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Last Updated : गुरुवार, 1 नवंबर 2018 (21:44 IST)

वे लोग जिन पर 'फेक न्यूज' फैलाने और उनसे कमाई का आरोप है

वे लोग जिन पर 'फेक न्यूज' फैलाने और उनसे कमाई का आरोप है - Fake news
विनीत खरे, भोपाल
भारत में आरोप लगे हैं कि फेक न्यूज के कारण भीड़ की हिंसा और लिंचिंग के मामलों में लोगों की मौत हुई है।
ऐसे कौन से लोग हैं जो ऐसे ट्विटर हैंडल्स और फेसबुक पन्ने या वेबसाइट्स चलाते हैं जिन पर फेक न्यूज फैलाने के आरोप लगे हैं?
 
फेक न्यूज के फैलने में व्हाट्स ऐप को जिम्मेदार माना जाता है जिसके भारत में 20 करोड़ से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं।
 
रिपोर्टों के मुताबिक साल 2018 में फेक न्यूज के कारण 24 लोगों की मौत हुई है। इसी विषय की जांच के लिए हम ग्वालियर पहुंचे।
 
शहर के मशहूर राम मंदिर के सामने शॉपिंग कॉम्प्लेस में आकाश सोनी का दफ्‍तर है। आकाश खुद को 'बाल स्वयंसेवक' बताते हैं जो चार साल की उम्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं।
 
पिछले छह सालों से आकाश सोनी 'बीजेपी ऑल इंडिया' नाम से एक फ़ेसबुक पेज चला रहे हैं। इस पेज के करीब 12 लाख फेसबुक लाइक्स हैं।
 
फैक्ट-चेकर वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज' ने 'बीजेपी ऑल इंडिया' फेसुबक पन्ने को लगातार फेक न्यूज फैलाने वाला बताया है।
 
'ऑल्ट न्यूज़' के मुताबिक पन्ने पर छपी एक तस्वीर में दावा किया गया कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी को अमरीका के एक हवाईअड्डे में जांच के दौरान कपड़े उतारने पड़े हैं। ये फेक खबर थी।
 
फैक्ट-चेकर वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज़' ने 'बीजेपी ऑल इंडिया' फेसुबक पन्ने को लगातार फेक न्यूज फैलाने वाला बताया है।
फेक न्यूज के पीछे सोच क्या
ये खबरें क्यों छपीं, इस पर आकाश सोनी के अपने तर्क हैं। कभी वो पोस्ट में गलती की बात करते हैं, कभी कहते हैं कि गलत खबरें तो मीडिया के हर हिस्से में चलती हैं तो सिर्फ उन पर सवाल क्यों। वो ऑल्ट न्यूज की विश्वसनीयता और उसकी फंडिंग पर सवाल उठाते हैं।
 
आकाश के अनुसार वो 'वी सपोर्ट अमित शाह', 'वंदे मातरम' और खुद के नाम से भी फेसबुक पन्ने चलाते हैं।
 
कई फेसबुक ग्रुप्स के सदस्य आकाश ने बताया कि वो करीब 350 व्हाट्सऐप ग्रुप्स से जुड़े हैं जहां से उन्हें लगातार जानकारियां मिलती रहती हैं जिसे वो फेसबुक पन्नों पर पोस्ट करते हैं।
 
आकाश बताते हैं कि इस फेसबुक पन्ने ने उन्हें एक पहचान दी है और पेज पर समस्याओं के ज़िक्र भर से उसका हल निकल जाता है।
 
सीसीटीवी कैमरों से लैस आकाश सोनी के दफ्तर में दरवाजे के साथ स्वामी विवेकानंद की एक लंबी-सी तस्वीर लगी थी। हाथ में दो मोबाइल, माथे पर टीका और कुर्ता पहने आकाश सोनी की कुर्सी और मेज के सामने सोफा रखा है।
 
आकाश के मुताबिक इसी दफ्तर में वो सुबह से देर रात तक विभिन्न फेसबुक पन्नों के लिए सामग्री जुटाते हैं।
 
