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Written By DW

माँ-बाप होने के बाद भी अनाथ

अनाथाश्रम
विकासशील देशों में माँ बाप के होते हुए अनाथाश्रमों में रह रहे बच्चों की संख्या बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक इसी मजबूरी में अस्सी लाख बच्चे अनाथशालाओं में बचपन काट रहे हैं।

चैरिटी रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि अनाथाश्रमों में बच्चों को छोड़ने के पीछे मुख्य वजह माता या पिता की मौत नहीं, बल्कि परिवार की गरीबी है। सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया के 94 फीसदी और घाना के 90 प्रतिशत बच्चे माँ या बाप के जिंदा होने के बावजूद अनाथाश्रमों में रहने को मजबूर हैं। लीबिया और श्रीलंका में ऐसे बच्चों की संख्या 88 और 80 प्रतिशत है।

इस रिपोर्ट की लेखिका और बाल सुरक्षा सलाहकार कोरिन्ना कास्की कहती हैं-लोगों को यह भ्रम है कि जो बच्चे अनाथ आश्रम में रहते हैं, वे बिन माँ-बाप के होते हैं लेकिन यहाँ ज्यादातर ऐसे बच्चे हैं, जिनके अभिभावक उनकी मूलभूत जरूरतें जैसे खाना, कपड़ा और शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकने की वजह से उन्हें यहाँ छोड़ देते हैं। गरीब अभिभावकों को लगता है कि यहाँ उनके बच्चे का भविष्य बेहतर है।

रिपोर्ट के अनुसार कुछ सरकारी और चैरिटी संस्थानों को गरीबी, एड्स और एचआईवी से प्रभावित बच्चों के लिए आवास और देखभाल के लिए अच्छा माना जाता रहा है। इनमें सारे संस्थान बच्चों के विकास का नुकसान नहीं करते हैं, लेकिन जो बच्चे केयर होम जैसे संस्थानों में पलते हैं उनमें घर में पलने वाले बच्चों की तुलना में विकास कम होता है।

इसके अलावा उनका आईक्यू भी कम होता है और व्यवहार भी बदला होता है। चिंता की बात है कि होम केयर संस्थानों में रहने वाले विकलांग बच्चों के साथ बुरे व्यवहार किए जाने की ज्यादा संभावना होती है।

बाल सुरक्षा कार्यक्रम के अधिकारियों के मुताबिक इस गलतफहमी को दूर करना होगा कि केवल अनाथ आश्रम ही कमजोर बच्चों के लिए सहारा है। देखा जाए तो माता-पिता के अलग हो जाने के साथ अनाथ आश्रमों में देखभाल में कमी, हिंसा, शोषण समाज और बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा रहे हैं।

"सेव द चिल्ड्रन" की राजदूत पॉल ओ ग्रेडी कहती हैं-माता-पिता के रहते हुए भी उन्हें परिवार से अलग भेजना गलत है। मैं मानती हूँ कि दुनियाभर में बच्चों को परिवारों के साथ रखे जाने का समर्थन होना चाहिए।

रिपोर्ट में सरकार और वित्तीय संस्थानों सहित अनाथाश्रमों के लिए काम कर रहे संस्थानों से कहा गया है कि ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता दी जाए, जिसमें गरीब बाल बच्चेदार परिवार की मदद हो सके। इसके साथ ही सरकारों से राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर बच्चों की देखभाल कर रही संस्थानों के सख्त निगरानी के लिए अपील की गई है।