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Written By ND

निर्देशक की सोच आजाद होः गौतम मेनन

निर्देशक की सोच आजाद होः गौतम मेनन -
तमिलनाडू के प्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक गौतम वासुदेव मेनन जल्दी ही अपनी दूसरी हिन्दी फिल्म "एक दीवाना था" लेकर आ रहे हैं। 2001 में "रहना है तेरे दिल में" से चर्चा में आए गौतम कई तमिल और तेलुगू फिल्में बना चुके हैं, जिसमें से "वारानम अईरम"ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर उन्हे एक अलग पहचान दी।

गौतम ने अपना फिल्मी करियर बतौर विज्ञापन फिल्म मेकर से शुरू किया था। जब वे प्रख्यात फिल्म मेकर राजीव मैनन के संपर्क में आए तब उनके साथ "मिनसाया कनाक्यू" फिल्म में एससिटेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया।

सिनेमा में अपना सिक्का जमाने से पहले गौतम ने फुटॉन फैक्टरी नाम से अपनी एक विज्ञापन एजेंसी भी शुरू की थी जो आज एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी है। तमिल फिल्म से अपने निर्देशन करियर की शुरुआत करने वाले गौतम हमेशा ही युवा कहानी तथा नए आइडिया के साथ सामने आते हैं। उनका ध्यान हमेशा ऐसे मुद्दों पर रहता है जो कि हर उम्र का और हर वर्ग का दर्शक पर्दे पर पसंद करे।

"मिन्नाले"से मिली सफलता को देखते हुए इसका हिंदी रीमेक बनाने का फैसला किया और वे "रहना है तेरे दिल में" के साथ बॉलीवुड में उतरे। दक्षिण भारतीय फिल्मों की सफलता के बाद गौतम करीब दस साल बाद बॉलीवुड में दोबारा कदम रख रहे हैं। फिल्म "फिल्म एक दीवाना था" के लिए उन्होंने प्रतीक बब्बर और ऐमी जेक्सन को चुना है।

टॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म विनायथांडी वारूवाया की रीमेक ये फिल्म ऐमी की पहली हिन्दी फिल्म होगी। एक दीवाना था की अभिनेत्री के लिए गौतम को एक फ्रेश चेहरे की तलाश थी। इन्होंने अपनी इस फिल्म में भी भरपूर मसाला डालने की कोशिश की है। हालांकि असली फिल्म से तुलना की जाए तो फिल्म की कहानी में कुछ खास बदलाव नहीं किए गए हैं।

उनके ए.आर. रहमान से अच्छे संबंध हैं और एक दीवाना था का संगीत भी रहमान ने ही कंपोज किया है। वीनाठंडी वारूवया फिल्म से इसकी धुन मिलती-जुलती हैं पर हिंदी रीमेक में तीन नए गाने जोड़े गए हैं। फिल्म का म्यूजिक रिलीज हो चुका है और लोगों से इसे अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है। "वीनाठंडी वारूवया" की शूटिंग जहां केरल और गोवा के साथ-साथ विदेशों में भी हुई थी, वहीं एक दीवाना था की शूटिंग अधिकतर मुंबई और केरल में ही हुई है।

गौतम मानते हैं कि फिल्म के निर्देशन के समय निर्देशक की सोच को पूरी आजादी मिलनी चाहिए इसलिए वे अभिनेताओं के हिसाब से अपने डायलॉग में भी बदलाव कर लेते हैं पर कहानी के साथ कभी फेरबदल नहीं करते। सोच की आजादी फिल्म की गुणवत्ता के लिए भी जरूरी है।

- दीपिका शर्मा