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Last Updated : शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025 (16:14 IST)

Astrology : फलित ज्योतिष क्या है, जानें मह‍त्वपूर्ण जानकारी

Phalit Jyotish
Phalit Jyotish: फलित ज्योतिष, भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, निर्णयों और भविष्य को ग्रहों और नक्षत्रों के स्थानों के आधार पर भविष्यवाणी करने की एक प्रणाली है। फलित ज्योतिष में मुख्य रूप से जन्म कुंडली (जिसे 'जन्मपत्री' भी कहा जाता है) का उपयोग किया जाता है, जिसे व्यक्ति के जन्म के समय के ग्रहों, नक्षत्रों, और राशियों की स्थिति के आधार पर तैयार किया जाता है। यदि फलित ज्योतिष के नियम की बात करें तो सबसे पहले यह देखना व जानना चाहिए कि जातक की पत्रिका या कुंडली सही समय के आधार पर बनी हुई है या नहीं, यदि जातक जन्म-समय व स्थान को लेकर अनिश्चित हो तो, ऐसे जानकारी के आधार पर बनी जन्म-पत्रिका सही फलित यही हो पाएगी।ALSO READ: Astrology: क्या होगा जब शनि, बृहस्पति और राहु करेंगे इसी वर्ष अपनी राशि परिवर्तन? तैयार रहें किसी बड़ी घटना के लिए
 
फलित-ज्योतिष का उद्देश्य यह है कि, व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं (जैसे स्वास्थ्य, व्यवसाय, परिवार, विवाह और आर्थिक स्थिति) पर ग्रहों के प्रभावों को समझा जाए और भविष्य में आने वाले समय के बारे में अनुमानित किया जाए। 
 
लग्न व लग्नेश की स्थिति: जातक की जन्म-पत्रिका में सबसे पहले लग्न का अध्ययन करना चाहिए। सबसे पहले देखें कि लग्न कौन सी राशि का है। लग्न जानने के बाद लग्न के स्वामी (जिसे लग्नेश कहते है), की स्थिति को जानना भी अति महत्वपूर्ण है। यह कुंडली में किस भाव व किस राशि पर स्थित है। लग्नेश पर पड़ने वाली शुभ एवं पाप ग्रहों की दृष्टि, लग्नेश की अवस्था, लग्नेश की अन्य ग्रहों से युति इत्यादि का अध्ययन आवश्यक है। 
 
राशि व राशि की स्थिति: जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को दर्शाने वाले चार्ट में यदि किसी जातक की जन्म-राशि जाननी हो तो, सबसे पहले यह जांचे कि, चंद्रमा जन्म-पत्रिका में जिस स्थान या राशि में स्थित है वही जातक की जन्म-राशि कहलाएगी। तत्पश्चात जन्म-राशि की स्थिति, अवस्था उसकी अन्य ग्रहों के साथ युति व उस पर अन्य ग्रहों की दृष्टि का अध्ययन करना चाहिए। 
 
जन्म पत्रिका में भाव एवं भाव के स्वामी की स्थिति: जब हमें किसी घटना का या किसी बात का अध्ययन करना होता है तो उस भाव के साथ उस भाव के स्वामी की स्थिति को भी पढ़ना होता है। विचार हेतु इन बिंदुओं का भी विश्लेषण करना होता है। जैसे:ALSO READ: Astrology 2025: 18 मई से राहु का गोचर, सतर्क रहें इन 5 राशियों के लोग, करें 3 अचूक उपाय
 
