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Written By BBC Hindi
Last Updated : शनिवार, 15 जून 2024 (09:36 IST)

लखनऊ के अकबरनगर के जिन घरों पर चले बुलडोज़र, उनके बदले मिले फ़्लैटों में न बिजली न पानी -ग्राउंड रिपोर्ट

लखनऊ के अकबरनगर के जिन घरों पर चले बुलडोज़र, उनके बदले मिले फ़्लैटों में न बिजली न पानी -ग्राउंड रिपोर्ट - Bulldozers run on houses in Akbarnagar, Lucknow
-नीतू सिंह (लखनऊ से बीबीसी हिन्दी के लिए)
 
चिलचिलाती गर्मी में लखनऊ शहर से बाहर पड़ने वाले दुबग्गा इलाक़े और यहां की बसंत कुंज योजना में अपने फ़्लैट के नीचे खड़े 32 साल के अरशद लखनऊ विकास प्राधिकरण के टीम से दूसरे माले के फ़्लैट में पानी का इंतजाम करने के लिए बार-बार गुजारिश कर रहे हैं।
 
अरशद कहते हैं, 'मैं यहां 9 जून को आ गया था तब से अभी तक हमारे फ्लैट में पानी नहीं पहुंचा है। मैं काम पर नहीं जा पा रहा हूं क्योंकि मेरी पत्नी नौ महीने की गर्भवती हैं। इसी 29 जून को उनकी डिलीवरी डेट मिली है। मुझे फ़्लैट से 400-500 मीटर की दूरी पर पार्क से पानी भरकर लाना पड़ रहा है।'
 
अरशद की तरह यहां सैकड़ों लोग अफ़रा तफ़री में पहुंच रहे हैं। विस्थापित लोगों को यहां प्रधानमंत्री आवास योजना में दिए गए फ्लैट्स में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 40 से 45 डिग्री के तापमान में बसंत कुंज की इस जगह पर लोग बैट्री रिक्शा, लोडर से सामान लेकर आ रहे हैं और शिफ्टिंग कर रहे हैं।
 
जबकि दूसरी ओर यहां अधूरे काम को पूरा करने के लिए दर्जनों मज़दूर काम कर रहे हैं।
 
लखनऊ के पॉश इलाके के पास स्थित अकबरनगर में बीते 10 जून से अवैध निर्माण को गिराए जाने का काम जारी है। अब तक 400-500 मकानों को गिराया जा चुका है।
 
सुबह 7 बजे से लेकर रात 8 बजे तक क़रीब एक दर्जन बुलडोज़र इन मकानों को तोड़ने में लगे हैं।
 
यहां सुरक्षाकर्मियों के अलावा नगर निगम और विकास प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी तैनात हैं।
 
अकबरनगर के लोगों को यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर लखनऊ से हरदोई जाने वाली सड़क पर स्थित बसंत कुंज योजना सेक्टर आई में पीएम आवास योजना- शहरी में आवंटन दिए जा रहे हैं। इन फ़्लैट्स की कीमत चार लाख 79 हज़ार रुपए है जो एक परिवार को 10 साल में किस्तों में चुकानी होगी।
 
यहां एक बोर्ड पर लिखा है, 'प्रधानमंत्री आवास योजना, भवनों का निर्माण व विकास कार्य प्रारम्भ 23 जून 2022' और 'कार्य समाप्ति की प्रस्तावित तिथि 23 जून 2024।'
 
यहां बने फ़्लैट रहने के लिए कितना तैयार हैं, इस सवाल पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष डॉ इंद्रमणि त्रिपाठी मीडिया से थोड़ी नाराजगी जाहिर करते हैं।
 
बीबीसी हिन्दी से उन्होंने कहा, 'मीडिया को सबकुछ नकारात्मक ही दिखता है। जब कोई एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट होता है थोड़ी बहुत परेशानी तो होती ही है। बसंत कुंज में फ्लैट में किसी तरह की कोई कमी नहीं है। लाइट, पानी सब बेहतर इंतजाम हैं।'
 
उन्होंने आगे कहा, 'अकबरनगर में रहने वाले परिवारों ने 29 अप्रैल तक 1,818 आवेदन किए थे। उसमें 1806 परिवारों को पीएम आवास योजना के तहत घर उपलब्ध करा दिया गया है। 12 लोगों के दस्तावेजों की जांच हो रही है।'
 
विस्थापित लोगों का क्या है कहना?
 
