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Written By BBC Hindi
Last Updated : गुरुवार, 15 जुलाई 2021 (14:55 IST)

इराक़ी ओलंपियन जो सद्दाम हुसैन के अधिकारियों को चकमा देकर भाग निकला

इराक़ी ओलंपियन जो सद्दाम हुसैन के अधिकारियों को चकमा देकर भाग निकला | Iraqi Olympian
जॉर्ज राइट (बीबीसी न्यूज़)
 
'राष्ट्रपति क्लिंटन की ओर मत देखना।' 1996 के अटलांटा ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह से ठीक पहले राएद अहमद को यही निर्देश मिले थे। इराक़ के गठीले वेटलिफ्टर राएद अहमद को कहा गया कि अमेरिका और क्लिंटन दोनों इराक़ को तबाह करना चाहते हैं लिहाज़ा उन्हें कोई सम्मान नहीं देना है। यह संदेश उन्हें इराक़ी ओलंपिक कमेटी के अधिकारियों की तरफ़ से मिले थे, उस वक़्त इराक़ की ओलंपिक कमेटी सीधे सद्दाम हुसैन के बड़े बेटे उदय के अधीन काम करती थी।
 
'उन्होंने कहा कि ना तो बायीं ओर देखना और ना ही दायीं ओर, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति वहां हो सकते हैं, उनकी ओर नहीं देखना है।' राएद याद करते हैं, 'मैंने उनसे कहा कि जी ठीक है।'
 
राष्ट्रीय झंडे के साथ जब राएद ने स्टेडियम में प्रवेश किया तो उनका चेहरा गर्व से चमक रहा था। तब वे 29 साल के थे और उन्हें दो एथलीटों पर तरजीह देते हुए इस सम्मान के लिए चुना गया था।
 
एक पल ने बदला पूरा जीवन
 
उन पर इराक़ी अधिकारियों की आंखें जमी हुई थीं, इसके बाद भी भी राएद ने अपनी दायीं ओर देख लिया।
 
राएद बताते हैं, 'मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ। क्लिंटन हमें देख रहे थे। जब उन्होंने हमें देखा तब वे काफ़ी खुश लग रहे थे। वे खड़े होकर ताली बजाने लगे थे।'
 
लेकिन इसी एक पल ने राएद के पूरे जीवन को बदल दिया।
 
इराक़ी शहर बसरा में राएद का जन्म एक शिया मुस्लिम परिवार में 1967 में हुआ था। राएद के पिता बॉडी बिल्डिंग के कोच थे। राएद ने 1980 के शुरुआती दशक से वेटलिफ्टिंग में नाम कमाना शुरू कर दिया था। 1984 में वे 99 किलोग्राम भार वर्ग के राष्ट्रीय चैंपियन बने। राएद जब खेल की दुनिया में कामयाब हो रहे थे, तब उनकी मातृभूमि में उथल-पुथल का दौर शुरू होने लगा था।
 
1991 में शिया अरबों ने इराक़ के दक्षिण और कुर्दों ने इराक़ के उत्तर में विद्रोह कर दिया।
 
यह विद्रोह पहले खाड़ी युद्ध के अंत के बाद शुरू हुआ था। इससे एक साल पहले इराक़ी सेना ने कुवैत पर आक्रमण कर दिया था, जिसके बाद अमेरिकी नेतृत्व में बहुराष्ट्रीय सेना ने इराक़ को पराजित किया था।
 
मध्य फरवरी, 1991 में बहुराष्ट्रीय सेना के ज़मीनी हमले की शुरुआत से पहले, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच।डब्ल्यू। बुश ने एक संदेश प्रसारित किया, जिसमें इराक़ियों से कहा गया था कि रक्तपात से बचने का एक रास्ता है।
 
उन्होंने अपने संदेश में कहा था, 'इराक़ी सेना और इराक़ी जनता मामले को अपने हाथों में लेकर तानाशाह सद्दाम हुसैन को बाहर करें।'
 
नियंत्रण से बाहर हो गया था विद्रोह
 
शिया और कुर्दों को लगा कि सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ विद्रोह की अमेरिका मदद करेगा और मार्च में विद्रोह शुरू हो गया।
 
बसरा और दूसरे इराक़ी शहरों में सैकड़ों आम नागरिक सड़कों पर उतर आए। इन निहत्थे लोगों ने सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा करना शुरू किया, जेल में बंद लोगों को रिहा किया और छोटे-मोटे हथियार भंडारों पर कब्ज़ा जमा लिया।
 
विद्रोह इस स्तर पर पहुंच गया था कि देश के 18 प्रांतों में से 14 में सद्दाम हुसैन की सेना का नियंत्रण नहीं रहा और लड़ाई बग़दाद से महज़ कुछ मील की दूरी तक पहुंच गई थी।
 
