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Last Modified: मंगलवार, 1 मई 2018 (16:47 IST)

फर्जी पिता बने मुसीबत

फर्जी पिता बने मुसीबत | west bengal
भारत बांग्लादेश की सीमा पर बसे गांवों के लोग इन दिनों एक नई मुसीबत से जूझ रहे हैं। बचपन में स्कूल के दस्तावेज में पिता का गलत नाम लिखना उनकी नौकरी की राह में बड़ी बाधा बन गई है।
 
"तीन साल पहले भारत का नागरिक बनने पर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था। लेकिन अब वह खुशी काफूर हो चुकी है। इसकी वजह यह है कि वोटर कार्ड और आधार कार्ड पर तो असली पिता का नाम है। लेकिन शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर फर्जी पिता का। नतीजतन कहीं नौकरी नहीं मिल रही है," यह कहते हुए पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में रहने वाले सफीकुल मियां मायूस हो जाते हैं।
 
पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में लगभग तीन साल पहले भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते के तहत भारतीय नागरिक बने एक हजार से ज्यादा छात्र और युवक एक अनूठी समस्या से जूझ रहे हैं। दरअसल, भारत स्थित बांग्लादेशी भूखंडों में आजादी के बाद से रहने वाले सैकड़ों छात्रों ने स्थानीय नागरिकता नहीं होने की वजह से स्कूलों में दाखिले के लिए असली पिता की जगह भारतीय नागरिकों के नाम लिखा दिए थे। इसके बिना भारतीय सीमा में स्थित स्कूलों में दाखिला नहीं मिल सकता था।
 
समझौते के तहत नागरिकता मिलने के बाद वोटर कार्ड और आधार कार्ड तो पिता के असली नाम के साथ बन गया। लेकिन स्कूली प्रमाणपत्रों में पिता का नाम अब भी अलग है। नतीजतन ऐसे कई युवकों के नौकरी के आवेदन खारिज हो गए। आखिर में ऐसे लोगों ने जिला प्रशासन से संपर्क किया है। इसके बाद प्रशासन ने इनको दुरुस्त करने की प्रक्रिया शुरू की है।
अदला-बदली
भारत और बांग्लादेश के बीच जुलाई, 2015 में हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे की सीमा में स्थित भूखंडों की अदला-बदली की थी। इसके तहत इन भूखंडों में रहने वाले लोगों को अपना देश चुनने की भी आजादी थी। भारत में स्थित 51 बांग्लादेशी भूखंडों में रहने वाले 14।856 लोग भारतीय नागरिक बन गए और बांग्लादेश स्थिति 11 भारतीय भूखंडों में रहने वाले लगभग 37 हजार लोगों ने बांग्लादेश की नागरिकता स्वीकार कर ली। ऐसे ज्यादातर बांग्लादेशी भूखंड कूचबिहार जिले में थे।
 
ऐसे ही एक भूखंड के पोआतूरकुठी गांव में रहने वाले सफीकुल ने दिनहाटा हाईस्कूल में दाखिले के समय अपने पिता असगर अली मियां की जगह अपने एक रिश्तेदार लुत्फार मियां का नाम लिख दिया था। तब तक उसको यह नहीं पता था कि कुछ दिनों बाद ही भारत और बांग्लादेश के बीच भूखंडों की अदला-बदली की वजह से वह भारतीय नागरिक बन जाएगा।
 
सफीकुल बताता है, "दाखिले के समय पिता का गलत नाम लिखना मजबूरी थी। तब बांग्लादेशी भूखंड में रहने वालों के बच्चों को भारतीय स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पाता था।" अब वह सेना में भर्ती होना चाहता है। लेकिन शैक्षणिक दस्तावेज पर फर्जी पिता का नाम सबसे बड़ी बाधा बन गया है।
 
इन भूखंडों में रहने वालों की नागरिकता के लिए लंबे अरसे तक आंदोलन चलाने वाली भारत बांग्लादेश एनक्लेव एक्सचेंज कोआर्डिनेशन कमिटी के संयोजक दीप्तिमान सेनगुप्ता बताते हैं, "बांग्लादेशी भूखंडों में पैदा होने वाले हर बच्चे को स्कूलों में दाखिले के लिए फर्जी पिता और पते का इस्तेमाल करना पड़ता था। लेकिन अब रोजगार की तलाश कर रहे लगभग एक हजार युवकों को इस अनूठी समस्या से जूझना पड़ रहा है।"
 
असगर अली की तरह ही रहमान अली ने भी स्कूली दस्तावेज में अपने पिता नस्कर अली की जगह पड़ोसी राहत अली की नाम लिखाया था। दस्तावेजों में पिता के नाम अलग-अलग होने की वजह से उसकी नौकरी के भी कई आवेदन खारिज हो चुके हैं। अब उसे जिला प्रशासन का सहारा है। असगर कहता है, "हमने पढ़ाई-लिखाई के लिए पिता का नाम बदला। तब ऐसा करना हमारी मजबूरी थी। लेकिन भारतीय नागरिक बनने के बाद हालात बदल गए हैं। अब सरकार को इस समस्या पर शीघ्र ध्यान देना चाहिए।"
 
दुरुस्त करने की कवायद
इलाके के सैकड़ों युवकों ने जिला प्रशासन को इस मुद्दे पर पत्र लिखा है। इसके बाद अब प्रशासन ने कागजातों की गलती को दुरुस्त करने की कवायद शुरू की है। दिनहाटा के एसडीओ कृष्णाभ घोष बताते हैं, "कई युवक इस अनूठी समस्या को लेकर हमारे पास आए थे। हम उनकी ओर से मुहैया कराए गए तथ्यों की जांच कर रहे हैं। उसके बाद पिता के नाम सही करने के लिए संबंधित शिक्षा बोर्डों को पत्र भेजा जाएगा।"
 
दिनहाटा के बीडीओ अमर्त्य नाथ अब घर-घर जाकर ऐसे युवकों से मुलाकात कर तथ्य जुटा रहे हैं। कूचबिहार के जिलाधिकारी कौशिक साहा कहते हैं, "जिला प्रशासन इस मुद्दे पर स्कूली शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालयों के संपर्क में है। हमें उम्मीद है कि तमाम कागजातों में पिता का नाम जल्दी ही दुरुस्त हो जाएगा।" स्थानीय तृणमूल कांग्रेस विधायक उदयन गुहा ने भी यह कवायद तेज करने का भरोसा दिया है।
 
इधर, सफीकुल और रहमान ने आस नहीं छोड़ी है। वह कहते हैं, "हमारे बुजुर्गों ने नागरिकता के लिए दशकों लंबी लड़ाई लड़ी है। अब हम पिता का नाम बदलने की यह लड़ाई भी जरूर जीतेंगे।"
 
रिपोर्ट:- प्रभाकर, कोलकाता
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