1. भाव का बल, 
2. भाव में स्थित ग्रह का विचार, 
3. भाव में शुभ या अशुभ ग्रह की स्थिति पर विचार, 
4. यदि भाव में लग्नेश स्थित हो तो उसके प्रभाव का विचार, 
5. भाव में कोई ग्रह हो तो उस ग्रह का बल, उच्च-नीच आदि का भी विचार, 
6. भावस्थ, ग्रह, तरीकों, केंद्र, त्रिक आदि स्थानों में स्वामी का विचार भी करना चाहिए, 
7. भाव में किसी ग्रह की दृष्टि (शुभ/पाप) की है या नहीं यह भी विचार योग्य पॉइंट है, 
8. भाव में स्थित अनेक ग्रहों के योगों पर विचार, 
9. भाव में स्वामी की स्थिति, दृष्टि संबंध का विचार भी करना चाहिए, 
10. भाव के स्वामी का परिवर्तन योग अथार्थ भाव के स्वामी का परस्पर एक दूसरे के स्थान में होना इस बात पर भी विचार।
11. भाव के कारण ग्रह की स्थिति का ज्ञान होना भी अति आवश्यक हो जाता है। 
 
फलित विचार करने के साधारण नियम: नीच का ग्रह अशुभ होता है। जैसे वृश्चिक का चंद्रमा, कर्क का मंगल आदि। उच्च का ग्रह विशेष शुभ पहल देता है एवं शुभ फल में वृद्धि करता है जैसे वृषभ का चंद्रमा, मकर का मंगल तथा कन्या का बुध आदि। 

पाप ग्रह वक्री हो तो अशुभ है: पाप ग्रह युक्त ग्रह अनिष्ट फल देता है। जैसे चतुर्थ में वृश्चिक का बुध पाप ग्रह राहू से युक्त हो तो, पाप युक्त होने से बुध बुरा हुआ। 
 
1. ग्रह जिस स्थान को देखता है उसके बल को बढ़ाता है। यदि भाव का स्वामी स्वयं के भाव को देखे तो अच्छा फल देता है, जैसे 11 भाव में चंद्रमा अपनी सातवीं दृष्टि से पांचवें भाव को देखता है इनमें चौथी राशि राशि मतलब कर्क का स्वामी चंद्र है तो पांचवें भाव का फल अच्छा होगा। 
 
2. अशुभ ग्रह हो परंतु केंद्र में हो तो अच्छा फल देते हैं, जैसे मंगल पाप ग्रह है परंतु दशम में केंद्र स्थान का होकर अच्छा फल देगा। 
 
3. यदि किसी भाव में शुभ और अशुभ ग्रह दोनों एक साथ हों तो मिश्रित फल और परिणाम देंगे तथा भाव पर शुभ और अशुभ दोनों की दृष्टि हो तो भी मिश्रित फल होगा। 
 
4. अष्टम भाव में सूर्य एवं चंद्रमा बलवान नहीं होते हैं। अष्टमेश यदि लग्नेश हो जाए तो वह अच्छा समझा जाता है। 
 
5. त्रिषडाम 3,6,11 भाव अशुभ स्थान कहलाते हैं, क्योंकि इनके स्वामी शुभ ग्रह हो तो बुरे होते हैं और पाप ग्रह हों तो शुभ फल देते हैं। 
 
6. त्रिक स्थान 6,8,12 भाव दुष्ट स्थान हैं। शुभ ग्रह इन स्थान में उस भाव के फल की हानि करते हैं और पाप ग्रह उस भाव की दृष्टि की हानि करते हैं। ये भाव ऋण, रोग एवं शत्रु का मुख्य स्थान माने जाते हैं। यदि पाप ग्रह इनमे हो तो यह भाव के बुरे फल को नष्ट करेगा अर्थात इनके नाश होने से जातक सुखी होगा। यदि शुभ ग्रह हो तो इनको बढ़ने नहीं देगा यानि अधिक लाभ नहीं होगा। यदि छठे भाव का स्वामी अपने ही भाव में ही हो तो अच्छा समझा जाता है। 
 