जैसे ही यह विद्रोह पूरे देश में फैल गया था तब अमेरिकी अधिकारियों ने ज़ोर देकर कहा कि इराक़ के आंतरिक मामलों में दख़ल देने और सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने की उनकी नीति कभी नहीं थी।
 
खाड़ी युद्ध की समाप्ति और विद्रोहियों के पास अमेरिकी मदद नहीं होने के चलते, सद्दाम हुसैन ने शिया और कुर्दों का दमन करने के लिए अपना क्रूरतम अभियान चलाया और कुछ ही महीनों में दसियों हज़ार लोग मारे गए।
 
राएद ने उस दौर में सद्दाम के चचेरे भाई अली हसन अल माजिद को देखा था। सद्दाम के इस भाई को केमिकल अली के नाम से जाना जाता था, उन्होंने विद्रोहियों को दबाने और बसरा यूनिवर्सिटी के छात्रों को खड़ा करके गोली मारने का ज़िम्मा सौंपा गया था।
 
इराक़ पर उस वक्त अमेरिका ने आर्थिक पाबंदियां लगाई हुई थीं और इसका असर आम लोगों पर पड़ने लगा था। रेयाद के मुताबिक लोगों के सामने रोटी और चावल की रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने का संकट था।
 
इस संकट से निकलने के बारे में राएद भी सोचने लगे थे।
 
दूसरे इराक़ी लोगों के पास यह सुविधा तो नहीं थी लेकिन राएद को प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए विदेश जाने का मौका था।
 
लेकिन इराक़ के शीर्ष एथलीट होने का मतलब था सद्दाम हुसैन के कुख्यात और क्रूर बेटे उदय हुसैन का सामना करना। उदय हुसैन उस वक़्त इराक़ी ओलंपिक कमेटी और इराक़ी फ़ुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष थे।
 
'वह जो चाहते, वो करते, क्योंकि वे सद्दाम के बेटे थे'
 
उदय हुसैन खिलाड़ियों की ग़लतियों पर सज़ा देने के लिए भी कुख्यात थे। अगर किसी खिलाड़ी से पेनल्टी मिस हो गई, या खेल के मैदान में उसे रेड कार्ड दिखाया गया या उसका प्रदर्शन उम्मीद से कमतर रहा तो उदय उन खिलाड़ियों को बिजली के झटके देता था, उन्हें मल वाले पानी में नहाने के लिए मजबूर करता और तो और फांसी तक दे देता।
 
राएद ने बताया, 'वह जो चाहते, वो करते, क्योंकि वे सद्दाम के बेटे थे।'
 
खुद को बचाने के लिए राएद की कोशिश यह होती कि इंटरनेशनल टूर्नामेंट को लेकर उदय की उम्मीदें बहुत ज़्यादा नहीं हों।
 
उन्होंने बताया, 'मैंने उन खिलाड़ियों को देखा था जो सज़ा पूरी करने के बाद जेल से निकले थे। फुटबॉल और बास्केटबॉल के खिलाड़ी कहते थे प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाओ तो सावधान रहो। उसने कई खिलाड़ियों की हत्या करवा दी है।'
 
राएद ने बताया, 'जब उदय पूछते थे कि गोल्ड मेडल जीत पाओगे तो मैं उन्हें नहीं कह देता था। मैं उन्हें कहता था कि गोल्ड मेडल जीतने के लिए कम से कम चार साल मेहनत करनी होगी, बसरा में कम भोजन और पानी के साथ यह काफी मुश्किल है। वेटलिफ्टिंग के लिए आपको ढेर सारा भोजन और फिजिकल थेरेपी चाहिए।'
 
धीरे-धीरे राएद को लगने लगा कि इराक़ से बाहर निकलने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं एक बेहतरीन रास्ता हो सकती हैं। इसके बाद वे पहले से ज़्यादा मेहनत करने लगे, वे दिन में दो सेशन में प्रैक्टिस करने लगे। बेहतर करने के लिए सप्ताह में पांचों दिन अभ्यास करने लगे थे।
 
1995 में राएद, वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए चीन गए, लेकिन वहां चीनी अधिकारियों की निगरानी इतनी ज़्यादा थी कि वे वहां से भागने की कोशिश भी नहीं कर सके। हालांकि उनका प्रदर्शन अच्छा रहा और वे ओलंपिक का टिकट हासिल करने में कामयाब रहे। उन्हें अटलांटा ओलंपिक का टिकट मिल गया।
 
अमेरिका में भागने की प्लानिंग
 
उन्हें ये मालूम हो गया था कि अमेरिका में कहीं ज़्यादा बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे। ओलंपिक के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने अमेरिका में मौजूद दोस्तों से संपर्क किया। उन्होंने ख़तरे को आंकने की कोशिश की।
 
राएद ने सोचा कि क्या होगा जब वे उन्हें इराक़ वापस भेज देंगे? उनके परिवार के साथ क्या होगा? वे इराक़ी अधिकारियों की निगरानी से कैसे भाग पाएंगे? राएद को मालूम नहीं था कि जब उनका जहाज़ अमेरिका में उतरेगा तो क्या भाग पाना संभव भी होगा या नहीं?
 