उनके फ़्लैट में बिजली कनेक्शन नहीं था। दूसरे दिन भाग दौड़ के बाद कनेक्शन मिल गया। लेकिन पानी सप्लाई का इंतजाम अभी तक नहीं हो सका है।
 
अरशद कबाड़ खरीदने का काम करते हैं। इनकी बड़ी बेटी की पढ़ाई छूट गई है क्योंकि वो जिस मदरसे में पढ़ती थी वो मार्च में ही बुलडोज़र से तोड़ दिया गया था।
 
अरशद को अपने काम के लिए अब यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा, क्योंकि आस पास रिहाइशी इलाका नहीं है।
 
वो कहते हैं, 'मोदी जी ने कहा था कि हम ग़रीबी खत्म कर देंगे। वो तो नहीं खत्म कर पाए लेकिन उन्होंने गरीबों को ज़रूर ख़त्म कर दिया। ये कब्ज़ा नहीं हटाया जा रहा है, ये ग़रीबों को टॉर्चर किया जा रहा है। घर के बदले घर मिलता तो हम समझते कि हमें पुनर्वासित किया गया। इस घर के हमें करीब पांच लाख रुपए देने होंगे जिसकी किस्त हमें सालों साल चुकानी होगी।'
 
अरशद की तरह ही प्रदीप अवस्थी को आवंटन पत्र 11 जून को मिला, जिसमें लिखा है कि 30 मई तक उन्हें शिफ्ट हो जाना है।
 
यहां लोगों को घर ढहाने के तीन चार दिन पहले ही आवंटन पत्र मिले हैं।
 
प्रदीप अवस्थी कहते हैं, 'अगर फ्री आवंटन दिया जाता तो ऐसे मुश्किल समय में यह मरहम का काम करता। लोगों ने जी तोड़ मेहनत करके दोमंजिला तीन मंजिला मकान बनाए थे लेकिन कम से कम अगर उन्हें मकान की लागत तो मिल जाती।'
 
चार मंजिला इमारतों में यहां ग्राउंड फ़्लोर को छोड़ कर आवंट दिए जा रहे हैं।
 
लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि नीचे के फ्लैट अभी रिज़र्व रखे गए हैं।
 
पज़ेशन लेटर मिलने के दूसरे दिन बुलडोज़र पहुंचा
 
गुरुवार को अवैध निर्माण को ढहाए जाने की कार्रवाई का चौथा दिन था। लोग 40-45 डिग्री तापमान में सुबह से शाम तक भागमभाग कर रहे हैं। चारो तरफ़ सामान बिखरा पड़ा है।
 
लाइट और पानी की सुविधा काट दी गई है। अपनी आंखों के सामने अपने घर पर बुलडोज़र चलते देख गलियों में चित्कार मची हुई है।
 
मातम के इस माहौल में लोग खामोश हैं, कुछ ने डर भी ज़ाहिर किया कि अगर सरकार के ख़िलाफ़ बोले तो जहां रहने के लिए दिया जा रहा है वो भी नहीं मिलेगा। यहां के लोग मीडिया से भी नाराज़ हैं
 
अपने किताबों के बैग के साथ सड़क पर बैठी मुस्कान ने गुस्से में कहा, 'क्या फ़ायदा मीडिया से बात करने का। जब मीडिया वालों को आना चाहिए था तब तो कोई नहीं आया अब तो सब टूट गया है।'
 
मुस्कान का 14 जून को सीनेट का एग्जाम है। इनका घर 12 जून को टूट चुका है। इनकी मां कुरान को हाथ में सम्भाले हुए हैं।
 
वो कहती हैं, 'ये सरकार बहुत बेरहम है। 10 तारीख को पज़ेशन लेटर मिला। अभी सामान निकाल ही रहे थे तबतक बुलडोज़र चलना शुरू हो गया। इस धूप में भूखे प्यासे पूरे दिन बच्चे सड़क पर छटपटा रहे हैं। लोग बीमार पड़ रहे हैं। सरकार को अल्लाह का भी खौफ़ नहीं है।'
 
