- क्लाउडिया हैमंड (बीबीसी फ़्यूचर)
सुशी मैक्किनोन को ये याद ही नहीं कि वो कभी बच्ची थीं। उन्हें अपनी ज़िंदगी के किसी भी दौर की बातें याद नहीं। सुशी अभी उम्र के साठवें दशक में हैं। उन्हें अपनी ज़िंदगी के अहम लम्हे भी याद नहीं हैं। उन्हें ये पता है कि वो अपने भतीजे की शादी में गई थीं।
सुशी मैक्किनोन को ये भी पता है कि उनके पति भी उनके साथ शादी में गए थे। मगर, सुशी को शादी में होने की बातें याद नहीं हैं। हाल ये है कि सुशी मैक्किनोन को अपनी ज़िंदगी की कोई बात ही याद नहीं। मगर, उन्हें भूलने की बीमारी नहीं है। तो, फिर आख़िर सुशी मैक्किनोन को क्या बीमारी है?
कैसी बीमारी है ये?
कई बरस तक सुशी को ये पता ही नहीं था कि वो बाक़ी लोगों से अलग है। हम ये समझते हैं कि हर इंसान का दिमाग़ एक जैसा ही काम करता है। हम इस बात पर कभी भी चर्चा नहीं करते कि यादें होने से कैसा एहसास होता है।
जब सुशी मैक्किनोन के परिचित लोग अपनी ज़िंदगी के तमाम क़िस्से सुनाते थे तो, उन्हें लगता था कि वो तो लोगों का मन बहलाने के लिए कहानियां गढ़ रहे हैं। लेकिन, जब मेडिकल की ट्रेनिंग ले रहे सुशी के एक दोस्त ने उनसे याददाश्त का एक टेस्ट देने को कहा, तब जाकर पता चला कि सुशी को अपनी ज़िंदगी की बातें तो याद ही नहीं।
सुशी को जब अपने बारे में ये बात समझ में आई, तो उन्होंने एम्नेज़िया यानी भूलने की बीमारी पर रिसर्च की। लेकिन, जिन लोगों की याददाश्त किसी बीमारी या ज़हनी चोट की वजह से गुम हो गई थी, उनके तजुर्बे सुशी को अपने जैसे नहीं लगे। सुशी को ये तो याद था कि घटनाएं हुई थीं। बस, वो वहां मौजूद रहने या उन घटनाओं की गवाह रहने की बातें भूल गई थीं।
ऑटोबायोग्राफ़िकल मेमोरी लॉस
एक दशक पहले सुशी मैक्किनोन का पैर टूट गया, तो उन्हें घर पर रहना पड़ा। खाली वक़्त में सुशी ने दिमाग़ के समय चक्र वाले तजुर्बों के बारे में रिसर्च की। इसके बाद सुशी ने इस बारे में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक से संपर्क करने का फ़ैसला किया।
सुशी ने जब इस बारे में टोरंटो के बेक्रेस्ट स्थित रोटमैन रिसर्च इंस्टीट्यूट के ब्रायन लेवाइन को ख़त लिखा, तो वो बहुत नर्वस थीं। लेकिन, जब ब्रायन लेवाइन को सुशी का ई-मेल मिला, तो वो बहुत उत्साहित हो गए। दोनों लोगों की बातचीत का नतीजा ये निकला कि, सुशी की बीमारी का नाम तय हो गया।
इंसानों की एक ज़बरदस्त ख़ूबी है कि वो कल्पना के ज़रिए वक़्त के दौर में पीछे भी जा सकते हैं और आगे भी। आप अपने बचपन में किसी कक्षा में शरारत की कल्पना भी कर सकते हैं। और उम्रदराज़ होने पर किसी बीच पर आराम से चहलक़दमी को भी सोच सकते हैं। यानी ज़हन के घोड़े दौड़ाकर हम वक़्त का लंबा सफ़र आराम से बैठे-बैठे तय कर सकते हैं।
मानसिक टाइम-ट्रैवल
लेकिन, सुशी मैक्किनोन ये आसान सा काम नहीं कर पाती हैं। ब्रायन लेवाइन कहते हैं कि, 'सुशी के लिए पुरानी घटनाएं कुछ ऐसी हैं, जैसे वो ज़िंदगी उन्होंने नहीं, बल्कि उनकी तरफ़ से किसी और ने जी है। उनकी ज़िंदगी की घटनाएं मानो किसी और की ज़िंदगी का तजुर्बा हैं।'
हम सब अपनी ज़िंदगी की सारी बातें याद नहीं रख पाते। भूल जाते हैं। सुशी के मामले में भूलने का ये काम काफ़ी गंभीर हो गया है। ये सिंड्रोम, याददाश्त गुम होने की बीमारी से अलग है। एम्नेज़िया हमें अक्सर दिमाग़ में चोट लगने या किसी बीमारी की वजह से होता है।
इससे लोग नई यादें जमा नहीं कर पाते हैं। लेकिन जिन लोगों को एसडीएएम यानी सेवेरली डेफिशिएंट ऑटोबायोग्राफिकल मेमोरी की बीमारी होती है, वो नई बातें सीख सकते हैं। नई यादें जमा कर सकते हैं। पर, ये यादें भी विस्तार से नहीं जमा होतीं।
अगर सुशी किसी ख़ास घटना को याद रख पाती हैं, तो उसकी वजह ये होती है कि वो घटना से जुड़ी कोई तस्वीर देख चुकी होती हैं, या क़िस्सा सुन चुकी होती हैं। फिर भी, सुशी ये तसव्वुर नहीं कर सकतीं कि वो भी वहां मौजूद थीं।
