मैंने कड़वी यादों को भी सहेज कर रखा है उस दिन के लिए जब किसी मोड़ पर तुम मुझे मिलोगे और यथासंभव स्वर को मधुर बनाकर पूछोगे 'कैसी हो?' मैं तब इन कड़वी यादों को फैला दूँगी तुम्हारे सामने और प्रतिप्रश्न करूँगी कि इतनी कड़वाहट से भरी तुम्हारी अगणित सौगातों के बीच 'कैसी रह सकती हूँ?' तुम्हीं सोचो और बताओ मेरे हाल तुम्हारी सौगातें ही व्यक्त कर सकती हैं मैं नहीं...