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Written By BBC Hindi
Last Updated : शनिवार, 15 फ़रवरी 2020 (22:09 IST)

कोरोना वायरस: लाइलाज बीमारी के आगे बेबस दो चीनी परिवारों की आपबीती

कोरोना वायरस: लाइलाज बीमारी के आगे बेबस दो चीनी परिवारों की आपबीती - Corona Virus : AAP Biti of two families suffered from incureble disease
जॉयसी ल्यू और ग्रेसी सोइ, बीबीसी न्यूज़
 
चीन के हूबे प्रांत में रहस्यमय कोरोना वायरस के फैलने की ख़बर आने के कई हफ़्तों बाद प्रशासन ने अब यह तय करने का तरीका बदल दिया है कि कौन शख़्स इससे संक्रमित है। 
 
इस कारण संक्रमित लोगों की संख्या में अचानक उछाल आ गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि डॉक्टर अब उन मरीज़ों को गिन रहे हैं जिनकी पहचान क्लीनिकों में की गई है। पहले सिर्फ़ उन्हीं को गिना जा रहा था जिनके संक्रमित होने की पुष्टि टेस्ट के बाद हो रही थी। 
 
मगर उन शुरुआती दिनों में वुहान शहर में न सिर्फ़ यह वायरस तेज़ी से फैला बल्कि अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के कारण कुछ लोगों को तो इलाज मिलने में भी दिक्कत हुई। 
 
वुहान शहर के दो बांशिदों ने बीबीसी को अपने भयावह अनुभव के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे बीमारी की चपेट में आए शहर में उन्हें अपने क़रीबियों का इलाज करवाने में दिक्कत हुई। 
 
'दादाजी, आपको शांति मिले'- शाओ हुआंग
शाओ हुआंग को उनके दादा-दादी ने ही पाला था क्योंकि बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया था। हुआंग कहते हैं कि 80 साल की उम्र पार कर चुके दादा-दादी के लिए वह इतना करना चाहते थे कि वे आराम से बुढ़ापा गुज़ार सकें। मगर मात्र पंद्रह दिनों के अंदर उनके दादा की कोरोना वायरस के कारण मौत हो गई और उनकी दादी की हालत गंभीर है। 
 
हुआंग के दादा-दादी को 20 जनवरी को सांस लेने में तक़लीफ़ होने लगी थी। वे 26 जनवरी तक अस्पताल नहीं जा पाए क्योंकि 23 जनवरी के बाद से ही वुहान में सख़्ती बरतते हुए सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया था। 
 
29 जनवरी को पता चल पाया कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। फिर भी उन्हें इसके तीन दिन बाद अस्पताल में दाख़िल किया गया। 
 
अस्पताल भरा हुआ था और वहां एक भी बेड ख़ाली नहीं था। उनके दादा-दादी को तेज़ बुख़ार था और सांस लेने में मुश्किल हो रही थी।  उन्हें गलियारे में ही जगह मिल पाई। जब उन्होंने अस्पताल के स्टाफ़ से बहुत गुज़ारिश की, तब जाकर उन्हें एक कुर्सी और एक फ़ोल्ड होने वाला बिस्तर मिला। 
 
अपनी डायरी में हुआंग लिखते हैं, "कोई भी डॉक्टर और नर्स नज़र नहीं आ रहे।  बिना डॉक्टरों के अस्पताल कब्रिस्तान की तरह है। "
 
जिस दिन उनके दादा का निधन हुआ, उससे एक रात पहले हुआंग उनके साथ अस्पताल के गलियारे में ही थे। वह अपनी दादी से बात करते रहे ताकि दादी को यह पता न चले कि दादा बेहोशी ही हालत में हैं। उनके दादा की मौत के तीन घंटे पहले ही बिस्तर उपलब्ध हो पाया। हुआंग उनके आख़िरी पलों में बिस्तर के पास ही खड़े थे।
 
उन्होंने ट्विटर जैसे चीन के प्लेटफॉर्म वीबो पर लिखा, "दादा, रेस्ट इन पीस। स्वर्ग में कोई कष्ट नहीं होता। "
 
हुआंग कहते हैं, "कई मरीज़ जब मरे तो उनके साथ कोई नहीं था।  परिवार के सदस्य भी नहीं।  वे आख़िरी बार भी एक-दूसरे को नहीं देख पाए।" उनकी दादी अस्पताल में मौत से जूझ रही हैं। वह जितना हो सके, उतना समय दादी के साथ बिताते हैं। 
 