एक तरफ प्रशासन का कहना है कि लोगों को पर्याप्त समय दिया गया लोगों ने खाली नहीं किया इसलिए मजबूरन बुलडोज़र चलाना पड़ा।
 
सोमवार से प्रशासन की निगरानी में बुलडोज़र चलना शुरू हो गया है। जैसे-जैसे बुलडोज़र चल रहा है लोग सामान पैक करके जल्दी से शिफ्ट हो रहे हैं।
 
अकबरनगर सेकेंड की लाइट और पानी कनेक्शन पहले काटा गया क्योंकि पहले बुलडोज़र इधर ही चला। 13 जून को अकबरनगर प्रथम में सुबह बिजली कनेक्शन काट दिया गया। जबकि यहां के लोग अभी पैकिंग ही कर रहे हैं।
 
छिन गए सपने
 
यहां रह रहीं शबनम इस बात से नाराज थीं कि उनको मकान शिफ्टिंग का कोई समय नहीं दिया गया। उनके तीन खंड के मकान पर बुलडोज़र चल गया जिसमें बहुत सारा सामान दब गया। कुछ सामान ही निकाल पाई थीं।
 
शबनम अपने छोटे बेटे की हथेलियों को दिखाते हुए कहती हैं, 'देखिए इसके हाथ में छाले पड़ गए हैं। जिस दिन हमें पज़ेशन लेटर मिला उसके अगले दिन बुलडोज़र चलने लगा। आप बताइए 20 साल की बसी बसाई गृहस्थी को क्या एक दो दिन में खाली करना संभव है?'
 
इनके बच्चों ने जैसे तैसे सामान बसंत कुंज में पहुंचाया पर वो भी अभी बाहर पड़ा है क्योंकि इनके फ्लैट में अभी काम चल रहा है। उसमें अभी बिजली और पानी का कनेक्शन नहीं हुआ है।
 
शबनम सिंगल मदर हैं। इनके 2 बेटे हैं। सालों से बुटीक में काम करके ये बच्चों का भरण-पोषण करती आई हैं। इन्हें अपने काम पर जाने के लिए अब रोज़ किराया चाहिए।
 
शबनम की तरह यहां रहने वाले लोगों के न केवल मकान गए बल्कि उनका रोज़गार भी गया।
 
शबनम रोते हुए कहती हैं, 'बहुत मेहनत करके घर बनवाया था एक झटके में टूट गया। इस सरकार ने हमें 50 साल पीछे कर दिया। 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान' मोदी सरकार ने सिर्फ़ नाम का चलाया। यहां की हज़ारों लड़कियां पढ़ने से वंचित हो जाएंगी। बेटियों को बचाया कहां जा रहा, उजाड़ा जा रहा है। हमें ऐसी सरकार नहीं चाहिए थी।'
 
इनकी बड़ी बहन फरहाना की चूड़ी की दुकान थी उसे भी तोड़ दिया गया।
 
फरहाना कहती हैं, 'शादी के एक साल बाद पति ने तलाक़ दे दिया, एक बेटी पैदा हुई जिसे लेकर मायके आ गए थे। 20 साल से अब्बा-अम्मी के साथ रह रहे हैं। हम छह बहनें हैं। अब्बा ने सिलाई करके घर बनवाया था। अब पुलिस कह रही है खाली करो बुलडोज़र चलेगा। कितना पैसा तो सामान शिफ्ट करने में खर्च हो जाएगा।'
 
नगर निगम की तरफ से कुछ गाड़ियां दी जा रही हैं लेकिन उनमें फटाफट समान भरकर ले जाना है, जिससे लोगों का सामान अस्त-व्यस्त तरीके से पहुंच रहा है।
 
कुछ लोग अपने ही घरों को तोड़ रहे हैं ताकि वो यहां लगे मजबूत गेट और खिड़की लेकर जा सकें। कुछ लोग अब भी इस आस में हैं कि कोई चमत्कार हो जाए और ये घर उजड़ने से बच जाएं।
 
