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Last Modified: मंगलवार, 1 मई 2018 (12:35 IST)

'आप अपनी मस्जिद का नाम अमन की मस्जिद रखें'

'आप अपनी मस्जिद का नाम अमन की मस्जिद रखें' - mosque
बीबीसी पर प्रकाशित पंजाब के एक गांव की कहानी के बाद पाकिस्तान की एक छात्रा ने पत्र लिखा है। बीबीसी ने दो दिन पहले पंजाब के मूम गांव में हिंदुओं और सिखों के सहयोग से मस्जिद के निर्माण की कहानी प्रकाशित की थी।
 
मूम गांव के ग़रीब मुसलमानों की मस्जिद के लिए यहां के हिंदुओं ने ज़मीन दी है और सिखों ने आर्थिक सहयोग किया है। इस गांव में अब गुरुद्वारे और मंदिर के साथ मस्जिद भी होगी।
 
पाकिस्तान के लाहौर से लिखे अपने ख़त में अक़ीदत नवीद ने लिखा है कि इस मस्जिद का नाम अब 'अमन की मस्जिद' होना चाहिए। अपने ख़त में उन्होंने गांव के शिक्षक भरत राम और मुसलमान मिस्त्री नाज़िम राजा को संबोधित किया है।
 
उन्होंने लिखा,
"प्यारे उस्ताद भरत राम, मिस्त्री नाज़िम राजा और आदरणीय गांववासियों, अस्सलाम-ओ-अलैकुम, नमस्ते, सतश्रीअकाल।
 
मैंने बीबीसी पर आपके गांव की कहानी पढ़ी। एक दूसरे के लिए आपके प्यार और भाईचारे ने मुझे प्रेरित किया है। मैं बहुत ख़ुश हूं कि हमारे पड़ोसी देश में आप लोग एक-दूसरे की मदद करने और देखभाल करने का शानदार उदाहरण हो, जबकि आप सब अलग-अलग धर्मों के हैं।
आपने साबित कर दिया है कि मुसलमान, सिख और हिंदू भाई-भाई हैं और प्यार से रह सकते हैं। मैं आपको सलाह दूंगी कि आप अपनी मस्जिद का नाम अमन की मस्जिद रखें।
 
भविष्य में आप सब लोग बच्चियों की पढ़ाई के लिए भी एकजुट रहेंगे। अंत में मैं यही कहूंगी कि आप भारत के असली हीरो हैं। आपसे गुज़ारिश है कि मेरे ख़त को आप लोग अपनी चौपाल पर पढ़ें ताकि आप अपने भाईचारे और एकता के लिए गर्व महसूस कर सकें।"
 
अक़ीदत नवीद पाकिस्तान के लाहौर में रहती हैं और सातवीं क्लास में पढ़ती हैं। उन्हें ख़बरें पढ़ने और ख़त लिखने में दिलचस्पी है। वो इससे पहले भी कई मुद्दों पर दुनियाभर के नेताओं को ख़त लिख चुकी हैं।
 
पंजाब में लुधियाना के पास एक गांव में मंदिर और गुरुद्वारे तो थे, लेकिन मस्जिद नहीं थी। ऐसे में गांव के हिंदुओं ने मंदिर के पास की ज़मीन मुसलमानों को दी ताकि वो मस्जिद बना सकें और सिखों ने उनकी आर्थिक मदद की। अब यहां मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा एक साथ हैं।
 
मूम में तीन अलग-अलग समुदाय के लोग एक साथ खुशी-खुशी रहते हैं। यहां तनाव का कोई इतिहास नहीं रहा है और सभी समुदाय के लोग किसी भी धर्मस्थल में पूरी आज़ादी से आ जा सकते हैं।
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