हरिवंशराय ने अपना उपनाम 'बच्चन' नहीं चुना होता, तो आज अमिताभ श्रीवास्तव कहलाते।
कविवर सुमित्रानंदन पंत ने बच्चन दंपति के प्रथम बालक का नाम रखा- अमिताभ। यानी सूर्य। अर्थात बुद्ध।
बच्चनजी के मित्र प्रो. अमरनाथ झा अमिताभ का नाम इंकलाब राय और अजिताभ का आजाद राय रखना चाहते थे।
कवि बच्चन ने महू और सागर में फौजी प्रशिक्षण लेकर लेफ्टिनेंट बनकर कंधे पर दो सितारे लगाने का हक पाया था।
बच्चन परिवार की नेहरू परिवार से आत्मीयता कराने में भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अमिताभ के चौथे जन्मदिन के मौके पर इंदिराजी अपने ढाई साल के बेटे राजीव को धोबी की फेंसी ड्रेस में लेकर आई थीं।
रानी के बाग में प्रवेश के लालच में अमिताभ ने अपने घर से चार आने चुराए थे।
हाईस्कूल की दीवार पर अमिताभ ने पेंसिल से लकीरें खींची, तो प्राचार्य रिचर्ड डूट ने उनकी हथेली पर बेंतें चलाई थीं।
अमिताभ छोटे भाई अजिताभ को अपनी साइकल के डंडे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे।
1955 में डॉ. बच्चन इंदौर आए थे। होलकर कॉलेज के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन ने उन्हें कवि सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया था।
नेहरूजी ने बच्चन परिवार को तीन मूर्ति भवन में चाय पर आमंत्रित किया। यहीं अमिताभ-अजिताभ, राजीव-संजय से पुनः मिले और दोस्त बने।
अमिताभ की पहली नौकरी की पगार थी पाँच सौ रुपए। कलकत्ता से नौकरी छोड़कर जब मुंबई गए, तो अंतिम नौकरी का वेतन उन्हें एक हजार छः सौ अस्सी रुपए महीने मिलता था।
बच्चनजी जब लंदन जाने लगे, तो अमिताभ ने कहा- लंदन से मेरे लिए एक बंदूक जरूर लाना।
अमिताभ-अजिताभ कलकत्ता निवास के दौरान मटरगश्ती करते और खूब सारे नाटक-फिल्में देखते थे। लेकिन मुंबइया मसाला सिनेमा के कटु आलोचक थे।
अमिताभ अपनी मित्र मंडली में मसखरी अदाओं से सबका मनोरंजन करते थे। सामूहिक लंच के समय अमिताभ का वनमैन-शो होता था।
अमिताभ का मुंबई के रूपतारा स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट फिल्मकार मोहन सैगल ने किया था। उसके नतीजे आज तक अमिताभ को नहीं बताए गए हैं।
अमिताभ बच्चन का ख्वाजा अहमद अब्बास ने जब फिल्म सात हिन्दुस्तानी के लिए चयन किया, तो उन्हें नहीं मालूम था कि ये साहबजादे डॉ. हरिवंशराय बच्चन के बेटे हैं।
सात हिन्दुस्तानी फिल्म में काम के बदले अमिताभ को पाँच हजार रुपए मेहनताना मिला था।
फिल्म सात हिन्दुस्तानी दिल्ली के शीला सिनेमा में अमिताभ ने अपने माता-पिता के साथ देखी थी। वे कुरता-पायजामा पहनकर आए थे।
सात हिन्दुस्तानी देखकर मीना कुमारी ने अमिताभ की तारीख की, तो वे लजा गए थे।
जलाल आगा की विज्ञापन कंपनी में अपनी आवाज उधार देने के बदले अमिताभ को प्रति विज्ञापन पचास रुपए मिलते थे। उस समय की यह पर्याप्त रकम थी।
फिल्मों में काम की तलाश और खाली जेब के दौरान अमिताभ वर्ली की सिटी बेकरी से बिस्किट-टोस्ट के कट-पीस आधे दाम में खरीदकर चाय के साथ खाते और अपना गुजारा करते थे।
अमिताभ की शानदार आवाज के कारण सुनील दत्त ने फिल्म रेशमा और शेरा में उन्हें गूँगे का रोल महज इसलिए दिया था कि उनकी संवाद अदायगी कमजोर साबित न हो?
वहीदा रहमान को अमिताभ अपनी सर्वोत्तम पसंद की अभिनेत्री मानते हैं। लेकिन वहीदाजी की शिकायत है कि अमिताभ को फिल्म लावारिस वाला गाना- मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है- नहीं गाना चाहिए था।
चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश और खलनायक प्राण ने अमिताभ के साथ अभिनय करते हुए यह घोषणा की थी कि यह कलाकार एक दिन ग्रेट स्टार बनेगा।
लगातार कई फिल्में पिट जाने से अमिताभ को फिल्म इंडस्ट्री में अपशकुनी-हीरो माना जाने लगा था। यह फिल्म जंजीर (1973) के पहले की बात है।
जंजीर फिल्म हिट हुई और अमिताभ-जया शादी के बंधन में बँध गए।