कुकरैल रिवर फ़्रंट बनाने की योजना
 
अकबरनगर प्रथम में एक गली के बाहर सड़क इंटरलॉकिंग का बोर्ड लगा है- राजनाथ सिंह द्वारा 10 जुलाई 2023 को इसका शिलान्यास किया गया है। ठीक थोड़ी दूर पर एक स्ट्रीट लाइट भी लगी है इसमें भी सांसद राजनाथ सिंह का नाम है।
 
इसी गली में कुछ दूरी पर विश्व हिन्दू महासंघ लखनऊ का बोर्ड लगा है जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर है।
 
प्रदीप अवस्थी कहते हैं, 'अकबरनगर राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र हैं। वो यहां से हमेशा जीते हैं। बहुत पहले अटल बिहारी वाजपेयी का ये क्षेत्र था उन्होंने यहां के लोगों के लिए बहुत काम किए हैं।'
 
'राजनाथ सिंह ने भी पिछले साल सोलर लाइट और सड़क इंटरलॉक कराई थी। अगर यह अवैध कब्ज़े की ज़मीन थी तो पार्टी के नेताओं को यहां विकास कार्य नहीं कराना चाहिए था।'
 
योगी सरकार ने पिछले साल दिसंबर, 2023 में कुकरैल नदी और बंधे के मध्य बसे अकबरनगर में डेमोलिशन की कार्रवाई शुरू की थी।
 
लोगों ने विरोध जताया तो मामला हाई कोर्ट पहुंचा। 10 मार्च, 2024 को कुछ दुकानें तोड़ी गईं। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। यहां के लोगों ने भी अपनी याचिका दायर की थी।
 
अंततः सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला सरकार के पक्ष में आया और यहां बने मकानों को अवैध बताया। इस आदेश में तीन महीने का वक़्त दिया गया तब तक आचार संहिता लग गई और यह काम रुक गया था।
 
नतीजे आने के तुरंत बाद जैसे ही अचार संहिता हटी यहां ढहाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस इलाके में सुबह 7 बजे से 10 जून से बुलडोज़र चलने शुरू हो गए।
 
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार इस जमीन पर कुकरैल रिवर फ्रंट बनवाना चाहती है। नदी को संरक्षित और उसके सौन्दर्यीकरण के लिए इस अवैध बस्ती को हटाया गया है।
 
लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष आईएएस अधिकारी डॉ। इंद्रमणि त्रिपाठी ने कहा, 'अकबरनगर हाई फ्लड ज़ोन में है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यहां बसे घरों को गिराया जा रहा है। अकबरनगर प्रथम और द्वितीय मिलाकर कुल 1000 मकान होंगे। अबतक 380 मकान गिराए जा चुके हैं। 650 मकानों को खाली करने के लिए बोल दिया गया है। खाली होते ही इस साइड भी काम शुरू हो जाएगा।'
 
पुनर्वास के तरीक़े पर सवाल
 
इसी इलाके के पार्षद हरिश्चन्द्र लोधी कहते हैं, 'ये कुकरैल नदी है लेकिन आबादी बढ़ी तो ये सिमटकर नदी से नाला हो गया। 2 बंधों के बीच की ज़मीन है जो सरकारी है लेकिन अवैध रूप से यहां लोग रहने लगे। यहां करीब 1700 घर हैं जिनकी आबादी 10 से 12 हज़ार होगी। खाली करने का समय दिया गया था, लेकिन लोग नहीं गए।'
 
हालांकि अवैध निर्माण पर प्रशासन की तरफ़ से हो रही कार्रवाई के तरीक़े को लेकर कुछ लोग सवाल भी कर रहे हैं।
 
लखनऊ के सीनियर एडवोकेट इंद्र भूषण सिंह कहते हैं, 'मैं तो इसे तानाशाही रवैया मानूंगा। आर्टिकल 14 में लिखा है रीजनेबल जस्ट एंड फेयर। यहां 40 साल से रह रहे लोगों को शिफ्टिंग के लिए कम से कम छह महीने का समय देना चाहिए। इन्हें फ्लैट पैसे लेकर नहीं देने चाहिए। इन्हें तो ज़मीन पर घर बनवा कर देना चाहिए। बड़े परिवार उन छोटे फ्लैटों में कैसे रह पाएंगे सरकार को यह भी सोचना चाहिए।'
 
