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वो फ़साने महज़ किताबी थे
विलास पंडित 'मुसाफिर'हर तमन्ना मिटा गया कोईचोट दिल पर लगा गया कोईजिसकी बुनियाद मैंने रखी थीवो इमारत बना गया कोईजिससे थी मेरी ज़िंदगी कायम बात वो ही छुपा गया कोईवो फ़साने महज़ किताबी थेजो फ़साने सुना गया कोईदिल तेरा था दीवाने ख़ास मगर मुझसे पहले चला गया कोईसुना के आज 'मुसाफ़िर' की ग़ज़लशोर दिल में मचा गया कोई