पेशेवराना तरीके से होता है काम
उनकी सोच किसी डिजिटल न्यूजरूम में काम करने वाले प्रोफेशनल जैसी है - सुबह क्या छपना चाहिए, दफ़्तर से पहले या बाद में लोग क्या पढ़ना चाहेंगे, दोपहर में लोग क्या देखना चाहेंगे, वो ये सब बातें ध्यान में रखकर फ़ेसबुक पोस्ट करते हैं।
 
एक सूत्र के मुताबिक गूगल ऐड्स के माध्यम से कई लोगों की मासिक कमाई लाखों में होती है, इसलिए जरूरी होता है कि लोगों को पन्नों पर आने और क्लिक करने के लिए प्रेरित किया जाए।
 
'बीजेपी ऑल इंडिया' पेज पर भाजपा और नरेंद्र मोदी के पक्ष में बातों के अलावा कोशिश है पेज पर आने वाले हर सब्स्क्राइबर के लिए कुछ न कुछ हो, जैसे राशिफल, स्वास्थ्य, खेल जगत, मनोरंजन के अलावा हिंदू धर्म से जुड़ी बातें।
 
आकाश सोनी कहते हैं, 'मैं और मेरा एक मित्र राजेंद्र हर 40 मिनट में एक पोस्ट डालते हैं. अपना संदेश फैलाने के लिए बैनर होता है जो राजेंद्र और मैं बनाते हैं.... (पेज का) उद्देश्य युवा पीढ़ी को राष्ट्रवाद की तरफ़ मोड़ना है, भारतीय संस्कृति को लोगों तक पहुंचाना है।'
 
आकाश बताते हैं कि उन्होंने साल 2011 से नरेंद्र मोदी को प्रमोट करना शुरू किया ताकि 'देश और युवाओं की दिशा बदली जा सके।'
 
वो कहते हैं, 'हमें पता था कि इससे (फ़ेसबुक से) हम अपनी बात लोगों तक बिना काटे-पीटे, प्रभावी तरीके से पहुंचा सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक चैनल पर आपको इंतज़ार करना पड़ता है - छापें, दिखाएं या न दिखाएं, ये उन (पत्रकारों) पर निर्भर करता है।'
 
कैसे होता है खेल
वेबसाइट पर एक पोस्ट है जिसका शीर्षक है 'कांग्रेस की रैली, पाकिस्तान का झंडा। इस पोस्ट में एक वीडियो है जिसमें एक रैली में इंडियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का झंडा लहराता दिख रहा है, लेकिन आईयूएमएल के झंडे को पाकिस्तान का झंडा बताया गया है।
 
ऑल्ट न्यूज के मुताबिक इस पोस्ट को 3,600 बार शेयर किया गया। ये वीडियो जिसमें झंडे को गलत तरीके से पेश किया गया, दूसरी वेबसाइट्स पर भी पोस्ट हुआ था।
 
ये खबर पेज पर कैसे आई?
 
आकाश कहते हैं, 'वो एक वेबसाइट की खबर थी। वो हमारी पर्सनल खबर नहीं थी। वेबसाइट ने वो खबर डाली थी। आकाश ने बताया कि उन्होंने वो 'खबर हटा ली थी' लेकिन जब हमने चेक किया तो वो पोस्ट वहां मौजूद था।
 
क्या पोस्ट लगाना एक गलती थी, इस पर आकाश कहते हैं, 'कभी-कभी मिस्टेक हो जाती है… मिस्टेक तो सबसे होती है। बस यही है वो गलती मान ले कि हाँ हमसे गलती हुई है, यही हो सकता है।'
 
ऑल्ट न्यूज में एक अन्य पोस्ट की तस्वीर का जिक्र है जिसमें जवाहर लाल नेहरू महिलाओं से घिरे हुए नजर आते हैं।
नेहरू की वो तस्वीर
ऑल्ट न्यूज में एक अन्य पोस्ट की तस्वीर का जिक्र है जिसमें जवाहर लाल नेहरू महिलाओं से घिरे हुए नजर आते हैं। इस फोटो पर ऊपर और नीचे नेहरू के लिए भद्दी भाषा का प्रयोग किया गया है।
 
