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Last Updated : मंगलवार, 27 मई 2025 (16:11 IST)

शनि देव: न्याय के देवता

Power of Shani Dev
भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में शनिदेव का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें नवग्रहों में से एक प्रमुख ग्रह माना जाता है, जिनका प्रभाव मानव जीवन पर गहरा होता है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है, जो भगवान सूर्यदेव और माता छाया के पुत्र शनिदेव के जन्मोत्सव का प्रतीक है। यह दिन शनिदेव की कृपा प्राप्त करने, उनके नकारात्मक प्रभावों को कम करने और उनके वास्तविक स्वरूप को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।ALSO READ: शनिदेव को क्रोधित कर सकती हैं आपकी ये 15 बुरी आदतें
 
पौराणिक आख्यान: शनिदेव का जन्म और उनका स्वरूप: शनिदेव के जन्म से जुड़ी कथा अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, शनिदेव भगवान सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्यदेव की पहली पत्नी संज्ञा थीं, जिनसे मनु, यम और यमुना का जन्म हुआ। संज्ञा सूर्यदेव के तेज को सहन नहीं कर पाती थीं, इसलिए उन्होंने अपनी हमशक्ल छाया को अपनी जगह सूर्यदेव की सेवा में छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने चली गईं।
 
छाया ने सूर्यदेव की सेवा करते हुए शनिदेव को गर्भ धारण किया। गर्भावस्था के दौरान छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिसके कारण उनके गर्भ में पल रहे शिशु पर सूर्यदेव का तेज और शिव जी की तपस्या का प्रभाव पड़ा। जब शनिदेव का जन्म हुआ, तो उनका रंग श्याम (काला) था और उनका स्वरूप कुछ अलग था, जिसे देखकर सूर्यदेव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने छाया पर संदेह किया और शनिदेव को त्याग दिया।
 
इस घटना से शनिदेव को गहरा आघात लगा। उन्होंने स्वयं को अपमानित महसूस किया और अपने पिता सूर्यदेव के इस व्यवहार से अत्यंत क्रोधित हुए। कहा जाता है कि इसी क्रोध के कारण उन्होंने सूर्यदेव पर ऐसी दृष्टि डाली कि वे काले पड़ गए और उन्हें कुष्ठ रोग हो गया। बाद में भगवान शिव के हस्तक्षेप से सूर्यदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र स्वीकार किया।
 
शनिदेव ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए कठोर तपस्या की और भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया। शिव जी ने उन्हें नवग्रहों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया और उन्हें न्याय का देवता नियुक्त किया। शिव जी ने उन्हें यह शक्ति दी कि वे प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल देंगे, चाहे वह देवता हो, दानव हो या मनुष्य। इसी कारण शनिदेव को 'कर्मफल दाता' और 'न्यायाधीश' के रूप में जाना जाता है। उनका वाहन गिद्ध है और वे हाथ में धनुष-बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।ALSO READ: 3 अचूक उपाय और शनि का प्रकोप हो जाएगा हमेशा के लिए दूर
 
शनि देव से जुड़ी भ्रांतियां : भय नहीं, न्याय के प्रतीक- 
समाज में शनिदेव को लेकर कई भ्रांतियां और गलत धारणाएं प्रचलित हैं। अक्सर उन्हें एक क्रूर, अशुभ और विनाशकारी ग्रह के रूप में देखा जाता है, जिससे लोग भयभीत रहते हैं। 'शनि की दशा' या 'शनि की साढ़ेसाती' का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं, यह सोचते हुए कि अब उनके जीवन में केवल कष्ट और परेशानियां ही आएंगी। हालांकि, यह धारणा शनिदेव के वास्तविक स्वरूप से कोसों दूर है।
 
वास्तविकता यह है कि शनिदेव न्याय और अनुशासन के प्रतीक हैं। वे किसी के साथ अन्याय नहीं करते और न ही किसी को अकारण कष्ट देते हैं। उनका प्रभाव केवल उन लोगों पर नकारात्मक रूप से पड़ता है जो गलत कर्म करते हैं, अनैतिक आचरण अपनाते हैं, या दूसरों को पीड़ा पहुंचाते हैं। शनिदेव उन लोगों को उनके कर्मों का दंड देते हैं ताकि वे अपनी गलतियों से सीख सकें और सही मार्ग पर लौट सकें।
 
जो लोग ईमानदारी, कड़ी मेहनत, सच्चाई और परोपकार के मार्ग पर चलते हैं, शनिदेव उन्हें कभी कष्ट नहीं देते, बल्कि उन्हें पुरस्कृत करते हैं। उनकी दशा या गोचर काल में भी ऐसे लोगों को शुभ फल प्राप्त होते हैं, क्योंकि शनिदेव उन्हें उनके अच्छे कर्मों का प्रतिफल देते हैं। वे धैर्य, संयम और तपस्या के महत्व को सिखाते हैं। उनकी कठोरता वास्तव में एक शिक्षक की कठोरता के समान है, जो अपने शिष्य को सही रास्ते पर लाने के लिए आवश्यक होती है।
 
शनिदेव उन लोगों के मित्र हैं जो मेहनती, ईमानदार और विनम्र होते हैं। वे गरीबों, असहायों और वंचितों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते हैं। इसलिए, जो लोग इन वर्गों की मदद करते हैं, शनिदेव उनसे प्रसन्न होते हैं। शनिदेव का भय केवल उन लोगों के लिए है जो अपने कर्मों के प्रति लापरवाह हैं और नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करते हैं।
 
