पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि लखनऊ के प्रसिद्ध रूमी दरवाजे की मरम्मत में देरी से इस बुलंद इमारत को खतरा हो सकता है। जमीन से करीब 60 फीट की ऊँचाई पर आई यह दरार मुख्य मेहराब के केंद्र में बने कमल के फूल को क्षतिग्रस्त करती हुई इमारत के ऊपर तक चली गयी है।
रूमी दरवाजा पुराने लखनऊ के हुसैनाबाद इलाके में छोटे और बड़े इमामबाड़े के बीच में स्थित है। नवाब असफुद्दौला ने इसे लगभग सवा दो सौ साल पहले बनवाया था। इतिहासकारों के अनुसार रूमी दरवाजा कॉन्सटैंटिनोपल (प्राचीन तुर्की) के एक प्राचीन दुर्ग की नकल पर बनवाया गया था।
वहाँ मौलाना रूम के नाम पर तुर्की वास्तुकला का एक ऐसा ही दरवाजा है। इसीलिए इसे तुर्की या 'टर्किश गेट' भी कहा जाता है। यह दरवाजा लखनऊ की शान है और पहचान भी।
पर्यटन स्थल : यहीं बगल में नींबू पार्क और घंटाघर है और गोमती नदी पास में ही बहती है। अवध की मशहूर शाम यहाँ से देखने लायक होती है इसीलिए बाहरी पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोग भी परिवार के साथ यहाँ घूमने आ जाते हैं।
इमारत की देखरेख करने वाले भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दरार अब से करीब पाँच साल पहले शुरू हुई थी। इस विषय में एक लिखित रिपोर्ट 2006 में भेजी गयी। तब से यह दरार बढ़ती ही जा रही है।
पुरातत्त्व अधिकारियों के अनुसार मेहराब के ऊपर बने कई गुलदस्ते टेढ़े हो गए हैं और कुछ कमल दल गिर गए हैं। कई जगह प्लास्टर उखड़ गया है। लेकिन पूरी तस्वीर जानने के लिए इमारत के ऊपर चढ़ना भी नहीं हो पा रहा है।
लखनऊ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ अधिकारी चंद्र भाल मिश्र ने करीब चार महीने पहले लखनऊ मंडल के कमिश्नर को पत्र लिखा। पत्र में लिखा गया था कि रूमी गेट लखनऊ शहर में अवध के शानदार स्थापत्य का हस्ताक्षर स्मारक है। किन्तु इसके मध्य में लगातार ट्रैफिक की आवाजाही से होने वाले कंपन तथा कभी-कभी वाहनों द्वारा सीधी टक्कर लगने से इस स्मारक को अत्यधिक क्षति पहुँच रही है।
पत्र में आगे लिखा है कि ऊपर की मुख्य मेहराब में आयी दरार रूमी गेट के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा सकती है तथा इससे जन सामान्य को खतरा भी हो सकता है।
पुराने लखनऊ के जानकार नवाब जाफर मीर अब्दुला कहते हैं कि रूमी गेट में आयी दरार का एक और कारण यह भी है कि करीब तीस साल पहले इसके नीचे दाहिनी तरफ से पानी की पाइपलाइन बिछायी गई। इससे इमारत एक तरफ धँसने लगी और यह दरार आ गई।
नवाब जाफर कहते हैं कि यह इमारत लखौरी ईंटों, चूना और सुर्खी से बनी है जिसमें सीलन भी जल्दी आती है। ऐसी इमारत की उम्र साधारण तौर पर करीब डेढ़ सौ साल होती है, जबकि रूमी दरवाजे की उम्र करीब सवा दो सौ साल हो गई है।
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नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला कहते हैं, 'अगर अभी से इसकी ठीक से मरम्मत नही की गई तो आने वाले वक्त में यह बहुत खतरनाक हो जाएगा।' पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एक अधिकारी एएम खान कहते हैं कि इस गेट की मरम्मत बहुत चुनौती भरा काम है। इसके लिए जरूरी है कि कारीगर सहूलियत से ऊपर बैठकर काम कर सकें।
पुरातत्त्व अधिकारियों का कहना है कि गेट की आधी ऊँचाई तक मरम्मत कर ली गयी है लेकिन ऊपर क्षतिग्रस्त हिस्से को देखने और उसकी मरम्मत के लिए गेट की पूरी चौड़ाई की पाड़ बाँधना आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि रूमी गेट से गुजरने वाला ट्रैफिक एक साल के लिए पूरी तरह बंद करके बगल में बनी वैकल्पिक सड़क पर मोड़ दिया जाए।
रखरखाव की जिम्मेदारी : रूमी गेट बड़े इमामबाड़े का हिस्सा है, जिसका मालिक हुसैनाबाद ट्रस्ट है। ट्रस्ट के सदस्य और कर्त्ता-धर्त्ता नवाबी खानदान और उनके कर्मचारियों से जुड़े लोग हैं। मगर इन लोगों ने इमारत के रखरखाव में कभी कोई खास दिलचस्पी नही दिखाई।
परिवार के साथ घूमने आए स्थानीय नागरिक रियाज अहमद का कहना है कि यह इमारत लखनऊ की शान है। इस इमारत से हुसैनाबाद ट्रस्ट को काफी आमदनी भी होती है, लेकिन ट्रस्ट के लोग इमारत के रखरखाव पर ध्यान नहीं देते।
शिकायतों और आपसी कलह के चलते इन दिनों ट्रस्ट का कामकाज स्थानीय प्रशासन के अधिकारी देख रहे हैं। लखनऊ पश्चिम क्षेत्र के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट एवं हुसैनाबाद ट्रस्ट के सचिव ओपी पाठक का कहना है कि अब मुहर्रम के बाद ट्रैफिक रोकने की व्यवस्था की जाएगी।
ओपी पाठक ने कहा, 'मुहर्रम जैसे ही समाप्त होगा, प्लान बनाएँगे कि आवागमन कैसे परिवर्तित किया जाए। रूमी गेट की स्थिति निश्चित रूप से चिंताजनक है पर यातायात परिवर्त्तन की व्यवस्था भी बनानी पड़ेगी। यह एक कठिन कार्य है। कोशिश की जाएगी कि जल्दी से जल्दी मरम्मत शुरू कराई जाए।'
पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि अगर प्रशासन वास्तव में रूमी गेट और इमामबाड़ा को सुरक्षित रखने में दिलचस्पी रखता है तो पक्का वैकल्पिक रास्ता बनाकर रूमी गेट के रास्ते से मोटर वाहनों का आवागमन हमेशा के लिए बंद करना होगा, अन्यथा इस राष्ट्रीय धरोहर को ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखना मुश्किल होगा।