इस पोस्ट को तीन हजार से ज्यादा बार शेयर किया गया। तकनीकी जालसाजी से बनाई गई कई साल पुरानी इस तस्वीर को ऑल इंडिया बीजेपी ने फोटोशॉप नहीं किया। फैक्ट-चेक वेबसाइट बूमलाइव ने इसे फोटो को झूठा बताया।
 
आकाश कहते हैं, 'हो सकता है ये फ़ोटो एक बंदा और है, उसने डाली हो... एक हमारे साथ राजेंद्र जी हैं जो (पेज) साथ में चलाते हैं। पर हमें याद नहीं है कि हमने कोई ऐसी पोस्ट डाली है।'
 
वो कहते हैं, 'कोशिश हम जरूर करते हैं कि हमसे कोई गलत खबर पब्लिश न हो। आपने एक या दो पोस्ट देखी… गलतियां सबसे होती हैं.... हम गलती मानते हैं कि हां हमसे गलती से पोस्ट हुआ है।'
 
 
दो बड़ी खबरें
आकाश सोनी सांप्रदायिकता फैलाने के आरोपों से इनकार करते हैं और कहते हैं कि उन्हें कोई 'गाइडलाइन नहीं मिलती कि आपको (फेसबुक पर) क्या डालना है।'
 
वो कहते हैं, 'हम अपने पेज के लिए स्वतंत्र हैं। हम (भाजपा के) कोई पेड कर्मचारी तो हैं नहीं. न हमारे पास आधिकारिक ज़िम्मेदारी है… आज तक भाजपा की ओर से कोई गाइडलाइन नहीं मिली है कि आपको क्या डालना है… ये बात कोई प्रूव भी नहीं कर सकता।'
 
आकाश के मुताबिक पिछले सालों में दो कहानियों ने पेज को जबरदस्त पहुंच दी है - पहली ताजमहल का इतिहास जिसमें दावा किया गया था कि ताजमहल की जगह पहले एक मंदिर था, और दूसरी कहानी जिसमें दावा किया था कि कांग्रेस का चुनावी पंजे का निशान अनधिकृत है।
 
आकाश सोनी से हमारी बातचीत के बाद हमने पाया कि 'बीजेपी आल इंडिया' नाम से फेसबुक पन्ने का नाम बदलकर 'आई सपोर्ट नरेंद्रभाई मोदी बीजेपी' कर दिया गया। सैद्धांतिक विचारधारा और आर्थिक कारण आकाश सोनी जैसे लोगों को प्रेरणा देते हैं।
 
आकाश के मुताबिक उनका मकसद है ऐसी खबरों को लोगों तक पहुंचाना जिसे मीडिया अनदेखा कर देता है, साथ ही मीडिया की मदद से लोगों की भलाई करना।
 
आकाश सोनी के दफ्तर से थोड़ी दूर एक बिल्डिंग के तीसरे माले पर 'कवरेज टाइम्स' का दफ्तर है।
 
कवरेज टाइम्स का कारोबार
पिछले साल नवंबर में ऑल्ट न्यूज ने 'कवरेज टाइम्स' को 'उभरती हुई फेक न्यूज साइट' बताया था जिसने बेहद कम समय में अपनी पहुंच बढ़ाई थी। जब हम रविवार दोपहर बाद दफ़्तर पहुंचे तो वहां दो लोगों के अलावा कोई नहीं था।
 
वेबसाइट के 27 साल के 'एडिटर इन चीफ' राजू शिकरवर के मुताबिक, '(वेबसाइट शुरू करने के) तीन महीने में हमारी वेबसाइट टॉप 10,000 में आ गई थी' और गूगल ऐड्स आदि से उनकी महीने की एक लाख रुपए तक की कमाई हो जाती थी।
 
और फिर वेबसाइट पर छपी खबरों के खिलाफ शिकायतें आनी शुरू हुईं जिससे वेबसाइट की रीच, शेयरिंग पर असर पड़ने लगा।
 
ऐसी ही एक स्टोरी बीबीसी की थी।
 
बीबीसी की बर्मा से रोहिंया समुदाय पर एक कहानी में एक रोहिंग्या लड़की को चंद लम्हों के लिए दिखाया गया।
 