सुशी मैक्किनोन कहती हैं कि उन्हें जब किसी भी आयोजन में होने की बात याद दिलाई जाती है, तो यूं लगता है कि कोई दूसरा इंसान उनकी जगह वहां गया था। सुशी कहती हैं कि, 'मेरे दिमाग़ में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मैं वहां थी। मुझे महसूस ही नहीं होता कि मैंने वहां रहने का तजुर्बा जिया था।' इस बीमारी की वजह से सुशी मैक्किनोन कभी भी पुरानी यादों में खोकर भावुक नहीं हो सकती हैं।
याद नही रहते बुरे तजुर्बे
अपने गुज़ारे हुए अच्छे वक़्त को याद कर के ख़ुश नहीं हो सकती हैं। पर, इसका ये मतलब भी है कि वो पुरानी दर्द भरी बातों को सोच कर ख़ुद को तकलीफ़ भी नहीं दे सकती हैं। परिवार या रिश्तेदारी में किसी की मौत से अगर उस वक़्त उन्हें सदमा पहुंचा था, तो वो बात उन्हें आगे चल कर तकलीफ़ नहीं देगी।
इससे सुशी को बेहतर इंसान बनने का मौक़ा मिलता है। उन्हें किसी से शिकायत नहीं होती, क्योंकि उन्हें किसी का बुरा बर्ताव याद नहीं रहता, तो किसी भी शख़्स के साथ बुरे तजुर्बे को वो याद नहीं रखतीं।
इस बीमारी के बारे में अब तक जो रिसर्च हुई है, उससे इसकी वजह साफ़ नहीं हो सकी है। अभी यही कहा जा रहा है कि शायद लोग इस बीमारी के साथ ही पैदा होते हैं। हालांकि ब्रायन लेवाइन इस बीमारी से दूसरी बातों का ताल्लुक़ तलाश रहे हैं।
सुशी मैक्किनोन को अफैंटैसिया नाम की बीमारी भी है। यानी उनका ज़हन तस्वीरें नहीं गढ़ सकता। तो, क्या इसका ये मतलब हुआ कि इसी वजह से वो यादें नहीं सहेज पाती हैं? फिलहाल पक्के तौर पर ये कहना मुश्किल है।
यादों को लेकर दशकों से जारी रिसर्च से पता चलता है कि हमारे ज़हन में कोई याद तब जमा होती है, जब हम उसकी कल्पना करते हैं। हमें ये पता तो नहीं होता कि जैसा हुआ था, वैसा ही तसव्वुर हम कर रहे हैं, पर जो भी करते हैं, उसे दिमाग़ सहेज लेता है। किसी को तस्वीर याद रह जाती है, तो कोई घटना का वीडियो दिमाग़ में बना लेता है और फिर उन्हीं से यादों की इमारत खड़ी करता है।
वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस की प्रोफ़ेसर कैथरीन लवडे कहती हैं कि हम तीन साल की उम्र से पहले की घटनाएं थोड़ी-बहुत बता पाते हैं, तो उसकी वजह ये होती है कि हम ने उम्र के उस दौर के क़िस्से सुने होते हैं, तस्वीरें देखी होती हैं। पर, हमें उन बातों के तजुर्बे याद नहीं रहते।
एसडीएएम की बीमारी किस हद तक दुनिया में फैली है, इसका अभी ठीक से अंदाज़ा नहीं है। ब्रायन लेवाइन के ऑनलाइन सर्वे में हिस्सा लेने वाले 5 हज़ार से ज़्यादा लोगों में से कई ने दावा किया है कि उन्हें लगता है कि ये बीमारी उन्हें भी है। आंकड़ों से ये लगता है कि ये दुर्लभ बीमारी नहीं है।
ज़िंदगी पर असर नहीं डालती है ये बीमारी
ब्रायन लेवाइन इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि अगर कुछ लोगों को याद न रहने की बीमारी है, तो कुछ ऐसे भी होंगे, जिन्हें मामूली से मामूली बात भी याद रहती होगी। वैसे, अगर किसी को ये बीमारी है, तो इससे उसकी ज़िंदगी पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता।
सुशी मैक्किनोन कहती हैं कि वो हमेशा से ही ऐसी थीं। ये तो अब पता चला है कि उन्हें एसडीएएम नाम की बीमारी है। वरना इससे पहले तो उन्हें कुछ याद न रहने से फ़र्क़ नहीं पड़ता था। अब, उन्हें ये ज़रूर समझ आ गया है कि लोग अपनी ज़िंदगी की यादें साझा करते हैं, तो वो झूठ-मूठ की कहानी नहीं बना रहे होते।
सुशी मैक्किनोन कहती हैं कि, 'चूंकि मेरे अंदर ये क्षमता ही नहीं थी कि मैं ज़िंदगी के तजुर्बे बताऊं, तो मुझे ये कमी नहीं महसूस होती।'
सुशी मैक्किनोन कहती हैं कि पुरानी यादें न होने का एक और फ़ायदा है। सुशी के मुताबिक़, 'बहुत से लोग ये कोशिश करते हैं कि वो आज में जिएं। मुझे इसकी कोशिश करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। मेरा ज़हन मुझे आज में ही रखता है। गुज़रे हुए कल की न तो याद है, न फ़िक्र।'