फलित ज्योतिष में अष्टक वर्ग का विशेषता एवं मुख्य उपयोग: फलित ज्योतिष में फलादेश निकालने की अनेक विधियां प्रचलित हैं, जिनमें से पराशरोक्त सिद्धांत, महादशाएं, अंतर दशाएं, प्रत्यंतर दशाएं, सूक्ष्म दशाएं इत्यादि के साथ, जन्म लग्न, चंद्र लग्न, नवांश लग्न के द्वारा, वर्ष, मास, दिन एवं घंटों तक विभाजित कर, सूक्ष्म फलादेश निकालना संभव हैं। लेकिन इसके बावजूद भी फलादेश सही अवस्था में प्राप्त नहीं होता है। फलादेश में सूक्ष्मता लाने के लिए ज्योतिष के सभी ग्रंथों में अष्टक वर्ग अपना एक विशेष स्थान रखता है। अष्टक वर्ग का वर्णन ज्योतिष के प्राचीन मौलिक ग्रंथों में सभी जगह मिलता है, वृहद पाराशरी होरा शास्त्र में तो उत्तर खंड में अष्टक वर्ग का ही वर्णन किया गया है।
 
'अष्टक वर्ग' का अर्थ है 'आठ वर्ग' और यह आठ विशेष प्रकार के योगों और गणनाओं को दर्शाता है।
 
अष्टक वर्ग की विशेषताएं:
 
ग्रहों के अंक: अष्टक वर्ग में कुल आठ ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु) के प्रभावों की गणना की जाती है। प्रत्येक ग्रह का एक विशिष्ट अंक होता है, जिसे उनके स्थान, स्थिति और दृष्टि के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
 
कुल अष्टक वर्ग अंक: अष्टक वर्ग में प्रत्येक ग्रह को 0 से 8 तक के अंक मिल सकते हैं। यह अंक ग्रह के अच्छे या बुरे प्रभाव को दर्शाते हैं। अधिक अंक वाले ग्रह शुभ प्रभाव प्रदान करते हैं, जबकि कम अंक वाले ग्रह अशुभ प्रभाव का संकेत देते हैं।
 
नौ अंश: अष्टक वर्ग का संकलन नौ अंशों में किया जाता है। इसमें हर ग्रह की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अंक दिए जाते हैं। यह अंक विशेष ग्रहों की स्थिति को अच्छे या बुरे के रूप में दर्शाते हैं। उच्च अंक वाले ग्रह शुभ फल देते हैं।
 
कुंडली का कुल अष्टक वर्ग अंक: अष्टक वर्ग के अंकों का कुल योग प्राप्त किया जाता है, जिसे एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है। यह अंक व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों के प्रभाव को समझने में मदद करता है।
 
अष्टक वर्ग का विभाजन: अष्टक वर्ग में प्रत्येक ग्रह के लिए आठ अलग-अलग क्षेत्रों की गणना की जाती है, जिनमें बल, दृष्टि, मित्रता, शत्रुता, आदि शामिल होते हैं। इनसे ग्रहों का सामूहिक प्रभाव, उनकी सफलता, और जीवन में उनका परिणाम बताया जाता है।
 
मूल अष्टक वर्ग: अष्टक वर्ग का विशेष महत्व यह है कि यह जातक के जीवन में विशेष समय के दौरान ग्रहों की स्थिति का सही अनुमान लगाने में मदद करता है। इससे जातक को अपनी तकदीर, स्वास्थ्य, व्यवसाय, रिश्तों आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
 
अष्टक वर्ग के लाभ:
यह जन्म कुंडली में ग्रहों के वास्तविक प्रभाव को पहचानने में सहायक होता है।
 
जीवन के विभिन्न पहलुओं में ग्रहों के प्रभाव को समझने में मदद करता है।
 
यह भविष्य के शुभ और अशुभ समय को निर्धारित करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
 
अष्टक वर्ग के माध्यम से ग्रहों की स्थिति, उनकी शक्ति, और जीवन में उनके फल का विश्लेषण किया जाता है, जो जातक को अपनी जीवन यात्रा को बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है।
 