स्थानीय लोगों का भी कहना है कि उजाड़ने के बदले उन्हें बसाया जाए। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग कामगार मजदूर हैं। महिलाएं दूसरों के घरों में काम करके गुजारा करती थीं।
 
अमरीन के घर में कुल 9 लोग हैं जिनके लिए उन्हें एक ही फ्लैट मिला हुआ है।
 
उनका कहना है, 'अगर भाई को मिलता भी तो शायद हम लोग नहीं लेते। हमारे पिता 300 रुपए की दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। महीने के 3,000-4000 रुपए की किस्त भरना हमारे लिए बहुत मुश्किल है। गरीब लोगों की किस्त माफ़ होनी ही चाहिए थी।'
 
सुप्रीम कोर्ट से जो आदेश में ये भी लिखा है कि जो परिवार गरीबी रेखा से नीचे आते हैं उनकी किस्त माफ़ी पर विचार किया जाए और आवेदन करने पर जांच के बाद उनकी किस्त मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी।
 
हालांकि यहां के लोगों को इस बात पर भरोसा नहीं है।
 
वहीं विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी कहते हैं, '10 साल का समय किस्त भरने के लिए बहुत है। अगर फिर भी लोग नहीं भर पाए तब देखा जाएगा कि इनकी किस्त मुख्यमंत्री राहत कोष से भरी जाए।'
 
45 वर्षीय कल्लू कहते हैं, 'अगर सरकार को पैसे राहत कोष से भरने थे तो पहले ही सर्वे हो जाता तो लोगों को भरने ही नहीं पड़ते। ये सब गुमराह करने का तरीका है। अभी अकबरनगर की जमीन की क़ीमत 20,000 वर्ग फ़ुट है। जी-20 के बाद से सरकार की नज़र इस महंगी जमीन पर थी। अब यहां फ्लाईओवर, मेट्रो, सड़क बन गई। सरकार के लिए 50-60 साल पहले जो ज़मीन बेकार थी आज वो बेशकीमती हो गई।'
 
फ्लैटों में सुविधाएं अधूरी
 
इन फ़्लैटों में अभी काम चल रहा है। कुछ फ़्लैटों में कहीं कोना टूटा हुआ है तो कहीं सीमेंट उखड़ी हुई नज़र आ रही है। कुछ एक छत से पानी रिस रहा है। कहीं पुताई हो रही है तो कहीं दरवा और खिड़कियां लग रहे हैं। कुछ फ़्लैट निर्माणाधीन भी हैं।
 
सड़क बन रही है, मलबा हटाया जा रहा है। सिंक लगे हुए हैं पर पानी सप्लाई का पाइप नहीं लगा है। कहीं शौचालय बने हैं तो उनमें दरवाज़ा नहीं है। दर्जनों मज़दूर इस काम को पूरा करने में जुटे हुए हैं।
 
चौथे मंजिल पर सामान शिफ्ट कर रहे नूर मोहम्मद छत की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, 'आप देखिए अभी से पानी रिस रहा है। अभी तो हमने रहना भी शुरू नहीं किया। बरसात में इन छतों की क्या स्थिति होगी।'
 
बसंतकुंज योजना में अभी हाल ही में शिफ्ट हुई 19 वर्षीय अमरीन अपनी सुरक्षा और अपने भाई के बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं।
 
अमरीन कहती हैं, 'हमें जहां बसाया गया है मुझे आसपास यहां न कोई थाना-चौकी दिखाई पड़ रही और न ही स्कूल। इधर आसपास दूर-दूर तक कोई बस्ती दिखाई नहीं देती। ये बच्चे पढ़ने कहां जाएंगे।'
 
वो आगे कहती हैं, 'हमें चौथी मंज़िल पर मकान मिला है। मेरी 60-62 साल की मां बीपी की मरीज हैं। हम नीचे का फ्लैट मांग रहे पर नहीं दिया गया।'(फोटो सौजन्य : बीबीसी)
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