निधि राय, बिजनेस संवाददाता, बीबीसी न्यूज़
भारत एक दशक में सबसे ख़राब आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहा है, इसलिए इस बार के केंद्रीय बजट से काफ़ी कुछ उम्मीदें लगाई जा रही हैं। आंकड़ों से देश की आर्थिक हालत का अंदाज़ा होता है, देश की अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है, जो बीते 11 साल में न्यूनतम है। निजी स्तर पर लोगों की ख़पत सात साल के अंतराल में अपने निचले पायदान पर है।
देश में निवेश की दर, बीते 17 सालों में सबसे कम है। मैन्यूफैक्चरिंग के सेक्टर में भी गिरावट है, यह बीते 15 साल के सबसे निचले दर पर पहुंच गई है। जबकि कृषि के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन बीते चार सालों में सबसे धीमी रफ्तार में। इतना ही नहीं, आम लोगों के लिए सामानों के दाम बढ़ रहे हैं- महंगाई की दर रिजर्व बैंक के लक्ष्य से बढ़कर 7.35 प्रतिशत हो चुकी है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए क्या कर सकती है? विशेषज्ञ सर्वसम्मति से ये मान रहे हैं कि सरकार ख़र्च बढ़ाकर सुस्ती पर अंकुश लगा सकती है।
उदाहरण के लिए अगर सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाती है तो इससे लोगों को नौकरियां उपलब्ध होंगी, जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक़ 2019 के सितंबर से दिसंबर की तिमाही के दौरान देश में बेरोज़गारी की दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने दूसरी चुनौतियां भी हैं। अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए वे पहले कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती की घोषणा कर चुकी हैं। बावजूद इसके जीएसटी सहित कर राजस्व के संग्रह में गिरावट ही दिखी है, ऐसे में सरकार के पास ख़र्च बढ़ाने के लिए ज़्यादा पैसा नहीं है। यही वजह है कि कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार आयकर में कटौती करने पर विचार कर सकती है।
सवाल यह भी है कि क्या कारगर होगा?
इमकाय वेल्थ मैनजमेंट के रिसर्च प्रमुख के जोसेफ थॉमस ने बीबीसी को बताया, "आम लोगों के कर में कटौती का मतलब है कि आम लोगों के हाथों में ज़्यादा पैसा बचेगा, जिसके चलते वे ज्यादा ख़र्च कर पाएंगे। ज़्यादा बचत कर पाएंगे और बचत को निवेश कर पाएंगे। ऐसे में आम लोगों के आयकर में राहत देना एक अच्छा क़दम हो सकता है।"
"इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बाद आम लोगों के आयकर में भी कटौती होनी चाहिए। यह आर्थिक सामाजिक दृष्टिकोण से भी ज़रूरी क़दम है। बड़ी और विकसित हो रही अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुधार, खुदरा खपत और कॉरपोरेट पूंजी निवेश, दोनों उपायों से होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों में पूंजी का फ्लो बना रहे और इसके लिए इस बार ज़यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।"
लेकिन मुश्किल यह है कि भारत में बहुत कम लोग आयकर चुकाते हैं। आयकर में कटौती किए जाने से देश की एक बड़ी आबादी ख़ुश हो सकती है लेकिन इससे सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन सवाल यह भी है कि सरकार आयकर स्लैब में किस तरह से बदलाव कर सकती है?
आंकड़ों को एकत्रित करने वाली संस्था लोकल सर्किल ने इस बारे में एक बड़ा सर्वे किया है और देश भर में क़रीब 80 हज़ार से ज़्यादा लोगों से उनकी राय जानने की कोशिश की है। सर्वे में भाग लेने वालों में 69 प्रतिशत लोगों की राय है कि मौजूदा समय में ढाई लाख रुपए पर कोई कर नहीं लगता है, इसे बढ़ाकर पांच लाख रुपए किया जाना चाहिए।
वहीं क़रीब 30 प्रतिशत आबादी का मानना है कि सभी आयकर स्लैब में आयकर कम करना चाहिए और इस रियायत को एक साल के भीतर ख़र्च करने के लिए कुछ प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए।
इस पहलू पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
डेलाइट इंडिया की पार्टनर दिव्या बावेजा बीबीसी से बताती हैं, "रहन सहन के बढ़ते ख़र्च और महंगाई के बढ़ने के चलते आम लोगों की सरकार से बहुत ज़्यादा उम्मीदें हैं। आम लोग चाहते हैं कि सरकार ऐसी व्यवस्था करे कि उनके हाथों में ज़्यादा पैसा पहुंचे ताकि वे खपत में उसे खर्च कर सकें और भविष्य को देखते हुए बचत और निवेश याजनाओं पर ख़र्च कर सके। आम लोग लंबे समय से आयकर स्लैब दरों के विस्तार और आयकर में ज्यादा राहत दिए जाने की मांग करते आए हैं। इस मांग को स्वीकार करना संभव है क्योंकि सरकार भी आम लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए खपत को बढ़ाना चाहती है।"
हालांकि एक्सपर्ट की राय बंटी हुई है। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि आयकर स्लैब में बदलाव करना फ़ायदेमंद होगा जबकि कुछ एक्सपर्ट इसे नुकसानदेह क़दम भी मानते हैं।
केयर रेटिंग के वरिष्ठ अर्थशास्त्री कविता चाको बताती हैं, "आयकर से होने वाली आमदनी सरकार के राजस्व का अहम स्रोत है। क़रीब 30 प्रतिशत पैसा आयकर से आता है। दूसरे अहम स्रोतों, कॉरपोरेट टैक्स (दरों में कटौती के चलते कमी) और जीएसटी (आर्थिक सुस्ती के चलते कमी) में आमदनी कम होने के चलते सरकार अपने ख़र्चे के लिए आयकर दाताओं से होने वाली आमदनी पर निर्भर होगी। इस संकटपूर्ण राजकोषीय स्थिति को देखते हुए आगामी बजट में आयकर स्लैब दरों में कटौती की उम्मीद नहीं है।"
सरकार घाटे में चल रही एयर इंडिया और दूसरे सरकारी उपक्रमों को बेचने की घोषणा कर चुकी है। अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि सरकार 50 से ज्यादा चीजों पर आयात शुल्क बढ़ा सकती है ताकि घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश को बढ़ावा दिया जा सके।
इस बजट के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने पतली रस्सी पर चलने की चुनौती है, जिसमें उन्हें अपनी बैलेंस शीट की सेहत भी देखनी है और आम भारतीयों को खुश भी रखना है।