गोचर में, चंद्र राशि को प्रधान मान कर, शुभ स्थान की गणना कर, प्रत्येक ग्रह को शुभ एवं अशुभ माना जाता है। परंतु अष्टक वर्ग में, प्रत्येक ग्रह की राशि को प्रधान मान कर, उससे शुभ स्थान की गणना की जाती है। इसमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शनि 7 ग्रह एवं लग्न सहित 8 होते हैं। इन आठों के संपूर्ण योग को ‘अष्टक वर्ग’ कहा जाता है।

अष्टक वर्ग में 8 प्रकार से शुभ तत्वों की गणना की जाती है। इस कारण अष्टक वर्ग के द्वारा गोचर फल विचार में सूक्ष्मता आ जाती है। इसके बिना फलित अधूरा है, जिस ग्रह की जिस राशि में लग्न सहित आठों ग्रहों की स्थिति अनुकूल होगी, उसको 8 रेखाएं प्राप्त होंगी, उस राशि से भ्रमण करते समय वह शत-प्रतिशत फल देता है।ALSO READ: Lal Kitab Astrology Tips: टेंशन दूर करना हो तो रात को तकिए के पास एक चीज रखकर सोएं
 
राशियां: जन्म पत्रिका में कुल 12 राशियां होती हैं, जो व्यक्ति की जन्म कुंडली के विभिन्न स्थानों में होती हैं। यहाँ सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, और केतु जैसे ग्रहों के प्रभावों को देखा जाता है।
 
दशा और अंतरदशा: यह समय-सीमा होती है, जिसमें व्यक्ति के जीवन में विशेष घटनाएं घटित हो सकती हैं।
 
गोचर: वर्तमान में ग्रहों की स्थिति और उनका प्रभाव व्यक्ति की कुंडली पर।
 
फलित ज्योतिष का उपयोग व्यक्ति के जीवन की दिशा, निर्णयों और भविष्य की घटनाओं को जानने के लिए किया जाता है। यह एक प्राचीन और गहन विद्या है, जिसे भारत में बहुत समय से समझा और प्रयोग किया जाता है। फलित ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और उनकी चाल का अध्ययन कर भविष्य के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। 
 
एक सामान्य उदाहरण लेते हैं: मान लीजिए किसी व्यक्ति का जन्म कुंडली है और उसके लग्न में (जन्म राशि) सूर्य और चंद्रमा का मिलन हो रहा है। इसे 'सूर्य-चंद्रमा योग' कहा जाता है। फलित ज्योतिष में इसे देखा जाता है कि यह व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत सशक्त होगा, लेकिन कभी-कभी इसका मूड स्विंग भी हो सकता है।
अगर इस व्यक्ति के बृहस्पति और शुक्र ग्रह अच्छे स्थान पर स्थित हैं, तो उसे शिक्षा, प्रेम और धन के मामले में लाभ मिलेगा। लेकिन यदि शनि ग्रह प्रतिकूल स्थिति में है, तो स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं या जीवन में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं।
 
इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि फलित ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों के आधार पर जीवन के विभिन्न पहलुओं का अनुमान लगाया जाता है।
 
फलित ज्योतिष में प्रश्न कुंडली का बहुत महत्व: फलित ज्योतिष में प्रश्न कुंडली का बहुत महत्व है। यह एक प्रकार की कुंडली होती है जो किसी व्यक्ति द्वारा पूछे गए विशिष्ट प्रश्न के आधार पर बनाई जाती है। जब किसी व्यक्ति को जीवन के किसी विशेष क्षेत्र (जैसे विवाह, करियर, स्वास्थ्य, या किसी अन्य व्यक्तिगत समस्या) के बारे में कोई निर्णय लेना होता है और वे समय या अन्य कारणों से अपनी जन्म कुंडली का उपयोग नहीं करना चाहते, या उनके पास सही जन्म का समय नहीं है तो उस स्थिति में प्रश्न कुंडली का उपयोग किया जाता है।
 
प्रश्न कुंडली के महत्व को समझते हुए कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
 