ओलंपिक गांव पहुंचने के बाद राएद आस-पड़ोस के साथ घुल मिल गए ताकि किसी को उन पर संदेह नहीं हो। आख़िरकार उन्हें पृथ्वी के सबसे बड़े खेल आयोजन में राष्ट्रीय झंडे के साथ मार्च करने की ज़िम्मेदारी मिली थी।
 
उद्घाटन समारोह से पहले उन्हें सद्दाम हुसैन के पूर्व अनुवादक अम्मार मेहमूद ने कई बार कहा कि राष्ट्रपति क्लिंटन की ओर मत देखना। अम्मार ओलंपिक टीम के साथ अटलांटा में थे।
 
राएद ने बताया, 'इराक़ी अमेरिका और उनके राष्ट्रपति को पसंद नहीं करते हैं, वे ऐसा ज़ाहिर करना चाहते थे।'
 
राएद ने 19 जुलाई, 1996 को जब ओलंपिक ट्रैक पर क़दम रखा तो महमूद उनके ठीक पीछे खड़े थे। राएद के मुताबिक़ महमूद ने उन्हें क्लिंटन को देखते हुए देख लिया था, लेकिन कुछ कहा नहीं। दरअसल इराक़ी अधिकारी क्लिंटन को इराक़ी दल के लिए ताली बजाते देखकर हैरान थे।
 
इसके बाद राएद के मन की शंका समाप्त हो गई थी, उन्होंने तय कर लिया कि वे इराक़ वापस नहीं लौटेंगे, लेकिन सवाल यह था कि वे अमेरिका में रहेंगे कैसे।
 
राएद ने अमेरिका में मौजूद अपने दोस्त मोहसिन फ़रीदी को फ़ोन किया और उन्हें अपनी योजना बताई। इसके बाद जॉर्जिया यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट इंतिफ़ाद कम्बर, उनसे मिलने ओलंपिक खेल गांव आए। उनके पास खेल गांव में आने का पास मौजूद था।
 
राएद ने उनसे वहां से बाहर निकालने में मदद मांगी। दोनों गुप्त ढंग से मिले लेकिन राएद को लेकर संदेह हो चुका था।
 
राएद ने बताया, 'इराक़ी ओलंपिक अधिकारियों को संदेह हो गया था कि मैं अमेरिका में रुकना चाहता हूं, उन्होंने मुझसे कहा कि यहां रुकने की अनुमति नहीं है, ऐसा करने पर मुझे जेल भेजा सकता है।'
 
लेकिन राएद अपने इरादे पर अडिग थे। उनकी योजना तैयार थी, लेकिन उससे पहले उन्हें प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था। वे अपने प्रतिस्पर्धियों को चुनौती नहीं दे सके। वे अंतिम से तीसरे पायदान पर रहे, उन्होंने दो बार में कुल 665।6 पाउंड का वज़न उठाया। प्रतियोगिता से बाहर होने के बाद उनका इरादा ओलंपिक गांव से भाग निकलने पर जा टिका।
 
जब भागने में कामयाब हुए राएद
 
28 जुलाई, 1996 को इराक़ी ओलंपिक टीम पास के चिड़ियाघर जाने की तैयारी कर रही थी। टीम के लोग नाश्ते के लिए जाने लगे तो राएद ने ऐसा जताया कि वे अपनी कोई चीज़ कमरे में ही भूल आए हैं।
 
इसके बाद तेज़ी से उन्होंने अपना बैग पैक किया और ओलंपिक गांव से बाहर निकल आए। बाहर कम्बर और फ़रीदी कार में उनका इंतज़ार कर रहे थे, राएद कार में सवार हुए और निकल पड़े।
 
राएद याद करते हैं, 'मैं उस वक्त केवल अपने परिवार के बारे में सोच रहा था। मुझे उन लोगों की चिंता हो रही थी। मुझे चिंता हो रही थी जब इराक़ी अधिकारियों को मेरे भाग निकलने का पता चलेगा तो उनके साथ क्या होगा। मैं अपने लिए नहीं डर रहा था क्योंकि मुझे मालूम था कि मुझे अच्छे लोगों की मदद मिल चुकी है, मुझे कोई ख़तरा नहीं था।
 
