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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 16 जनवरी 2020 (07:32 IST)

CAA प्रदर्शन: पुलिस की गोलियों से मौतें हुईं तो गोलियां मिलीं क्यों नहीं?

CAA प्रदर्शन: पुलिस की गोलियों से मौतें हुईं तो गोलियां मिलीं क्यों नहीं? - CAA Protest : where are Police bullets by which people dies
समीरात्मज मिश्र, बीबीसी हिंदी के लिए
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ 19 और 20 दिसंबर को हुए प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा सात लोगों की मौत फ़िरोज़ाबाद में हुई।
 
मृतकों के परिजनों का कहना है कि मौत गोली लगने से हुई लेकिन पुलिस अब तक गोली चलाने की बात से इनकार कर रही है।
 
मृतकों का इलाज करने वाले कुछ डॉक्टर भी गोली लगने की पुष्टि करते हैं लेकिन दिलचस्प बात यह भी है कि किसी भी मृतक के शरीर से एक भी गोली मिली नहीं है और न ही मृतकों के परिजनों को अभी तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दी गई है।
 
फ़िरोज़ाबाद के रसूलपुर इलाक़े के रहने वाले अय्यूब यामी बेलदारी का काम करते हैं। उनका 24 वर्षीय बेटा नबीजान भी बेलदारी का काम करता था।
 
20 दिसंबर को अपनी ड्यूटी पूरी करके नबी घर लौट रहे थे। क़रीब साढ़े चार बजे नैनी ग्लास कारख़ाने के पास हंगामा मचा हुआ था। अय्यूब यामी बताते हैं कि उनके बेटे के सीने में गोली लगी और वह वहीं ढेर हो गया।
 
अय्यूब बताते हैं, "घंटों बाद हमें पता चला। उसके कुछ साथी उसे लेकर अस्पताल गए लेकिन मौत हो चुकी थी। तुरंत अस्पताल ले गए होते तो शायद बच जाता। अगले दिन सुबह पोस्टमॉर्टम हुआ। रात ढाई बजे हमें बॉडी दी गई और हमसे तुरंत दफ़नाने को कहा गया। हम कहते रहे कि हमारे यहां रात को नहीं दफ़नाया जाता, तो पुलिस वाले बोले हम मौलाना बुला देंगे, आप दफ़न करो। माहौल ठीक नहीं है।"
 
'मेरा बेटा एक बार भी बोल नहीं पाया'
अय्यूब बताते हैं कि मजबूरन उन लोगों को रात में ही 10-12 लोगों की मौजूदगी में बेटे का शव दफ़नाना पड़ा और उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के लिए तो वो आज तक भटक रहे हैं।
 
उन्होंने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन शिकायत में उन्हें वही लिखना पड़ा जो पुलिस वालों ने कहा। उनकी एफ़आईआर अब तक नहीं लिखी गई है।
 
रसूलपुर के ही पास रामगढ़ इलाक़े में रहने वाले 18 वर्षीय मुक़ीम चूड़ियां बनाने का काम करते थे। मुक़ीम भी अपने साथी कारीगरों के साथ वहां से खाना खाने के लिए आ रहे थे और तभी प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच चल रहे संघर्ष में फँस गए।
 
उनकी मां शम्सुन बताती हैं, "आगरा के अस्पताल में मुक़ीम ने बताया कि पुलिस ने उसे गोली मारी है। तीन दिन तक बेटा वहीं भर्ती रहा। हमें उसके पास जाने नहीं दिया जा रहा था। अस्पताल में उसका क्या इलाज हुआ, उसे कितनी चोट थी, हमें कुछ नहीं बताया गया। जब दिल्ली ले जाने लगे तो भी मुझे उसके साथ नहीं जाने दिया गया। मैं अगले दिन ख़ुद से दिल्ली पहुंची लेकिन दिल्ली में मेरा बेटा एक बार भी बोल नहीं पाया। 26 तारीख़ को उसकी मौत हो गई।"
 
45 वर्षीय शफ़ीक़ भी चूड़ियां बनाने वाली एक फ़ैक्ट्री में काम करते थे। उनके भाई मोहम्मद सईद बताते हैं कि उन्हें जब गोली लगी तो उसके हाथ में टिफ़िन बॉक्स था।
 
अब तक नहीं मिली पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
अपनी कबाड़ी की दुकान पर बैठे सईद ने बताया, "शफ़ीक़ यहीं आता था अक्सर खाना खाने के लिए। उस दिन भी यहीं आ रहा था। रास्ते में उसे सिर में गोली लगी और घंटों वहीं पड़ा रहा। जब वो मिला तो उसे अस्पताल ले गए। फ़िरोज़ाबाद में न तो सरकारी अस्पताल और न ही किसी प्राइवेट अस्पताल वालों ने उसे भर्ती किया। फिर हम आगरा मेडिकल कॉलेज ले गए जहां से डॉक्टरों ने उसे दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल भेज दिया। वहां डॉक्टरों ने कहा कि उसके सिर में गोली लगी है और गोली बहुत पास से मारी गई है। लेकिन हमने काग़ज़ मांगा तो हमें कोई काग़ज़ नहीं दिया गया। डॉक्टर बोले कि काग़ज़ वो पुलिस को ही देंगे।"
 
मोहम्मद सईद का कहना है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के लिए डॉक्टरों ने 20 दिन बाद आने को कहा लेकिन रिपोर्ट उन्हें अब तक नहीं मिली है।
 
