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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 14 जून 2023 (07:59 IST)

नीतीश कुमार बिहार के गया में ‘गंगाजल’ पहुंचाने में कितने कामयाब हुए

नीतीश कुमार बिहार के गया में ‘गंगाजल’ पहुंचाने में कितने कामयाब हुए - How successful was Nitish Kumar in bringing Gangajal to Gaya
विष्णु नारायण, गया से बीबीसी हिंदी के लिए
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने क़रीब छह महीने पहले नालंदा एलान किया था कि उनकी सरकार पानी की कमी से जूझने वाले तीन ज़िलों में घर-घर तक ‘गंगा जल’ पहुंचाएगी। इन तीन ज़िलों के नाम हैं – गया, नालंदा और नवादा।
 
इन इलाक़ों का भूगोल कुछ ऐसा है कि यहां रहने वालों के घरों तक पानी पहुंचाना सरकारों के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है।
 
ये सूखे पहाड़ी इलाक़े हैं जो एक लंबे समय से पानी की कमी झेल रहे हैं। यहां न तो कोई बड़ी नदी है और भूगर्भीय जल भी काफ़ी गहराई पर है।
 
नीतीश सरकार ने इन इलाक़ों की यही समस्या सुलझाने के लिए 4,475 करोड़ की लागत वाली “हर घर गंगा जल” शुरू की थी।
 
छह महीने बीतने के बाद नीतीश सरकार की ये परियोजना ज़मीन पर कितनी कामयाब हो रही है? ये समझने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि बिहार सरकार के लिए इस योजना को ज़मीन पर उतारना कितनी बड़ी चुनौती रही है।
 
कितना चुनौतीपूर्ण है इन शहरों तक पानी पहुंचाना
बिहार का भूगोल कुछ ऐसा है कि राज्य के उत्तरी इलाक़े बाढ़ का सामना करते हैं। और दक्षिणी इलाक़े भारी सूखे का सामना करते हैं। ये ज़िले बिहार के दक्षिणी हिस्से में ही आते हैं जहां लोग बूंद-बूंद पानी को तरसते रहे हैं।
 
कई ऐसी जगहें हैं जहां गर्मियों में हैंडपंप से लेकर बोरिंग तक फेल हो जाती हैं। और भूगर्भीय जल का स्तर पांच सौ मीटर नीचे तक गिर जाता है।
 
इन इलाक़ों के लिए ही नीतीश कुमार ने हर घर गंगाजल परियोजना शुरू की थी जिसका लक्ष्य 15 लाख़ से ज़्यादा परिवारों तक हर रोज़ 135 लीटर से ज़्यादा गंगा जल पहुंचाना था।
 
इस परियोजना की ख़ास बात ये है कि सरकार गंगा में आने वाली बाढ़ के पानी को विशाल जलाशयों में संचित कर उसे पाइप के ज़रिए इन इलाक़ों तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है।
 
गया में कितनी कामयाब हो रही है ये स्कीम
जब हम गया के बंगला स्थान मोहल्ले पहुंची तो यहां हमारी मुलाक़ात पचास वर्षीय मीरा कुमारी से हुई जो अपने मोहल्ले में रहने वाले तमाम लोगों के साथ टैंकर के पानी का इंतज़ार करते मिलीं।
 
तमाम डिब्बों और बाल्टियों के साथ पानी भरने के लिए लगी कतार में खड़ीं मीरा कहती हैं, “हमारे घर में पाँच लोग हैं। मार्च से ही नल में पानी नहीं आ रहा। नंबर लग-लगके टैंकर से ऐसे ही पानी भरते हैं। रोज़ लड़ाई-झगड़ा होता है। कभी 8-10 डिब्बा मिला तो कभी दो डिब्बा ही मिल पाता है।
 
''12 बज गया और भूखे-प्यासे इस बात के इंतज़ार में बैठे हैं कि पानी आएगा तो नहाएंगे-धोएंगे। दवाई खाएंगे। टैंकर आने की भी कोई तय टाइमिंग नहीं है।”
 
बंगला स्थान से सटे एक दूसरे मोहल्ले बैरागी मोहल्ले का हाल भी कुछ ऐसा ही दिखा। यहां हमारी मुलाक़ात टैंकर से पानी भर रहीं 12 वर्षीय मुस्कान और 10 वर्षीय विद्या से हुई।
 
पानी के सवाल पर दोनों बच्चियां एक स्वर में कहती हैं, “पानी की समस्या है तो क्या करें? टैंकर तक जाना ही पड़ेगा। बिना पानी गुजारा भी तो नहीं। स्कूल छूट रहा है। ट्यूशन छूट रहा है। पानी भरने से माथा भी दर्द देता है। सरकार बस पानी और पाइप का इंतज़ाम करा दे।”
 
किन इलाक़ों में पहुंचा पानी?
हालांकि, गया शहर के कुछ मोहल्लों में गंगा जल पहुंचने की पुष्टि भी हुई है। राम सरोवर इलाक़े में स्थित उस घर तक भी हम गए जहां नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने ‘गंगा जल’ पीकर योजना का शुभारंभ किया था।
 