उन्होंने कहा, "इसके लिए कोई भी कारगर दवा नहीं है। डॉक्टरों ने मुझसे कहा है कि उम्मीद मत छोड़ो। उन्हें ख़ुद ही इस जूझकर बाहर आना होगा।" "हम बस सबकुछ भविष्य पर ही छोड़ सकते हैं। "
 
सात फ़रवरी के बाद से शाओ हुआंग ख़ुद भी ठीक महसूस नहीं कर रहे और दो हफ़्तों से उन्हें एक होटल में अलग-थलग करके रखा गया है। 
 
'मां की खांसी में ख़ून आने लगा' - दा चुन
जनवरी की शुरुआत में, दा चुन की मां को बुख़ार आ गया। परिवार को शुरू में कोई चिंता नहीं थी, उन्हें लगा कि सामान्य सर्दी ज़ुकाम है।  उन्होंने एक करोड़ से अधिक आबादी वाले शहर में चुपके से फैल रही रहस्यमय बीमारी के बारे में कम ही सुना था। 
 
मगर सामुदायिक क्लीनिक से इंजेक्शन लगने के एक हफ़्ते बाद भी उनका बुख़ार नहीं उतरा। 20 जनवरी को दा चुन अपनी मां को बुख़ार से पीड़ित लोगों के लिए बनाए गए क्लीनिक में ले गए। इसी दिन चीनी प्रशासन ने माना था कि कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान तक फैल सकता है। सीने के स्कैन और ब्लड टेस्ट के बाद डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि ये कोरोना वायरस का संक्रमण है। 
 
दा चुन कहते हैं, "उस दिन से लेकर आज तक, मुझे यक़ीन नहीं हो रहा।" लेकिन एक और बुरी ख़बर आई। डॉक्टर ने कहा कि उनकी 53 साल की मां को अस्पताल में दाख़िल नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके पास बीमारी की पुष्टि करने के लिए टेस्ट करने वाले किट्स नहीं हैं। टेस्ट किट जनवरी के आख़िर तक आठ चुनिंदा अस्पतालों में ही उपलब्ध थे। 
 
22 साल के दा चुन बताते हैं, "इनमें से एक अस्पताल के डॉक्टर ने मुझे बताया कि उनके पास अधिकार नहीं कि वे मेरी मां को अस्पताल में भर्ती कर सकें। सिर्फ़ स्थानीय स्वास्थ्य आयोग के पास ही संक्रमित लोगों को बिस्तर मुहैया करवाने का अधिकार है। "
 
"इसलिए, डॉक्टर कोरोना वायरस का टेस्ट करके यह पुष्टि नहीं कर सकते थे कि मेरी मां संक्रमित है या नहीं और न ही वे उन्हें बिस्तर मुहैया करवा सकते थे। "
 
दा चुन का कहना है कि उनकी मां का मामला इकलौता नहीं है। वीचैट ऐप के एक चैट ग्रुप में 200 से अधिक सदस्य हैं। इसमें संक्रमित मरीज़ों के परिजन हैं जो अपना इसी तरह का अनुभव बयां करते हैं। 
 
दा चुन के भाई को अस्पतालों में लाइनों में लगना पड़ा ताकि यह देख सकें कि वहां बेड उपलब्ध हैं या नहीं। उन्हें अपनी मां को लेकर क्लीनिक जाना पड़ता ताकि उन्हें ड्रिप्स लग सकें। इन्हीं यात्राओं के दौरान उन्होंने ऑब्ज़र्वेशन रूम में मरीज़ों को मरते देखा। यानी टेस्ट होने या दाख़िल किए जाने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया। 
 
वह कहते हैं, "शवों को लपेटा जाता और वहां से कहीं और ले जाया जाता। मुझे नहीं पता कि इस तरह से हुई मौतों को भी कोरोना वायरस के कारण हुई मौतों में गिना गया या नहीं।"
 
इस बीच उनकी मां की तबीयत ख़राब होती चली गई। उनकी खांसी से ख़ून आना शुरू हो गया और उनके पेशाब में भी ख़ून था। 
 
29 जनवरी को उनकी मां को आख़िरकार अस्पताल में दाख़िल कर लिया गया। मगर दा चुन कहते हैं कि उन्हें न तो इलाज मिला और न ही अस्पताल में शुरुआती दिनों में पर्याप्त उपकरण थे। मगर दा चुन को उम्मीद है कि उनकी मां ठीक हो जाएंगी और वह उन्हें घर ले जा पाएंगे। 
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