फ़िरोज़ाबाद में विरोध प्रदर्शनों के बाद कुल छह लोगों की मौत हुई थी जिनमें तीन का पोस्टमॉर्टम फ़िरोज़ाबाद के एसएन हॉस्पिटल में किया गया और बाक़ी तीन लोगों का दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में।
 
एक व्यक्ति की मौत दो दिन पहले हुई। उनका अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था लेकिन कुछ दिन पहले वहां से डिस्चार्ज कर दिया गया था।
 
लगभग सभी मृतकों के परिजनों का कहना है कि मौतें गोली लगने से हुई हैं, जबकि फ़िरोज़ाबाद पुलिस अभी भी अपने इस बयान पर क़ायम है कि उसने गोली नहीं चलाई।
 
फ़िरोज़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सचींद्र पटेल ने बीबीसी से बताया, "प्रदर्शनकारियों के बेहद उग्र बर्ताव के बावजूद पुलिस ने सिर्फ़ लाठी चार्ज और रबर की गोलियों से उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश की। फ़िरोज़ाबाद में जिन तीन शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ, उनकी रिपोर्ट के मुताबिक़ गोली लगी है लेकिन शरीर से बाहर चली गई। सभी मामले में हमने अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की है। पूरे मामले की जांच एसआईटी कर रही है। जो भी सच्चाई होगी, सामने आ जाएगी।"
 
एसएन हॉस्पिटल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर आरके पांडेय भी गोली लगने की बात स्वीकार करते हैं लेकिन गोली मिलने की नहीं।
 
'डॉक्टरों ने कहा, ऊपर से आदेश है'
मृतक नबीजान के पिता अय्यूब इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके बेटे के सीने में लगी गोली कैसे बाहर हो गई।
 
मृतकों के परिजनों का आरोप है कि फ़िरोज़ाबाद के किसी भी अस्पताल में प्राथमिक उपचार भी नहीं किया गया और सीधे आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के लिए रेफ़र किया गया। इस दौरान घायलों की स्थिति और बिगड़ गई।
 
परिजनों का कहना है कि अस्पताल के डॉक्टर और प्रबंधक कह रहे थे कि इसके लिए हमें 'ऊपर से आदेश' है।
 
आगरा मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताते हैं कि किसी भी शरीर में गोली न मिलना आश्चर्यजनक है और ऐसा अनायास नहीं है।
 
वो कहते हैं, "गोली से चोट लगने की बात छिपाई नहीं जा सकती लेकिन गोली का न मिलना कई तथ्यों पर पर्दा डाल सकता है। अगर गोली नहीं मिलेगी तो ये भी नहीं पता चलेगा कि गोली चली कहां से है और चलाई किसने है।"
 
20 दिसंबर को फ़िरोज़ाबाद में जिन लोगों की मौत हुई, वो सभी रसूलपुर, रामगढ़ और कश्मीरी गेट के इलाक़ों में रहते हैं। ज़्यादातर लोग बेहद ग़रीब हैं और चूड़ियां बनाने वाले कारख़ानों में काम करते हैं।
 
'हमने पुलिस को गोली चलाते देखा'
प्रदर्शन के दौरान जो हिंसा हुई थी, उसका केंद्र भी इन्हीं इलाक़ों के पास यानी नैनी ग्लास फ़ैक्ट्री चौराहे के पास था।
 
अय्यूब की पड़ोसी महिला शबनम बताती हैं कि पुलिस ने रात में आकर लोगों को चुपचाप घरों में रहने की हिदायत दी थी और धमकाया भी।
 
कश्मीरी गेट निवासी राशिद के पिता कल्लू बताते हैं कि उनका बेटा विकलांग था लेकिन चूड़ियां बनाकर 150-200 रुपये हर दिन कमा लेता था।
 
कल्लू बताते हैं, "उस दिन राशिद अपनी मज़दूरी के पैसे लेने के लिए गया था। उसका प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था। उसे गोली मार दी गई जबकि पुलिस कह रही है कि पत्थर लगने से मौत हुई। हमें पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी नहीं मिली है। पुलिस ने रातों-रात शव दफ़नाने के लिए मजबूर कर दिया।"
 
जिन लोगों का पोस्टमॉर्टम फ़िरोज़ाबाद में हुआ और जिनका दिल्ली के अस्पतालों में, किसी के भी परिजन को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं दी जा रही है।
 
यहां तक कि तमाम कोशिशों के बावजूद किसी पत्रकार को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। हालांकि पुलिस अधिकारी कहते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लेने के लिए किसी ने रोका नहीं है।
 
दूसरी तरफ़ पोस्टमार्टम रिपोर्ट पाने का हर रास्ता मृतकों के परिजन अपना चुके हैं, पर रिपोर्ट नहीं मिल सकी।
 
रसूलपुर इलाक़े के ही रहने वाले सादिक़ का आरोप है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में देरी जानबूझकर की जा रही है ताकि पुलिस उसे अपने मन-माफ़िक़ बनवा सके और बाद में आरोप मढ़ दे कि ये सब प्रदर्शनकारियों की ही गोली से मरे हैं।
 
उन्होंने कहा, "हम लोगों ने साफ़तौर पर पुलिस को गोलियां चलाते हुए देखा है। न सिर्फ़ वर्दी में बल्कि पुलिस वालों के साथ कई लोग सादी वर्दी में भी थे, जो गोलियां चला रहे थे।"
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