रिपोर्ट में लड़की के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी, लेकिन कवरेज टाइम्स की वेबसाइट पर लिखा गया - '14 साल की रोहिंग्या लड़की जिसके पति के 18 बच्चे, क्या आप ऐसे शरणार्थी को भारत में बसाना चाहते हो।'
 
ये एक फेक न्यूज थी, और राजू इस बात को मानते हैं।
 
राजू के मुताबिक उनके पास आई कहानी से जुड़े डेटा के अनुसार 'ये लड़की शादी-शुदा थी... इसके पति की और भी बीवियां थीं,' हालांकि ये डेटा कहां से आया और अभी वो कहां है, इस बारे में कोई साफ जवाब नहीं मिला।
 
उन्होंने कहा कि उन्हें एक सूत्र से जानकारी मिली थी, लेकिन वो जानकारी सर्वर से डिलीट हो गई है।
 
राजू के मुताबिक उनका मकसद है चरमपंथ, बांग्लादेश से अप्रवासन जैसे मुद्दों को सामने लाना जिन्हें लेकर हिंदुओं में चिंता है। वो कहते हैं कि मीडिया ऐसे विषयों पर बात नहीं करता।
 
राजू शिकरवर के अनुसार कहानी की 'ज़बरदस्त शिकायत' के बाद उसे वेबसाइट से हटा लिया गया, लेकिन वेबसाइट की पहुंच, लाइक्स, शेयर आदि का खासा नुकसान हुआ।
 
वो कहते हैं वो किसी गुट से नहीं जुड़े हैं।
 
राजू कहते हैं, 'कभी-कभी ऐसा होता है कि बाइचांस आपका डेटा फेक चला जाए, क्योंकि आप उसे अच्छी तरह से पढ़ नहीं पाए हों या उसमें हेडिंग में कुछ ग़लती से हो जाए, नहीं तो जो भी डेटा जाता है वो सही जाता है।'
 
पैसे कमाना मकसद
वो कहते हैं, 'ना ही मुझे किसी मुस्लिम से समस्या है, ना जो हमारे देश में रह रहे हैं उनसे समस्या है, आप रह रहे हैं रहो, अच्छे से रह रहे हो, हमें कोई समस्या नहीं है.... मान लो अगर आप एक देश में रह रहे हैं, तो हमारे देश में जो है उसे फॉलो करना चाहिए, जैसे आपका बंदे मातरम है, राष्ट्र गान है, तो हमें उनका तो सम्मान करना चाहिए. हम जिस देश का खा रहे हैं उसका तो सम्मान करना बनता है, जायज है वो चीज। अगर आप उसी चीज़ का विरोध करने लगें तो आप कहां इंडिया के रहे। आप तो नहीं हो न।'
 
कवरेज टाइम्स से जुड़े रामनेंद्र सिंह के मुताबिक उनका मकसद पैसे कमाना होता है, न कि खबर से 'दंगे हो जाएं' ऐसी खबरें करना।
 
वो कहते है, 'कभी-कभी हमें (पोस्ट की वास्तविकता के बारे में) पता नहीं चल पाता है। (जब) सवाल आते हैं तो (हम कहानी) हटा देते हैं' क्योंकि आपत्तिजनक पोस्ट होने पर फेसबुक पेज, पहुंच या पोस्ट ब्लॉक कर देता है।'
 
वो पूछते हैं, 'हम क्यों चाहेंगे कि हमारे बिजनेस पर असर पड़े। हम एजेंडा लेकर काम नहीं कर रहे हैं। हमारा मकसद फेसबुक से पैसा कमाना है।'
 
रामनेंद्र मानते हैं कि फेसबुक की कड़ी नीतियों के कारण फेक न्यूज पर लगाम लग रही है।
 
कांग्रेस समर्थक वेबसाइट
ग्वालियर से दूर भोपाल में 23 साल के अभिषेक मिश्रा वायरल इन इंडिया नेट नाम की वेबसाइट चलाते हैं।
 
वेबसाइट और उससे जुड़े फेसबुक पन्ने पर आपको कांग्रेस नेताओं जैसे कमलनाथ के पक्ष में और नरेंद्र मोदी पर तंज कसते कई पोस्ट मिल जाएंगे।
 
