्रैल को हुई थी। जो लोग इस कार्रवाई को धर्म के चश्मे से देख रहे हैं उनका मक़सद दंगाइयों को बचाना और शरण देने का है।"
 
'ऑपरेशन बुलडोजर'के आगे क्या?
राधिका रामाशेषन मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहती हैं कि उन्होंने पढ़ा है कि दिल्ली बीजेपी नेता इस पूरे मामले को एक तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की बात कह रहे हैं। इसके मायने साफ़ है कि नगर निगम चुनाव तक तो दिल्ली में ये बुलडोजर अभियान चलेगा ही। देखना होगा कि बीजेपी पूरी तरह से दिल्ली में अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ नया अभियान छेड़ने वाली हैं या नहीं।
 
हालांकि, राधिका नहीं मानती कि आने वाले विधानसभा चुनाव में गुजरात में इसका ज़्यादा इस्तेमाल होगा। उनकी माने तो गुजरात में ध्रुवीकरण पहले से है। अगर कुछ नए मुद्दे आते हैं तो बात और होगी। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में तो इसका इस्तेमाल होगा ही।
 
राधिका कहती हैं, जैसा दिल्ली में देखा गया, जहांगीरपुरी में जब बुलडोजर पहुँचा तो ना तो अरविंद केजरीवाल पहुँचे ना कांग्रेस के बड़े नेता, अकेले वृंदा करात पहुँची। मतलब साफ़ है विपक्ष के पास इसकी काट नहीं है।
 
नीरजा कहती है, "बुलडोजर अभियान अभी थमता नहीं दिख रहा। ये सब चुनाव की वजह से हो रहा है, उन्हीं राज्यों में हो रहा है जहाँ चुनाव होने हैं। 2024 तक तो चुनावी माहौल चलने ही वाला है। अगर ये निगम से जुड़ी कार्रवाई है तो सालों पहले अतिक्रमण ख़त्म हो जाना चाहिए था। ये पूरा मामला राजनीति से जुड़ा है।"
 
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने भी एक वीडियो संदेश में कहा है, "सुप्रीम कोर्ट के 14 दिन के स्टे का हम सम्मान करते हैं। लेकिन बुलडोजर फिर चलेगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट किसी के अवैध अतिक्रमण के ख़िलाफ़ खड़ी नहीं हो सकती। धार्मिक चश्मे से इसे देखना बंद करें।"
 
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