समय के अनुसार निर्णय: प्रश्न कुंडली उस समय के आधार पर बनाई जाती है जब व्यक्ति प्रश्न पूछता है। इस प्रकार, यह व्यक्ति की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए भविष्य का संकेत देती है।
 
सामयिक और तत्काल समाधान: जब किसी को तात्कालिक समस्या का समाधान चाहिए, जैसे नौकरी में बदलाव, प्रेम संबंधों में उलझन या किसी अन्य समस्या का हल, तब प्रश्न कुंडली द्वारा सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।
 
दिशा-निर्देश: यह व्यक्ति को सही दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है, जिससे वे अपने निर्णयों को समझदारी से ले सकते हैं।
 
आध्यात्मिक दृष्टिकोण: प्रश्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभाव के आधार पर व्यक्ति के जीवन के पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है, जो व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
 
अल्पकालिक परिप्रेक्ष्य: जन्म कुंडली में दी गई जानकारी आमतौर पर दीर्घकालिक होती है, जबकि प्रश्न कुंडली तात्कालिक और समयबद्ध समस्याओं के समाधान के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
 
इस प्रकार, फलित ज्योतिष में प्रश्न कुंडली एक महत्वपूर्ण टूल है, जो व्यक्ति को उसकी विशिष्ट स्थिति और सवाल के आधार पर तत्काल और प्रासंगिक समाधान प्रदान करती है।
 
यहां कुछ प्रश्नों द्वारा कुछ शंकाएं दूर करना चाहूंगी कि:
 
प्रश्न: प्रश्न-कुंडली में प्रश्न एवं उत्तर कैसे छुपे होते हैं?
उत्तर: ग्रह मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर सदैव प्रभाव डालते रहते हैं। वे ही जातक के मस्तिष्क में प्रश्न उत्पन्न करते हैं, वे ही उसमें उत्तर भी प्रेषित कर देते हैं।
 
प्रश्न: प्रश्न कुंडली में कौन सा समय लेना चाहिए- जिस समय प्रश्न की जिज्ञासा हुई, प्रश्न पूछा गया, या जब प्रश्न कुंडली की गणना की गई?
उत्तर: यदि विदेश से फोन द्वारा प्रश्न पूछा जाए, तो क्या प्रश्न कुंडली समय एवं स्थान की बनानी चाहिए? प्रश्नकर्ता ने जहां से प्रश्न किया हो प्रश्न जन्म का स्थान वही माना जाएगा। इसलिए जहां से और जब फोन आया हो उसी समय व स्थान के अक्षांश और रेखांश के आधार पर प्रश्न-कुंडली बनानी चाहिए, क्योंकि वहीं की ग्रह स्थिति प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल रही है।
 
प्रशन: जन्म कुंडली और प्रश्न कुंडली से फलित करने के नियम एक से हैं या भिन्न-भिन्न?
उत्तर: ज्योतिष का आधार तो नौ ग्रह, बारह राशियां और सत्ताइस नक्षत्र ही हैं। इसलिए जन्म-कुंडली और प्रश्न-कुंडली से फलित करने के नियमों में कोई विशेष अंतर नहीं है। थोड़ा अंतर अवश्य है। प्रश्न में ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति एवं दृष्टियां भिन्न होती हैं।
 
फलित ज्योतिष में अष्टक वर्ग के द्वारा फल उत्तम और सही अवस्था में ठीक-ठीक होता है। अष्टक वर्ग के फल कथन करने से जैसे-जैसे अनुभव में वृद्धि होगी, वैसे-वैसे वर्ष, मास, दिन एवं घड़ी के शुभ फल अनुभव में आने लगेंगे और प्रतिष्ठा पर फलित ज्योतिष विज्ञान के महत्व की अनोखी छाप पड़ेगी।ALSO READ: New Year 2025 Astrology: क्या वर्ष बदलने से बदलेगा आपका भाग्य, पढ़ें सटीक जानकारी
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