एलेक्सा पर भारत में वायरल इन इंडिया डॉट नेट की रैंकिंग 740 के आसपास है। वेबसाइट का करीब 90 प्रतिशत ट्रैफिक भारत से आता है, लेकिन सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और कतर से भी लोग वेबसाइट पर आते हैं।
 
भोपाल के एक बेहद व्यस्त इलाके में क़रीब चार साल पुरानी इस वेबसाइट का कई मंजिला दफ्तर है, हालांकि इतनी जल्दी इतने बड़े दफ्तर के पीछे की क्या फंडिंग है, इस पर अभिषेक ने कहा 'इसके पीछे कोई राजनीतिक फ़ंडिंग नहीं बल्कि वेबसाइट से होने वाली आय है।'
 
वो कहते हैं, 'हमारे कई कर्मचारी दिल से काम करते हैं, पैसा भी नहीं लेते हमसे… हमारे यहां 45 से ज़्यादा लोग हैं, हमारे यहां राजनीतिक रूप से सारे न्यूट्रल लोग काम करते हैं, हम किसी राजनीतिक आदमी को नौकरी नहीं देते हैं।'
 
सिविल इंजीनियर अभिषेक मिश्रा के अनुसार साल 2011 में जहां उनकी वेबसाइट की 50 मिलियन रीडरशिप थी, साल 2017 में ये साप्ताहिक आंकड़ा 141 मिलियन पहुंच गया, और एक वक्त 25 से 40 हजार लोग उनकी वेबसाइट पढ़ रहे होते हैं।
 
वेबसाइट की एक कहानी में एक कथित अमेरिकी सर्वे में मनमोहन सिंह को दुनिया का सबसे ईमानदार व्यक्ति बताया गया।
 
वेबसाइट की एक कहानी में एक कथित अमेरिकी सर्वे में मनमोहन सिंह को दुनिया का सबसे ईमानदार व्यक्ति बताया गया। फैक्टचेकर वेबसाइट ऑल्ट न्यूज ने इसे फेक खबर बताया।
 
खबर सच होने का दावा
इस खबर पर ऑल्ट न्यूज ने लिखा, 'ये वायरल मैसेज भाजपा समर्थकों के कई बार शेयर किए गए फ़ेक न्यूज़ पोस्टरों से मिलते हैं.... उसी तरह का रंग, फॉन्ट... ऐसा लगता है कि कांग्रेस समर्थकों का मानना है कि आप हरा नहीं सकते तो हमारे साथ शामिल हो जाइए।'
 
उधर अभिषेक मिश्रा का दावा है उनकी खबर बिल्कुल सही है।
 
वो कहते हैं, 'आप ये साबित कर दो कि ये फेक न्यूज है। कोई माई का लाल ये तो साबित कर दे कि ये फेक न्यूज है... ऑल्ट न्यूज जैसे छुटपुट लोग कुछ भी डाल दें तो आप भरोसा करोगे? वो साबित करें कि ये फेक है... आरोप तो कोई कुछ भी लगा देता है।'
 
लेकिन ये जानकारी कहां से आई?
 
अभिषेक मिश्रा के मुताबिक, 'जिन्होंने ये खबर बनाई है, उनकी जानकारी में ये खबर बिल्कुल सच है। मुझे नहीं मालूम कि हमारी टीम में से ये किसने बनाया है, लेकिन ये खबर बिल्कुल सही है… मैं एडिटर इन चीफ हूं लेकिन न मैं ग्राफिक्स बनाता हूँ और न वो मेरे कंट्रोल में है, ये वो जानते हैं.... आरोप मैं लगा देता हूं कि ऑल्ट न्यूज़ ने जो ख़बर डाली वो फेक है।'
 
अभिषेक के मुताबिक चाहे गूगल या फेसबुक, कोई भी फेक न्यूज को नहीं रोक सकता।
 
वो कहते हैं, मीडिया खेबर चलाता है कि विजय माल्या गिरफ्तार हो गए, अगले दिन मीडिया उस खबर को हटा लेता है। कोई माफी नहीं मांगता। चैनल कहते हैं कि 2000 रुपए के नोट में चिप थी। बाद में नोट आया तो पता चला कि उसमें कोई चिप नहीं थी। तो आप कभी भी फेक न्यूज को नहीं रोक सकते।'
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