इस घर के सदस्य विनयशील गौतम बीबीसी से कहते हैं, “बीच में तो स्थिति बहुत गड़बड़ थी। पिछले 10 दिनों से पानी आ रहा है लेकिन इतना अच्छा भी नहीं है कि हम उसे पीने के लिए इस्तेमाल कर सकें। बाक़ी चीजों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। कभी-कभी देखते हैं कि बाल्टी में गंदा पानी आ जाता है। डर तो लगता है।”
 
जब हमने उनसे गंगा जल को लेकर उनके ज़हन में चल रहे संशय पर सवाल किए तो उनका कहना था कि ‘ऐसी बात नहीं है। है तो पानी ही, लेकिन पीने लायक़ नहीं है।’
 
वहीं, अशोक नगर मोहल्ले में रहने वाले आदित्य नारायण सिंह की मानें तो उनके घर तक गंगाजल पहुँचाने वाला नीले रंग का पाइप पहुँचा ज़रूर है लेकिन उसमें अब तक पानी आना शुरू नहीं हुआ है।
 
हालांकि, वे पुरानी पाइप लाइन के ज़रिए पानी आने की बात स्वीकारते हैं। आदित्य नारायण सिंह कहते हैं, “हमारा इलाक़ा पहले से ही ड्राई ज़ोन रहा है। यहाँ घर-घर पानी की दिक्कत रही है। 500 फ़ीट की बोरिंग पर भी पानी नहीं आता। कई किराएदार तो पानी की दिक्कत की वजह से घर छोड़कर चले गए। अब जिसका घर है वो तो मजबूरन रहेगा ही। क्या करें?”
 
इस योजना के क्रियान्वन की वजह से हुई गया शहर में रहने वालों को सड़कों की खुदाई जैसी असुविधाओं का सामना करना पड़ा है।
 
इन असुविधाओं को बयां करते हुए स्थानीय नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता दयाशंकर सिंह कहते हैं, “गया वासियों के लिहाज़ से तो यह अति महत्वाकांक्षी योजना थी। सीएम ख़ुद को भगीरथ कहलवाना चाहते हैं, लेकिन ज़मीन पर देखने में पाते हैं कि यह योजना ढाक के तीन पात होकर रह गई है। मेरे मोहल्ले मुफस्सिल मोड़ में मेरे घर तक पाइप तो पहुँचा है लेकिन पानी नहीं पहुँच सका है।”
 
गया शहर में जारी जलसंकट और उससे लोगों को हो रही समस्याओं के बारे में नगर आयुक्त अभिलाषा शर्मा बताती हैं, ''जिला प्रशासन के ज़िम्मे सिर्फ़ योजना की मॉनिटरिंग करना है। गंगा के अधिशेष जल (बाढ़ के पानी) को लाकर गया और नालंदा के जलाशयों में संचयित करना और फिर उसे ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुँचाने का काम जल संसाधन विभाग के ज़िम्मे है। उसके बाद का काम जैसे शहर के अलग-अलग इलाक़ों में पानी सप्लाई आदि की ज़िम्मेदारी बुडको (BUIDCO- बिहार अर्बन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड) की है।''
 
बुडको के परियोजना निदेशक प्रदीप कुमार झा इस स्कीम के बारे में विस्तार से बताते हुए झा कहते हैं, “यह योजना साल 2018 से ही चल रही है। इसे ‘इम्प्रूवमेंट ऑफ गया वॉटर स्कीम’ के तौर पर शुरू किया गया था। इसमें बोरिंग के पानी को स्टोरेज के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना था।''
 
''बाद में इस स्कीम को सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट से जोड़ दिया गया। ऐसे में जल संसाधन विभाग हमारे टैंकों तक गंगाजल पहुँचाता है, और हम उसी गंगा जल को लोगों में बाँटते हैं।”
 
कितने घरों तक पहुंचा गंगा जल
प्रदीप कुमार झा का दावा है कि इस योजना के ज़रिए 55 हज़ार घरों तक गंगा जल पहुंचा रहे हैं।
 
झा कहते हैं, “शुरुआती लक्ष्य के हिसाब से हमें 75,000 घरों तक गंगा जल पहुंचाना था, उसमें से लगभग 55,000 घरों तक गंगा जल पहुंचाया जा रहा है जो लगभग 73 फ़ीसद है। नेटवर्क को बेहतर किया जा रहा है। इसके अलावा पुरातन व पठारी क्षेत्र होने की वजह से पाइपलाइन बिछाने में काफ़ी दिक़्क़तें आईं।”
 
इस योजना ने एलान से लेकर अमलीकरण तक एक लंबा सफर तय किया है जो आंकड़ों में भी नज़र आ रहा है।
 
नगर आयुक्त अभिलाषा शर्मा बताती हैं कि पहले गर्मियों में 52 टैंकर पानी ख़र्च होता है, अब यह आंकड़ा घटकर 41 रह गया है। लेकिन अभी 22 हज़ार परिवारों तक पहुंचना बाकी है जिसका मतलब ये है कि गया शहर में रहने वाले लाखों लोग अभी भी हर रोज़ जल संकट से जूझ रहे हैं।
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