ज्योतिषीय प्रभाव: साढ़ेसाती, ढैया और महादशा का वास्तविक अर्थ: ज्योतिष में शनिदेव का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी चाल धीमी होती है, और वे एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते हैं। यही कारण है कि उनके प्रभावों की अवधि लंबी होती है। शनि के प्रमुख ज्योतिषीय प्रभावों में साढ़ेसाती, ढैया और महादशा शामिल हैं:
 
- शनि की साढ़ेसाती: यह शनि के सबसे चर्चित और भयभीत करने वाले प्रभावों में से एक है। जब शनि गोचर में चंद्रमा से बारहवीं, पहली और दूसरी राशि में होता है, तो इस अवधि को साढ़ेसाती कहा जाता है। यह कुल साढ़े सात वर्ष की अवधि होती है। इस दौरान व्यक्ति को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, आर्थिक परेशानियां, रिश्तों में तनाव या करियर में बाधाएं।
 
* वास्तविक अर्थ: साढ़ेसाती का उद्देश्य व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देना और उसे जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाना है। यह अवधि व्यक्ति को आत्मचिंतन करने, अपनी गलतियों को सुधारने और धैर्य व संयम विकसित करने का अवसर देती है। जो लोग इस दौरान ईमानदारी से प्रयास करते हैं, उन्हें अंततः शुभ फल प्राप्त होते हैं और वे अधिक मजबूत और परिपक्व होकर उभरते हैं। यह अवधि अक्सर व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त बनाती है।
 
शनि की ढैया: जब शनि गोचर में चंद्रमा से चौथी या आठवीं राशि में होता है, तो इस अवधि को ढैया कहा जाता है। यह ढाई वर्ष की अवधि होती है। ढैया का प्रभाव भी साढ़ेसाती के समान हो सकता है, लेकिन इसकी तीव्रता थोड़ी कम मानी जाती है।
 
* वास्तविक अर्थ: ढैया भी व्यक्ति को अनुशासन, कड़ी मेहनत और जिम्मेदारी सिखाती है। यह उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती है जहां व्यक्ति को सुधार की आवश्यकता होती है। यह अवधि व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पहचानने और उनका सही उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है।
 
शनि की महादशा: यह शनि का सबसे लंबा ज्योतिषीय प्रभाव होता है, जो 19 वर्षों तक चलता है। यह व्यक्ति की कुंडली में शनि की स्थिति और उसके बल पर निर्भर करता है कि यह महादशा शुभ होगी या अशुभ।
    
* वास्तविक अर्थ: शनि की महादशा व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से बदल सकती है। यदि शनि कुंडली में मजबूत और शुभ स्थिति में है, तो यह महादशा व्यक्ति को अपार सफलता, धन, मान-सम्मान और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान कर सकती है। वहीं, यदि शनि कमजोर या पीड़ित है, तो यह चुनौतियां और संघर्ष ला सकती है। यह अवधि व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य और कर्मों के महत्व को समझने का अवसर देती है।
 
कुल मिलाकर, शनि के ज्योतिषीय प्रभाव व्यक्ति को जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराते हैं। वे व्यक्ति को आलस्य त्यागकर कर्मठ बनने, अनैतिकता छोड़कर नैतिकता अपनाने और धैर्य व संयम से काम लेने की प्रेरणा देते हैं। शनिदेव की कृपा से ही व्यक्ति अपने जीवन में स्थायित्व, अनुशासन और सच्ची सफलता प्राप्त कर पाता है।
 
शनि जयंती का महत्व और पूजन विधि: शनि जयंती का दिन शनिदेव की कृपा प्राप्त करने और उनके नकारात्मक प्रभावों को शांत करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भक्त श्रद्धापूर्वक शनिदेव की पूजा-अर्चना करते हैं।
 
पूजन विधि:
- स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शनिदेव की पूजा का संकल्प लें।
- पूजा स्थल पर शनिदेव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- तिल का तेल और काले या नीले वस्त्र: शनिदेव को तिल का तेल, काले तिल, काले वस्त्र, नीले फूल, उड़द दाल और लोहे की वस्तुएं अर्पित करें।
- दीपक और धूप: तिल के तेल का दीपक जलाएं और धूप जलाएं।
- मंत्र जाप: 'ॐ शं शनैश्चराय नमः' या शनि के वैदिक मंत्रों का जाप करें। शनि चालीसा और शनि स्तोत्र का पाठ करना भी अत्यंत लाभकारी होता है।
- शनिदेव को भोग: शनिदेव को उड़द दाल की खिचड़ी, तिल के लड्डू या अन्य सात्विक भोग अर्पित करें।
- दान: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को काले तिल, उड़द दाल, तेल, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- पीपल की पूजा: पीपल के वृक्ष की पूजा करें और उस पर जल चढ़ाएं, तिल का तेल का दीपक जलाएं।
- हनुमान जी की पूजा: शनिदेव हनुमान जी के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते। इसलिए, शनि जयंती पर हनुमान जी की पूजा करना भी लाभकारी होता है।
 
शनि जयंती हमें यह याद दिलाती है कि शनिदेव केवल भय के देवता नहीं, बल्कि न्याय और कर्मफल के प्रतीक हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्धारण करते हैं। यदि हम ईमानदारी, सच्चाई और परोपकार के मार्ग पर चलते हैं, तो शनिदेव हमें अवश्य ही शुभ फल प्रदान करते हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन में अनुशासन, धैर्य और सच्ची सफलता प्राप्त करता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में सकारात्मकता लाने, अपनी गलतियों से सीखने और एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है। ALSO READ: मात्र 3 उपायों से शनि की साढ़ेसाती और महादशा से मिलेगी मुक्ति
 
शनिदेव की जय हो!

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