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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 24 मई 2025 (17:32 IST)

आल्हा ऊदल ने क्यों लड़ा था पृथ्‍वीराज चौहान से युद्ध?

Alha Jayanti 25 May 2024
Aalha Udal Story: वर्ष 2025 में आल्हा जयंती 25 मई रविवार को मनाई जा रही है। बुंदेली इतिहास में आल्हा-ऊदल का नाम बड़े ही आदरभाव से लिया जाता है। आल्हा उदल की पौराणिक कथा के अनुसार आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे।
 
आल्हा उदल कौन थे जानिए उनकी रोचक कहानी:
1. आल्हाखण्ड में गाया जाता है कि इन दोनों भाइयों का युद्ध दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। कहते हैं कि युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। इसलिए भी आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान से भयानक युद्ध लड़कर उन्हें हराकर बंधक बना लिया था। लेकिन गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था। 

2. यह भी कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान, जो कि दिल्ली और अजमेर के शासक थे, उत्तरी भारत में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहे थे। महोबा एक स्वतंत्र राज्य था और पृथ्वीराज चौहान चाहते थे कि महोबा उनके अधीन हो जाए। इस वजह से उन्होंने महोबा पर आक्रमण किया। आल्हा और ऊदल ने अपने राज्य की स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना से युद्ध किया। उन्होंने वीरता से लड़ाई लड़ी, लेकिन इस युद्ध में उदल को वीरगति प्राप्त हुई। इससे अल्हा बहुत उदास और क्रोधित हो गए। बाद में अल्ला ने जो युद्ध लड़ा उसके चलते पृथ्‍वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। एक अन्य कथा में यह भी कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने आल्हा की बहन को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी, जिससे युद्ध की स्थिति बनी।
3. यह भी कहते हैं कि आल्हा को मां शारदा माई (मध्यप्रदेश के मैहर में स्थित) का आशीर्वाद प्राप्त था, अतः पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। पृथ्वीराज चौहान के साथ आल्हा की आखरी लड़ाई थी, जिसमें आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। लिहाजा पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं।  मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती। जो इस पर विश्वास नहीं करता वे अपनी आंखों से जाकर देख सकता है।
 
4. कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। 
 
5. बुंदेली इतिहास में आल्हा-ऊदल का नाम बड़े ही आदरभाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है, जो सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव-गली में गाया जाता है। जैसे पानीदार यहां का पानी आग, यहां के पानी में शौर्य गाथा के रूप से गाया जाता है। यही नहीं, बड़े लड़ैया महोबे वाले खनक-खनक बाजी तलवार आज भी हर बुंदेलों की जुबान पर है। उल्लेखनीय है कि बुंदेल खंड के लोग आज तक कभी किसी से नहीं हारे है। उन्होंने अकबर और औरंगजेब को भी धूल चटा दी थी।

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