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Written By ND

फौज की नौकरी पर भारी मल्टीनेशनल कंपनियाँ

फौज की नौकरी पर भारी मल्टीनेशनल कंपनियाँ -
ऋतुराजसिंह धतरावद

प्राइवेट सेक्टरों में बेहतर सुविधा व तनख्वाह के चलते सेना के प्रति युवाओं में उत्साह कम होता जा रहा है। हालत यह है कि भारतीय फौज में अफसरों के 14 हजार 165 और सैनिकों के 20 हजार 432 पद रिक्त पड़े हुए हैं। अफसरों के थलसेना में 11 हजार 238, जल में 1 हजार 399 और वायुसेना में 1 हजार 528 पद रिक्त हैं। इधर सैनिकों में थलसेना की स्थिति ठीक है, इसका कोई पद रिक्त नहीं है। लेकिन 3,665 और 16,767 पद क्रमशः जलसेना व वायुसेना में सैनिकों के रिक्त बने हुए हैं।

ये तो बात हुई सेना में रिक्त पदों की। अब जो लोग सेना में हैं, उनमें भी अपनी नौकरी के प्रति असंतोष घर करता जा रहा है। सेना के अफसरों में कुछ वर्षों में सेना को बाय-बाय कहने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इसका कारण यह है कि सेना के अफसरों को इन दिनों कई कंपनियाँ बड़े-बड़े ऑफर दे रही हैं। वे अधिकारियों के सामने सुविधाओं की इतनी लंबी फेहरिस्त लगा देती हैं कि अफसर समय पूर्व सेवानिवृत्ति की गुजारिश करने लगे हैं। संसद में भी इस संबंध में चिंता व्यक्त की जा चुकी है।

वर्ष 2003 से 2007 के बीच करीब 2,076 थलसेना के अधिकारियों ने समय से पहले ही फौज से रिटायरमेंट ले लिया, जो रक्षा सेवा में इस दौरान नौकरी छोड़ने का सबसे बड़ा आँकड़ा है। स्वयं रक्षामंत्री एके एंटनी फौज छोड़ने की संख्या में बढ़ोतरी पर चिंता जताते हुए बताते हैं कि वायुसेना में 2003-07 के दौरान इस्तीफों की संख्या 793 थी, जबकि नौसेना में 780 का आँक ड़ा रहा। थलसेना में इस दौरान 3474 अधिकारियों ने नौकरी छोड़ने की इच्छा जताई थी। इधर वायुसेना में 1269 और नौसेना में 954 ने नौकरी छोड़ने के लिए आवेदन दिया था।

अकादमियों में भी सीटें खाल
सेना की तीनों कमानों के लिए अफसर तैयार करने वाली खड़गवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में हाल ही में नई बैच ने ट्रेनिंग के लिए प्रवेश लिया है। इस बैच में 108 सीटें उचित प्रशिक्षणार्थी नहीं मिलने से खाली रह गई हैं। इस साल केवल 192 कैडेट ही अकादमी में जगह बना पाए, जबकि यहाँ 300 कैडेट की बैच सरकार ने निर्धारित की हुई है। रक्षामंत्री श्री एटंनी भी युवाओं में फौज के प्रति घटती रुचि को लेकर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि सरकार इस मामले में युवाओं को आकर्षित करने के लिए सकारात्मक और पक्के कदम उठाएगी।

इधर देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी के भी हाल ठीक नहीं हैं। यहाँ भी ढाई सौ की बैच में इस साल महज 86 कैडेट ही हैं। वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों का कहना है कि बेहतर प्रतिभागी फौज में आने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। ऐसे में अकादमियों में प्रशिक्षण का स्तर गिराकर तो अधिकारियों के लिए चयन नहीं किया जा सकता है।

बेहतर कैडेट नहीं मिल पाने के कारण ही ये अकादमियाँ खाली पड़ी हुई हैं। सालाना फौज को 21 सौ अधिकारियों की जरूरत होती है। पहले ही अधिकारी कम हैं, उस पर अकादमियाँ सूनी पड़ी हैं। ऐसे में फौज में अफसरों का अकाल कैसे दूर हो, इसका निराकरण समझ में नहीं आ रहा है। वर्तमान में 46 हजार 615 स्वीकृत पदों में से 11 हजार 238 अफसर कम हैं। यदि अभी से सारे रिक्त पद भरने का प्रयास किया जाए, तब भी अफसरों की कमी दूर होने में 20 साल लगेंगे। इधर वर्तमान में ऐसे हालात कहीं नजर नहीं आते कि सेना को अफसरों की कमी से निजात जल्द मिले।
बात की जाए रोजगार के अवसरों की तो, वर्तमान में युवाओं को विदेश जाने के अवसर तेजी से मिलने लगे हैं। साथ ही देश में आईटी सेक्टर और प्रबंधन के क्षेत्र में तेजी से बढ़ते अवसरों ने युवाओं के कदम फौज की ओर जाने से जकड़ दिए हैं। ये स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि वर्तमान में जिस तेजी से भारत में आतंकवाद अपनी जड़े जमा रहा है, उस स्थिति में फौज की जिम्मेदारियाँ बढ़ रही हैं। फौज के लिए हर साल बजट में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन फौजियों की सुविधाएँ बढ़ाने की सिफारिश करने में तो फिलहाल छठे वेतन आयोग ने भी आईएएस और आईपीएस की तुलना में कंजूसी ही की है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर फौज के कई अधिकारियों ने नाराजी भी जताई है।
नौकरी छोड़ने के पीछे के कारण
प्राइवेट संस्थानों में बेहतर वेतनमान और सुविधाएँ परिवार से दूरियाँ अकेलापन बार-बार के तबादले कठिन जीवन
हालाँकि सरकार इस बात से स्वयं परेशान है कि काबिल अफसर फौज छोड़ रहे हैं, इधर युवा सेना में जाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। लेकिन सरकार ने थलसेना में अफसरों की कमी को देखते हुए यह भी तय किया कि शोर्ट सर्विस कमीशन वाले अधिकारियों को 2, 6 और 13 वर्ष की सेवा में क्रमशः कैप्टन, मेजर और लेफ्टिनेंट कर्नल के पद दिए जाएँ। साथ ही उनकी सेवा अवधि 14 साल तक बढ़ा दी जाए। इतना ही नहीं सेना विज्ञापनों के माध्यम से भी अधिक से अधिक युवाओं से जुड़ने का प्रयास कर रही है। इसके लिए जागरूकता शिविर, प्रदर्शनियाँ, प्रेरणास्पद व्याख्यान, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापनों का प्रयास कर युवाओं की रुचि इस क्षेत्र में जगाने में सेना जुटी हुई है। इतना ही नहीं हाल ही में निर्णय लिया गया है कि एनसीसी का 'सी' सर्टिफिकेट अब तीन वर्षों के स्नातक कोर्स की बजाय स्नातक कोर्स में दो वर्ष में ही दे दिया जाए। इतना सब करने के बाद भी जिस तेजी से युवाओं का रुझान इस क्षेत्र में कम हो रहा है, सारे प्रयास नाकाफी नजर आ रहे हैं।
हालात को काबू में करने के लिए अब जरूरी हो गया है कि फौज में जो काम का दबाव है, उसे कम किया जाए। छुट्टियों की संख्या में बढ़ोतरी हो, बेहतर वेतन और सुविधाओं में इजाफा किया जाए।