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Last Modified: गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018 (11:07 IST)

ग्रीन पटाखे क्या हैं, कहां और कब मिलेंगे

ग्रीन पटाखे क्या हैं, कहां और कब मिलेंगे | Green Fireworks
- टीम बीबीसी हिंदी (नई दिल्ली)
 
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देशभर में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाने से इनकार करते हुए कुछ शर्तों के साथ दिवाली पर आतिशबाज़ी की छूट दी है। दिवाली पर सिर्फ़ दो घंटे के लिए रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाए जा सकेंगे। इसके साथ कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि त्योहारों में कम प्रदूषण वाले 'ग्रीन पटाखे' ही जलाए और बेचे जाने चाहिए।
 
 
जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि प्रतिबंधित पटाखे बेचे जाते हैं तो संबंधित इलाक़े के थाना प्रभारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा और उन पर अवमानना का मामला चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने जिस 'ग्रीन पटाखों' की बात की है वो आखिर होते क्या है और पारंपरिक पटाखों से वे अलग कैसे होते हैं?
 
 
दरअसल 'ग्रीन पटाखे' राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है।
 
 
नीरी ने ग्रीन पटाखों पर जनवरी में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के उस बयान के बाद शोध शुरू किया था जिसमें उन्होंने इसकी ज़रूरत की बात कही थी।
 
 
ग्रीन पटाखे होते क्या हैं?
ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है। सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं।
 
 
नीरी के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर साधना रायलू कहती हैं, "इनसे जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी। 40 से 50 फ़ीसदी तक कम। ऐसा भी नहीं है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं होगा। पर हां ये कम हानिकारक पटाखे होंगे।"

 
डॉक्टर साधना बताती हैं कि सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था। ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं। नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे।
 
कैसे-कैसे ग्रीन पटाखे
डॉक्टर साधना बताती हैं कि उनके संस्थान ने ऐसे फॉर्मूले तैयार किए हैं जिसके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी। इन ग्रीन पटाखों की बेहद ख़ास बात है जो सामान्य पटाखों से उन्हें अलग करती है। नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं।
 
 
पानी पैदा करने वाले पटाखेः ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे। नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है। पिछले साल दिल्ली के कई इलाक़ों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी।
 
 
सल्फ़र और नाइट्रोजन कम पैदा करने वाले पटाखेः नीरी ने इन पटाखों को STAR क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है।
 
 
कम एल्यूमीनियम का इस्तेमालः इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है।
 
 
अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारण गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे।
 
 
कहां मिलेंगे ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में उपलब्ध नहीं हैं। यह नीरी की खोज है और इसे बाज़ार में आने में काफी वक़्त लग सकता है। इसे बाज़ार में उतारने से पहले सरकार के सामने इसके गुण और दोष का प्रदर्शन करना होगा जिसके बाद इसे बाज़ार में उतारने की अनुमति मिलेगी।
 
 
फ़िलहाल भारत के बाज़ारों में पारंपरिक तरीके़ से पटाखों का निर्माण हो रहा है। हालांकि कुछ केमिकल पर प्रतिबंध लगने के बाद कई तरह के पटाखों का निर्माण बंद हो चुका है। नीरी ने भले ही ग्रीन पटाखे बनाए हों, लेकिन इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी भारतीय बाज़ारों पर ही होगी। ऐसे में बिना बेहतर प्रशिक्षण के इसे बनाना चुनौती होगी।
 
 
दुनिया में कहा-कहां ग्रीन क्रैकर्स जलाए जाते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने जिस ग्रीन पटाखों के बारे में बात की है उसका इस्तेमाल दुनिया के किसी देश में नहीं होता है। डॉक्टर साधना कहती हैं कि ग्रीन पटाखे का आइडिया भारत का है और अगर इसे बाज़ारों में उतारा जाता है तो हम दुनिया को एक नई दिशा दे सकते हैं।
 
 
वो बताती हैं कि इस दिशा में संस्थान का शोध पूरा हो चुका है और अब मामला सरकारी एजेंसियो के पास है। डॉक्टर साधना कहती हैं, "हम लोगों ने अप्रूवल के लिए पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) को लिखा है। उसकी अनुमति मिलने के बाद इसे बाज़ार में उतारा जा सकेगा।"
 
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