भागने के बाद बढ़ी मुश्किलें
 
अपने परिवार को लेकर डर भी था और चिंता भी हो रही थी। राएद के पास पासपोर्ट नहीं था, क्योंकि इराक़ी अधिकारियों के पास उसके सारे दस्तावेज़ थे। ऐसे में वह इराक़ी-अमेरिकी वकील से मिले, जो न्यूयॉर्क से उनकी मदद करने के लिए आए थे। फिर वे लोग एक इमिग्रेशन एजेंसी गए और वहां जाकर राएद के अमेरिका में रहने की इच्छा के बारे में बताया।
 
इसके बाद राएद के लिए एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया और उन्हें वर्ल्ड मीडिया के सामने बोलने को कहा गया। उस प्रेस कांफ्रेंस के बाद द न्यूयार्क टाइम्स ने राएद के बयान को हेडलाइन बनाया, 'मुझे अपने देश से प्यार है। मुझे शासन पसंद नहीं है।'
 
राएद बताते हैं कि इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद उदय हुसैन ने सीएनएन के दफ़्तर में फोन किया और मुझे संदेशा देने को कहा कि तुम्हें वापस लौटना होगा क्योंकि तुम्हारे पूरे परिवार को बंधक बना लिया गया है।
 
लेकिन राएद ने जब इराक़ लौटने से इनकार कर दिया तो उनके परिवार वालों को रिहा कर दिया गया। लेकिन राएद एक साल से भी ज़्यादा समय तक उनसे बात नहीं कर पाए।
 
राएद ने बताया, 'उनके लिए मुश्किलें काफ़ी बढ़ गई थीं, लोग उनसे बात करना तक पसंद नहीं करते थे। मेरी मां एक स्कूल की डायरेक्टर थीं, उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।'
 
राएद बताते हैं कि शरण मिलने के बाद पत्नी का फर्ज़ी इराक़ी पासपोर्ट बनवाने में होने वाले ख़र्च को चुकाने के लिए उन्होंने सप्ताह में सातों दिन काम किए। 1998 में उनकी पत्नी जॉर्डन पहुंचने में कामयाब हुईं और वहां संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों से मदद मांगकर वह अमेरिका पहुंचीं।
 
राएद और उनकी पत्नी मिशिगन के डियरबोर्न में बस गए। राएद और उनका परिवार आज भी यहीं रहता है। दोनों के पांच बच्चे हैं। इस इलाके में अरब समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। 2003 में इराक़ युद्ध शुरू होने के बाद इस इलाके में हज़ारों इराक़ियों ने शरण ली।
 
राएद हंसते हुए बताते हैं, 'डियरबोर्न बग़दाद की तरह ही है।' राएद ने यहां पुराने कारों की ख़रीद-बिक्री का काम शुरू किया और साथ में वेटलिफ्टिंग ट्रेनर के तौर पर भी काम किया। उन्होंने यहां इराक़ियों द्वारा शुरू की गई फुटबॉल और बास्केटबॉल की टीमों को भी कोचिंग दी।
 
2004 में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद वे पहली बार इराक़ लौटे। याद करते हुए वे बताते हैं, 'पूरे परिवार को मेरा इंतज़ार था। सब मुझे देखना चाहते थे। उन लोगों को मैंने भी 1996 के बाद से नहीं देखा था। जब उन्होंने मुझे देखा तो रोने लगे, उन्हें यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि वे मुझे फिर से देख रहे हैं।'
 
राएद के माता-पिता आज भी बसरा में रहते हैं, कोरोना संक्रमण से पहले वे हर साल अपने बेटे के पास अमेरिका आते रहे हैं।
 
भविष्य के बारे में राएद बताते हैं कि वे शायद मिशिगन में ही रहेंगे हालांकि इराक़ जैसे मौसम वाली किसी जगह बसने का इरादा हमेशा आकर्षक लगता है।
 
वे हंसते हुए बताते हैं, 'मैं फ्लोरिडा जाना चाहता हूं, क्योंकि वहां का मौसम इराक़ जैसा ही है। मिशिगन में दिसंबर से फरवरी तक रहना काफ़ी मुश्किल भरा होता है। काफ़ी ठंड पड़ती है और काफ़ी बर्फ़ गिरती है। मैंने यहां आने से पहले कभी बर्फ नहीं देखी थी। मैं सोचता हूं कि लोग तीन-चार इंच बर्फ के बाद भी कैसे बाहर निकलते हैं।'
 
राएद बताते हैं कि हर ओलंपिक की तरह ही वे टोक्यो ओलंपिक का उदघाटन समारोह ज़रूर देखेंगे। राएद बताते हैं, 'यह मेरे लिए पुरानी यादों में खोने जैसा है, यह मुझे याद दिलाता है कि मैं कितनी दूर चला आया हूं। जब भी मैं इसे देखता हूं, सोचता हूं कि काश मैं भी किसी तरह भाग लेता।'
 
'इस बार इसे देखना मुझे वास्तव में 25 साल पीछे ले जाएगा। मुझे यक़ीन है कि मैं अपने अनुभव को फिर से महसूस करूंगा।'